Monday, December 31, 2012

आज रिटायर हो गया



मित्रों आज ३१ दिसंबर २०१२ को मैं इंडियन एक्सप्रेस लिमिटेड के हिंदी समाचार पत्र- जनसत्ता- से रिटायर हो गया। लेकिन यह जीवन से रिटायर होना नहीं है। फिर किसी दूसरे समाचार पत्र में ज्वाइन करने की योजना है। अभी मैं ऊर्जावान हूं। काम करने का उत्साह है और ईश्वर की कृपा है। यदि मेरे भीतर फिर किसी दूसरे अखबार से जुड़ने की प्रेरणा है तो निश्चित तौर पर यह ईश्वर का आशीर्वाद है। चूंकि मुझे पेंशन बहुत संतोषजनक नहीं मिलेगी, इसलिए नौकरी करना आवश्यक है। जब तक शरीर और दिमाग चले, काम करने में हर्ज क्या है? संसार में अपने कर्तव्यों को करते हुए हम ईश्वर से जुड़े रह सकते हैं। योगदा सत्संग सोसाइटी आफ इंडिया के स्वामी शुद्धानंद जी की कही एक बात याद आ रही है।  उन्होंने कहा- संसार के अपने कर्तव्यों को ईश्वर का काम मान कर चलिए। फिर रात को स्वयं को ईश्वर के चरणों में समर्पित कर दीजिए। यही जीने की कला है। इस तरह आप काम करते हुए भी ईश्वर से जुड़े रहेंगे।
 स्वामी जी की इन्हीं बातों को याद करते हुए मैं अपना आगामी जीवन जी सकूं तो अच्छा लगेगा।

Monday, December 24, 2012

करुणा और प्रेम की मूर्ति जीसस क्राइस्ट


विनय बिहारी सिंह




जीसस क्राइस्ट की तस्वीर मैं जब भी देखता हूं वे करुणा और प्रेम से ओतप्रोत दिखते हैं। हिंदू धर्म की खूबी यह है कि यह सारे धर्मों का बहुत आदर करता है। हिंदू धर्म सर्वधर्म समभाव के सिद्धांत पर चलता है हिंदू धर्म।  इसीलिए जीसस क्राइस्ट मुझे बहुत आकर्षित करते हैं। मेरे घर में उनकी एक सुंदर सी तस्वीर है। गहरे आदर से अगरबत्ती तो मैं उनकी तस्वीर को रोज ही दिखाता हूं। क्रिसमस के दिन केक लाकर उन्हें अर्पित कर फिर बच्चों को दे देता हूं। जीसस को जब सूली पर चढ़ाया जा रहा था तो उन्होंने उनके लिए भी प्रार्थना की जो उन्हें मृत्युदंड दे रहे थे। उन्होंने कहा- हे परमपिता, इन्हें क्षमा कर दें, क्योंकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं (फादर फारगिव देम, फार दे नो नाट व्हाट दे डू)।  ऐसी करुणा, ऐसा प्रेम विलक्षण है। अपनी हत्या कर रहे लोगों के लिए कौन प्रार्थना कर सकता है? जीसस जैसे महापुरुष के ही वश की है यह बात। जीसस क्राइस्ट के शिष्य पीटर ने उनसे पूछा- किसी को कितनी बार क्षमा करना चाहिए? क्या सात बार? जीसस ने कहा- नहीं सात के सत्तर गुना बार (सेवेन इन टू सेवेंटी टाइम्स) यानी ४९० बार। जीसस के कहने का अर्थ था कि क्षमा मनुष्य का आधारभूत गुण होना चाहिए। आज जब शोध कहता है कि क्षमा करने वाला व्यक्ति अधिक सुखी रहता है। तनावरहित रहता है तो जीसस क्राइस्ट याद आते हैं। ऋषि पातंजलि ने अष्टांग योग में क्षमा को महत्वपूर्ण तत्व बताया है। हिंदू धर्म में भी क्षमा व्यक्तित्व विकास का महत्वपूर्ण पहलू है। अन्य धर्म भी क्षमा पर जोर देते हैं।

 मेरे बच्चे (एक बेटा और एक बेटी) जब छोटे थे तो क्रिसमस के मौके पर मैं उन्हें केक ला देता था। वे बहुत खुश होते थे। अब वे बहुत बड़े हो गए हैं। अपने पैरों पर खड़े हैं और उन्हें मेरे सहारे की जरूरत नहीं है। फिर भी उनकी हार्दिक इच्छा रहती है कि क्रिसमस पर मैं उसी तरह लाऊं केक लाऊं जैसे उनके बचपन में लाता था। उनकी यह इच्छा सुन कर मुझे खुशी होती है। यह भी प्रकारांतर से जीसस क्राइस्ट के प्रति सम्मान ही है। आखिर केक घर में उन्हीं को याद करते हुए तो आता है।

Thursday, December 13, 2012

भजन के लाभ



सभी साधु- संतों ने कहा है कि भजन के अनेक लाभ हैं। चाहे किसी भजन की दो ही पंक्तियां गाई जाएं। चाहे धीरे- धीरे ही गाई जाएं, लेकिन इससे फायदा जरूर होता है। ठीक वैसा लाभ जो जप से मिलता है। लेकिन भजन गायन हृदय से होना चाहिए। भगवान से प्रार्थना  का असर भी गहरा होता है। साधु- संतों ने कहा है कि चाहे जिस विधि से भी हो, ईश्वर से संपर्क जोड़ना चाहिए। ईश्वर सर्वव्यापी हैं। सर्वशक्तिमान हैं, सर्वज्ञाता हैं। वे ही सर्वेसर्वा हैं। साधु- संतों की बातें झूठी नहीं हो सकतीं। उन्होंने जो कुछ कहा है- अनुभव के आधार पर कहा है। प्रत्यक्ष प्रमाण के आधार पर कहा है।

Monday, December 10, 2012

अब दो महीने तक खराब नहीं होगी आपकी ब्रेड!



60 दिनों तक तरोताज़ा रखा जा सकेगा ब्रेड को
एक अमरीकी कंपनी ने ऐसी तकनीक विकसित की है जिससे ब्रेड में 60 दिनों यानी दो महीने तक फफूंद नहीं लगेगा और ब्रेड ताज़ी बनी रहेगी.
ब्रेड को एक अत्याधुनिक माइक्रोवेव में बनाया गया जिससे फफूंद बनाने वाले जीवाणु नष्ट हो गए.
हालांकि, कंपनी को इस बात का डर भी है कि लोग इस पर कितना भरोसा जताएंगे.
अमरीकी कंपनी माइक्रोजैप का दावा है कि इस तकनीक से न सिर्फ ब्रेड को लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है बल्कि दूसरे खाद्य पदार्थों के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है.

खाने की बर्बादी रुकेगी

विकासशील देशों में खाने की बर्बादी एक आम समस्या है. अमरीका और ब्रिटेन में भोजन की सबसे ज्यादा बर्बादी होती है.
अमरीका में इस साल खाने की बर्बादी के जो आँकड़े सामने आए हैं, उसके मुताबिक अमरीकी नागरिक खरीदे गए खाद्य पदार्थों में से तकरीबन 40 फीसदी खाना बर्बाद कर देते हैं.
ब्रेड को लंबे समय तक खराब होने से बचाने के लिए विशेष प्रकार के माइक्रोवेव मशीन को तैयार किया गया है.
इस अनाज की कीमत 165 अरब डॉलर के करीब होती है.
ब्रिटेन में भी ब्रेड की बर्बादी बहुत ज्यादा होती है और इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है उसमें जल्दी पैदा होने वाला फफूंद.
आमतौर पर ब्रेड या पाव रोटी किसी प्लास्टिक रैपर में लिपटे होते हैं जो फफूंद पैदा करने के लिए काफी होता है.
ब्रेड को खास तरीके से रखने से उसे तकरीबन 10 दिनों तक ताज़ा और स्वादिष्ट रखा जा सकता है.
लेकिन अमरीकी कंपनी माइक्रोजैप का दावा है कि उन्होंने जो तकनीक विकसित की है उससे ब्रेड को करीब 60 दिनों तक सुरक्षित रखा जा सकेगा.
‘टेक्सस टेक विश्वविद्यालय’ की प्रयोगशाला में रखे मेटेलिक माइक्रोवेव को दिखाते हुए कंपनी के प्रमुख डॉन स्टल बताते हैं, “इस मशीन को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि ये बैक्टीरिया को नष्ट कर सके.”

सवाल स्वाद का

सबसे बड़ा सवाल लोगों के भरोसे और स्वाद का है.
इस पर डॉन स्टल कहते हैं कि लोगों का भरोसा जीतना इतना आसान काम नहीं होगा. इसके लिए हमें कुछ खरीदारों का विश्वास जीतना होगा.
वो कहते हैं कि हमें लोगों को गुणवत्ता का भरोसा दिलाना होगा.

Thursday, November 29, 2012

सुखद रहा शरद संगम



पिछले १८ से २४ नवंबर तक योगदा सत्संग सोसाइटी आफ इंडिया (वाईएसएस) की तरफ से आयोजित शरद संगम में हिस्सा लेना मेरे लिए अत्यंत सुखद अनुभव रहा। इस दौरान मैंने विभिन्न सत्संगों में हिस्सा लिया, गुरुदेव परमहंस योगानंद पर केंद्रित वीडियो फिल्म देखी, क्रिया दीक्षा समारोह में हिस्सा लिया और विभिन्न देशों के लोगों से मिला। इनमें से अमेरिका के इनसिनीटास के ब्रायन के साथ मुलाकात यादगार रही। ब्रायन महज २२ साल के हैं। लेकिन गहरे आध्यात्मिक हैं। वे कहते हैं- जीवन में ईश्वर को पाने के लिए साधना करना ही महत्वपूर्ण है। बाकी सारे काम सेकेंड्री हैं। वे हर आध्यात्मिक कार्यक्रम में भारी उत्साह से हिस्सा लेते थे। आते समय मुझसे मिलने के लिए शीत और ठंड में खड़े रहे। एक गुरुभाई का इतना प्रेम, इतना लगाव पाकर मैं धन्य हुआ। उन्होंने मुझे अपना संपर्क नंबर और ईमेल दिया। वे कुछ सिद्ध संतों से मिल चुके हैं। उनसे मुलाकात का वर्णन सुन कर मुझे बहुत अच्छा लगा। हम आश्रम में देर तक साधु- संतों के बारे में बातें करते रहे।

Wednesday, November 28, 2012

कब्ज पर एक और चर्चा



इस बार रांची प्रवास के दौरान मुझे कब्ज की भारी शिकायत हो गई। तब मैंने इसबगोल की भूसी का सेवन कर इससे छुटकारा पाया। वहां से लौटने के बाद कई जगह खोजबीन की कि कब्ज के कारणों पर एक बार फिर गौर कर सकूं। विशेषज्ञों ने कब्ज के ये लक्षण बताए हैं-
खुलकर शौच नहीं आना
नींद का नही आना
शरीर में कमजोरी
पेट में भारीपन महसूस होना
बार बार थोडा थोडा सिरदर्द होना
काम में मन नहीं लगना एवं उत्साह में कमी
आलस्य आना
भूख नहीं लगना
पेट में बहुत गैस बनना

हां। यह तो सच है कि १७ से २३ नवंबर के बीच मैं रात को लगातार तीन- चार घंटों से ज्यादा नहीं सो पाया। सुबह काफी गंभीर नाश्ता भी करता था। जब कब्ज हुआ तो मैं एक दिन फलाहार पर रहा और रात को हल्का भोजन किया। इससे बड़ा फायदा हुआ। एक दिन सुबह का नाश्ता छोड़ दिया। उसके बदले दो केले खाए। दिन में हल्का भोजन किया। इसके बाद इसबगोल की भूसी का सेवन। आखिरकार कब्ज से छुटकारा मिला। खुल कर शौच न आने से मल आतों के भीतर विष पैदा करता रहता है। नतीजा यह है कि शरीर और मन भारी रहता है। लेकिन चूंकि मैंने कब्ज तोड़ने के लिए तत्काल कारर्वाई की, इसलिए मुझे राहत मिल गई। विशेषज्ञों ने सलाह दी कि तली भुनी चीजों से मुझे दूर रहना चाहिए। वैसे भी मैं तली- भुनी चीजें पसंद नहीं करता। समोसे छूता तक नहीं हूं। पूड़ी, पराठे की तरफ देखता तक नहीं। खाना तो दूर की बात है। यह मेरे स्वभाव में शामिल है। फिर भी कब्ज हो ही गया। हां, मैं खूब पानी पीता था। फिर भी कब्ज था। मुझे याद आया- गुरुदेव परमहंस योगानंद जी ने कहा है कि आप अपनी ओर से सारे प्रयत्न कीजिए। इसके बाद ईश्वर पर छोड़ दीजिए। वे सब कुछ ठीक करेंगे। लेकिन अपने प्रयत्नों में कमी मत आने दीजिए।

Monday, November 26, 2012

शरीर के लिए मिनरल बहुत जरूरी



हमारे शरीर के लिए मिनरल यानी मैग्निशियम, कैल्शियम, पोटेशियम, सोडियम, क्लोराइड और फास्फोरस आदि बहुत जरूरी हैं। आइए जानें कि ये मिनरल किन खाद्य पदार्थों में पाए जाते हैं।
कैल्शियम मिलता है- दही, पनीर, दूध, हरी सब्जियों में (पालक, गोभी आदि में अधिक)।
पोटेशियम मिलता है- मीठा आलू, केला, टमाटर, गोभी, नारंगी, हरा टमाटर, हरी सब्जियां, दही, सोयाबीन आदि में।
मैग्निशियम मिलता है- पत्तेदार सब्जियों, केला, ब्राउन राइस, हरा मटर, सोयाबीन, सूखा फल बादाम आदि में।
सोडियम मिलता है- टमाटर, मक्खन आदि में।
क्लोराइड मिलता है- नमक, टमाटर, अंडे के सफेद हिस्से, नारियल, दूध उत्पाद, हरी पत्तियों वाली सब्जियों, मूली, दाल और चावल में।
फास्फोरस मिलता है- दाल, अनाज, दूध, अंडा और मटर आदि में।

Friday, November 16, 2012

शरद संगम में आठ दिन के लिए



मित्रों, रिटायरमेंट पर आप सबकी टिप्पणी के लिए हृदय से आभारी हूं।

फिलहाल अपने गुरुदेव परमहंस योगानंद जी के रांची आश्रम में हो रहे सालाना कार्यक्रम शरद संगम में आठ दिन के लिए जा रहा हूं। यह हर वर्ष होता है और इसमें देश- विदेश के अनेक भक्त आते हैं। परमहंस योगानंद जी की प्रसिद्ध पुस्तक- आटोबायोग्राफी आफ अ योगी (हिंदी में- योगी कथामृत के नाम से अनूदित) भारी संख्या में लोगों ने पढ़ी है और मुग्ध हुए हैं। उन्होंने सबसे पहले अमेरिका, यूरोप और समूची दुनिया में क्रिया योग का प्रसार किया था।

शरद संगम से लौट कर अपने अनुभवों को आपके साथ बांटूंगा। आपको पढ़ कर अच्छा लगेगा।
कृपया आठ दिन की छुट्टी दीजिए।

- विनय बिहारी सिंह

Thursday, November 15, 2012

रिटायर हो रहा हूं



मित्रों, अगले महीने ३१ दिसंबर को मैं इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप के अखबार जनसत्ता से रिटायर हो रहा हूं। यहां २१ वर्ष और कुछ महीने मैंने अपनी सेवाएं दीं। मैंने अपने काम को खूब इंज्वाय किया। खूब आनंद भरी नौकरी रही मेरी। हालांकि जीवन में सुख- दुख आते रहे। लेकिन नौकरी खूब इंज्वाय की। मेहनत की और आनंद भी उठाया।  इस दौरान मैं पत्रकार के तौर पर विभिन्न लोगों से मिला। उनके संबंध में समाचार लिखे। समाचार विश्लेषण लिखे। इंटरव्यू किए। यानी बहुआयामी काम किया। आज मुझे आफिशियली वह पत्र मिला जिसमें कहा गया है कि मैं इस साल ३१ दिसंबर को रिटायर हो रहा हूं। मुझे उम्मीद है कि मैं फिर किसी अन्य समाचार पत्र में पत्रकारिता करने लगूंगा। एक बार तो लगा कि मैंने अभी कितने दिन पहले अपने अखबार में ज्वाइन किया और देखिए कि रिटायरमेंट कितनी जल्दी आ गया। लेकिन २१ वर्ष कम नहीं होते। देखते- देखते बीत गए। बच्चे जो छोटे थे, अब प्रौढ़ हो गए हैं। नौकरी करते हैं। मैं जानता हूं, जब मैं दूसरे अखबार में नौकरी करने लगूंगा तो एक बार फिर व्यस्त हो जाऊंगा। जिंदगी पहले की तरह दौड़ने लगेगी। इंडियन एक्सप्रेस का साथ भले छूट रहा है, लेकिन इसके प्रति प्रेम तो बना ही रहेगा।

Monday, November 12, 2012

शुभ दीपावली





हमारे देश में कार्तिक अमावस्या को दीपावली का पर्व मनाया जाता है। मेरे पास कृष्ण प्रिया ने एक ई मेल भेजा है जिसमें दीपावली के महत्व को रेखांकित किया गया है।
१- दीपावली के दिन ही लक्ष्मी जी का जन्म हुआ था।
२- भगवान विष्णु ने इसी दिन वामन अवतार के रूप में राजा बालि के कैद से मां लक्ष्मी को छुड़ाया था।
३- भगवान कृष्ण ने राक्षस राजा नरकासुर का इसी दिन वध कर १६ हजार महिलाओं को कैद से मुक्त किया था।
४- पांडव १२ साल के अज्ञातवास के बाद इसी दिन वापस लौटे थे। वे जुए में हारने के कारण शर्त के मुताबिक अज्ञातवास में गए थे।
५- रावण का वध करने और लंका पर विजय पताका फहराने के बाद भगवान राम इसी दिन अयोध्या लौटे थे।
६- महान हिंदू राजा विक्रमादित्य ने आज ही के दिन दीपावली मनाने की शुरूआत की थी।
७- दीपावली के दिन आर्यसमाज के संस्थापक महर्षि दयानंद ने निर्वाण प्राप्त किया था।
८- दीपावली के दिन को सिख धर्म में भी महत्वपूर्ण माना जाता है।

Thursday, November 8, 2012

श्रद्धा और विश्वास




गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है-

ये तु धर्म्यामृतमिदं यथोक्तं पर्युपासते।
श्रद्धधाना मत्परमा भक्तास्तेअतीव में प्रियाः।। (१२वें अध्याय का २०वां श्लोक)।

 गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है-

बिनु बिस्वास भगति नहिं तेहि बिनु द्रवहिं न राम।
राम कृपा बिनु सपनेहुं जीव न लह बिश्रामु।।

यानी बिना श्रद्धा और विश्वास के ईश्वर का अनुभव असंभव है।

Tuesday, November 6, 2012

गीता का एक श्लोक


कायेन मनसा बुद्ध्या केवलैरिन्द्रियैरपि।
योगिनः कर्म कुर्वन्ति संगं त्यक्त्वात्मशुद्धये।।

योगी ममत्व बुद्धि रहित इंद्रिय, मन व बुद्धि के परे रहते हुए अंतःकरण की शुद्घि के लिए काम करते हैं।

Monday, November 5, 2012

माया महाठगिनी हम जानी


कबीर दास

माया महाठगिनि हम जानी।
निरगुन फांस लिए कर डोले बोलै मधुरी बानी।।
केशव के कमला ह्वै बैठी शिव के भवन भवानी।।
पंडा के मूरति ह्वै बैठी तीरथ में भई पानी।।
जोगी के जोगिन ह्वै बैठी राजा के घर रानी।।
काहू घर हीरा ह्वै बैठी काहू की कानी कौड़ी।।
भगतन के भगतिन ह्वै बैठी ब्रह्मा के ब्रह्मानी।।
कहत कबीर सुनो हो संतों यह सब अकथ कहानी।।

Saturday, November 3, 2012

एक बार फिर सूरदास की एक अन्य रचना पढ़ें



छांड़ि मन हरि विमुखन को संग।
जिनके संग कुबुद्धि उपजति है, परत भजन में भंग।।
कहां होत पय पान कराए, विष नहिं तजत भुजंग।।
कागहि कहा कपूर चुगाए, स्वान नहाए गंग।।
खर को कहा अरगजा लेपन, मरकट भूषण अंग।।
गज को कहा न्हवाये सरिता, बहुरि धरै खहि छंग।।
पाहन पतित बांस नहीं बेधत, रीतो करत निषंग।।
सूरदास खल काली कामरि, चढ़त न दूजो रंग।।

Friday, November 2, 2012

कबीरदास



मित्रों कबीरदास का एक विलक्षण पद प्रस्तुत कर रहा हूं। यह पद मुझे सर्वाधिक पसंद आता है-



रस गगन गुफा में अजर झरै।
बिन बाजा झनकार उठै जहं, समुझि परै जब ध्यान धरै।।
बिना ताल जहं कमल फुलाने, तेहि चढ़ि हंसा केलि करै।।
बिन चंदा उजियारी दरसै, जहं तहं हंसा नजर परै।।
दसवें द्वारे ताली लागी, अलख पुरुष जाको ध्यान धरै।।
काल कराल निकट नहिं आवै, काम क्रोध मद लोभ जरै।।
जुगन जुगन की तृषा बुझाती, करम भरम अघ ब्याधि टरै।।
कहै कबीर सुनो भई साधो, अमर होय कबहूं न मरै।।

Thursday, November 1, 2012

कबीरदास की एक और अद्भुत रचना


आठ पहर चौबीस घड़ी, मो मन यही अंदेश।
या नगरी पीतम बसै, मैं जानौं परदेश।।

पीतम को पतिया लिखूं, जो कहूं होय विदेश।
तन में मन में नैन में, ताको कहा संदेश।।

घर में रहे सूझे नहीं, करसों गहा न जाय।
मिला रहे औ ना मिले तासों कहा बसाय।।

Wednesday, October 31, 2012

सूरदास की एक और सुंदर रचना


हे गोविंद हे गोपाल।
हे गोविंद राखु शरण अब तो जीवन हारे।
हे गोविंद हे गोपाल।
नीर पीवन हेतु गए सिंधु के किनारे।
सिंधु बीच बसत ग्राह चरण धरि पछारे।।
चार प्रहर युद्ध भयो ले गयो मझधारे।
नाक कान बूड़न लागे कृष्ण को पुकारे।।
द्वारका में शब्द भयो, शोर भयो भारे।
शंख, चक्र, गदा, पदम गरुड़ लै सिधारे।।
सूर कहै श्याम सुनो शरण हम तिहारे।
अबकी बार पार करो नंद के दुलारे।।

Tuesday, October 30, 2012

नजीर की एक रचना



इस दुनिया या संसार के बारे में समय समय पर विभिन्न साधु- संतों ने अपने विचार प्रकट किए हैं। शायर नजीर ने दुनिया के बारे में जो कुछ लिखा है, उसे आप भी पढ़ना चाहेंगे। नजीर की यह रचना मैंने बार- बार पढ़ी और अच्छा लगा। आप भी पढ़ें-

है बहारे बाग दुनिया चंद रोज।
देख लो इसका तमाशा चंद रोज।।

ऐ मुसाफिर कूच का सामान कर।
इस जहां में है बसेरा चंद रोज।।

फिर कहां तुम और मैं ऐ दोस्तों।
साथ है मेरा तुम्हारा चंद रोज।।

क्या सताते हो दिले बेजुर्म को।
जालिमों है यह जमाना चंद रोज।।

याद कर तू ऐ `नजीर' कब्रों के रोज।
जिंदगी का है भरोसा चंद रोज।।

 कैसी लगी नजीर की यह रचना?

Monday, October 29, 2012

लक्ष्मी पूजा



आज लक्ष्मी पूजा है। लक्ष्मी जी भगवान विष्णु की पत्नी मानी जाती हैं। वे सदा उनके चरण पर हाथ रखे सेवा भाव में चित्रित की जाती हैं। दरअसल यह प्रतीक है। कहने की जरूरत नहीं कि लक्ष्मी जी धन की देवी हैं। भगवान विष्णु पुरुषार्थ के प्रतीक हैं। तो अर्थ यह हुआ कि यदि मनुष्य पुरुषार्थ करेगा तो लक्ष्मी आएंगी। अन्यथा नहीं। मां लक्ष्मी के बारे में बचपन में हम लोग एक कहावत सुनते थे। कहावत थी- लक्ष्मी जी चंचला हैं। यदि उन्हें संभाल कर नहीं रखा जाए तो वे दूसरे के पास चली जाती हैं। जब समझने लायक हुए तो इसका अर्थ जाना। कहावत सावधान करती है कि लक्ष्मी यानी धन के साथ लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए। सावधान हो कर खर्च करना चाहिए। लेन- देन में अत्यंत सावधान रहना चाहिए। वरना संबंध खराब हो सकते हैं और आपकी पूंजी भी डूब सकती है। किसके साथ पार्टनरशिप करें और किसके साथ नहीं यह भी जांच लेना आवश्यक है। फिर पार्टनरशिप करें भी कि नहीं। क्या अकेले व्यवसाय करें। यह सब समझ बूझ कर ही आगे बढ़ना उचित है। तो प्रतीक हमें बहुत कुछ बताते हैं। आज के दिन ज्यादातर हिंदू परिवारों में लक्ष्मी पूजा होती है। मां लक्ष्मी की विधिवत पूजा के बाद उन्हें भोग चढ़ाया जाता है। आज के दिन अनेक स्वादिष्ट पकवान बनाए जाते हैं। जिसकी जैसी सामर्थ्य है, अपने घर में वैसा पकवान बनाता है। तरह- तरह की मिठाइयां, फल और विभिन्न तरह की खीर का विशेष प्रचलन है। कुछ घरों में लक्ष्मी जी की मूर्ति ला कर उसका पूजन किया जाता है। इसके लिए किसी पंडित जी से पहले से ही समय तय कर लिया जाता है। पूजा  के बाद ही घर के लोग भोजन करते हैं।

Friday, October 26, 2012

SAMADHI


"Vanished the veils of light and shade,
Lifted every vapor of sorrow,
Sailed away all dawns of fleeting joy,
Gone the dim sensory mirage.
Love, hate, health, disease, life, death,
Perished these false shadows on the screen of duality.
Waves of laughter, scyllas of sarcasm, melancholic whirlpools,
Melting in the vast sea of bliss.
The storm of maya stilled
By magic wand of intuition deep.
The universe, forgotten dream, subconsciously lurks,
Ready to invade my newly wakened memory divine.
I live without the cosmic shadow,
But it is not, bereft of me;
As the sea exists without the waves,
But they breathe not without the sea.
Dreams, wakings, states of deep turiya sleep,
Present, past, future, no more for me,
But ever-present, all-flowing I, I, everywhere.
Planets, stars, stardust, earth,
Volcanic bursts of doomsday cataclysms,
Creation's molding furnace,
Glaciers of silent x-rays, burning electron floods,
Thoughts of all men, past, present, to come,
Every blade of grass, myself, mankind,
Each particle of universal dust,
Anger, greed, good, bad, salvation, lust,
I swallowed, transmuted all
Into a vast ocean of blood of my own one Being!
Smoldering joy, oft-puffed by meditation
Blinding my tearful eyes,
Burst into immortal flames of bliss,
Consumed my tears, my frame, my all.
Thou art I, I am Thou,
Knowing, Knower, Known, as One!
Tranquilled, unbroken thrill, eternally living, ever new peace!
Enjoyable beyond imagination of expectancy, samadhi bliss!
Not a mental chloroform
Or unconscious state without wilful return,
Samadhi but extends my conscious realm
Beyond the limits of the mortal frame
To farthest boundary of eternity
Where I, the Cosmic Sea,
Watch the little ego floating in me.
The sparrow, each grain of sand, fall not without my sight.
All space like an iceberg floats within my mental sea.
Colossal Container, I, of all things made.
By deeper, longer, thirsty, guru-given meditation
Comes this celestial samadhi
Mobile murmurs of atoms are heard,
The dark earth, mountains, vales, lo! molten liquid!
Flowing seas change into vapors of nebulae!
Aum blows upon the vapors, opening wondrously their veils,
Oceans stand revealed, shining electrons,
Till, at last sound of the cosmic drum,
Vanish the grosser lights into eternal rays
Of all-pervading bliss.
From joy I came, for joy I live, in sacred joy I melt.
Ocean of mind, I drink all creation's waves.
Four veils of solid, liquid, vapor, light,
Lift aright.
Myself, in everything, enters the Great Myself.
Gone forever, fitful, flickering shadows of mortal memory.
Spotless is my mental sky, below, ahead, and high above.
Eternity and I, one united ray.
A tiny bubble of laughter, I
Am become the Sea of Mirth Itself." 

-Paramahansa Yoganandaji

Thursday, October 25, 2012

मां दुर्गा के दस हाथ



मां दुर्गा के दस हाथ हमारी दस इंद्रियों के प्रतीक हैं। मां के नौ हाथों में अस्त्र- शस्त्र हैं और एक हाथ आशीर्वाद दे रहा है। तो नौ हाथों में अस्त्र क्यों हैं? ये इंद्रियों के वश में करने का संदेश देते हैं। मां दुर्गा का संदेश है कि जब तक हम इंद्रियों को वश में नहीं कर लेते और उनका इस्तेमाल साधना के लिए नहीं करने लगते, मां के दर्शन दुर्लभ ही रहेंगे। एक बार यह ज्ञान हो गया कि हम इंद्रिय, मन या शरीर नहीं हैं। माइंड नहीं हैं। इंटेलेक्ट नहीं हैं। हम तो सिर्फ शुद्ध आत्मा हैं। बस यह अनुभव होना ही इंद्रिय नियंत्रण का रास्ता खोल देता है। इसके अलावा संतों ने कुछ प्राणायाम बताए हैं। उनसे इसमें और मदद मिलती है। इस तरह साधक धीरे- धीरे आगे बढ़ता रहता है और मां की कृपा का पात्र होता जाता है। आखिर मां भी चाहती ही हैं कि उनका बच्चा उनकी ओर आकर्षित हो। उन्हें मां कह कर पुकारे। उनसे प्यार करे। कौन मां नहीं चाहेगी? और जगन्माता की तो बात ही कुछ और है। वे तो लगातार हमारी बाट जोहती रहती हैं। कब हम गहरे हृदय से उनकी करुणा के लिए पुकारें और कब वे हमारे पास आएं।

Monday, October 22, 2012

हार्दिक शुभकामना



आप सब कृपया दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएं स्वीकार करें। मां दुर्गा आप सबके जीवन में ढेर सारी खुशियां लाएं। आपका जीवन सुखमय और उल्लास से भरा रहे।

Saturday, October 20, 2012

कब्ज तोड़ना है तो क्या करें


विनय बिहारी सिंह

मित्रों, कब्ज होना आम बात है। कुछ लोग तो मजाक में कहते हैं कि पश्चिम बंगाल के पानी में ही कब्ज पैदा करने वाले तत्व हैं। लेकिन मैं इस रोग से लगातार लड़ता रहता हूं। इसलिए यह मुझे अपने वश में नहीं कर पाता। पिछले दिनों मैंने आटोमेटिक मशीन की बनी चाय खूब पी। काफी भी पी। अचानक मैंने पाया कि मुझे भारी कब्ज हो गया है। मैंने गहराई से विश्लेषण किया तो शक हुआ कि इसका कारण कहीं मशीन वाली चाय और काफी ही तो नहीं है। प्रयोग के तौर पर मैंने मशीन की चाय पीनी बंद कर दी। दफ्तर में मैं दुकानों पर बनी चाय पीने लगा। इसके अलावा एक प्रयोग और किया। भूख से काफी कम खाना खाया और खूब पानी पीया। इसके अलावा बची भूख को मिटाने के लिए भोजन के साथ ही पानी पीने लगा। जबकि मैं भोजन के साथ पानी नहीं पीता था। डाक्टर भी कहते हैं कि भोजन के साथ पानी पीने से पचने में सहायक रसायन  पतले हो जाते हैं। फिर भी मैंने यह प्रयोग किया और इससे मेरा कब्ज खत्म हो गया। लेकिन हां, सबसे पहले मैंने एक दिन (नवरात्रि के पहले दिन) उपवास रखा। इसका बहुत फायदा मिला। कब्ज से मैं हमेशा दो दो हाथ करता रहता हूं। और जीत जाता हूं। आपको भी कभी कब्ज हो तो भोजन के साथ पानी वाला प्रयोग आप आजमा कर देख सकते हैं। क्या पता आपको भी फायदा करे।

Thursday, October 18, 2012

दुर्गा शप्तसती




विनय बिहारी सिंह



दुर्गा शप्तसती में मार्कंडेय पुराण के १३ अध्यायों के ७०० श्लोक हैं। इसमें मां दुर्गा के महत्व को रेखांकित किया गया है। मां दुर्गा किस तरह संकट, विघ्न और चिंताओं को दूर करती हैं और किस तरह उनकी कृपा प्राप्त की जा सकती है, यह समय समय पर अनेक संतों ने बताया है। ऋषि मार्कंडेय ने मां दुर्गा को विभिन्न आयामों में व्याख्यायित किया है। दुर्गा शप्तसती का पाठ बहुत विधि- विधान के साथ करना होता है। इसका एक अंश यहां दिया जा रहा है-

मार्कण्डेय उवाच 

ॐ यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम् ।
यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह ।। १।।

ब्रह्मोवाच
अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम् ।
देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने ।। २।।

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी ।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।। ३।।

पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च ।
सप्तमं कालरात्रिति महागौरीति चाष्टमम् ।। ४।।

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः ।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।। ५।।

अग्निना दह्यमानास्तु शत्रुमध्यगता रणे ।
विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः ।। ६।

न तेषां जायते किञ्चिदशुभं रणसङ्कटे ।
नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न हि ।। ७।।

यह सिर्फ एक संक्षिप्त अंश भर है ।सिर्फ आपको बताने के लिए। इसके आगे और पीछे कई श्लोक हैं और शुद्धि संबंधी कई विधि विधान हैं।  कृपया इसका इस्तेमाल न करें।  दुर्गा शप्तसती का प्रभाव इसके पढ़ने से ही समझ में आता है। इसमें जो ताकत है, उसे इसे समझने वाला ही जान सकता है।

Wednesday, October 17, 2012

आदि शक्ति की नवरात्रि


 विनय बिहारी सिंह

नवरात्रि आदि शक्ति की अराधना का समय है। पश्चिम बंगाल में पंडालों में मां दुर्गा की प्रतिमा के साथ माता लक्ष्मी और सरस्वती की भी मूर्तियां रखी होती हैं। मां दुर्गा महिषासुर का वध कर रही होती हैं और उनकी बगल में लक्ष्मी जी और सरस्वती जी शांत भाव में विराजमान होती हैं। इसका अर्थ है यदि हम अपने भीतर के महिषासुर का वध कर दें यानी अपने भीतर की बुरी प्रवृत्तियों का नाश कर दें तो लक्ष्मी यानी धन- धान्य से संपन्न होंगे और सरस्वती यानी ज्ञान से पूर्ण होंगे। नवरात्रि इसी का स्मरण कराने आता है। आदि शक्ति यानी मातृ शक्ति। इसीलिए दुर्गा पाठ में कहा जाता है- या देवी सर्वभूतेषु मातृ रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः।। बिना शक्ति के हम हैं क्या? शक्ति के बिना तो हम मुर्दे के समान हो जाएंगे। यह शक्ति आती कहां से है? निश्चय ही ईश्वर के पास से। वही शक्ति हैं, वही शिव हैं। यानी शिव-शक्ति वही हैं। माता पार्वती ही दुर्गा, काली और अन्य शक्ति रूपों में हैं। माता पार्वती के पति यानी भगवान शिव सदा ध्यान में मनोहारी मुस्कान बिखरते हुए अपने भक्तों को आशीर्वाद देते रहते हैं। आइए इस नवरात्रि में हम शिव- शक्ति की विशेष अराधना करें।

Tuesday, October 16, 2012

श्री रुद्राष्टकम्


नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् |
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेहम् ||१||

निराकारमोंकारमूलं तुरीयं गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् |
करालं महाकालकालं कृपालं गुणागारसंसारपारं नतोहम् ||२||

तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं मनोभूतकोटि प्रभाश्रीशरीरम् |
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगंगा लसदभालबालेन्दुकण्ठे भुजंगा ||३||

चलत्कुण्डलं भ्रुसुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् |
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ||४||

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम् |
त्रयः शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं भजेहं भावानीपतिं भावगम्यम् ||५||

कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी सदा सज्जनानंददाता पुरारी |
चिदानंदसंदोह मोहापहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ||६||

न यावद उमानाथपादारविन्दं भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् |
न तावत्सुखं शान्ति संतापनाशं प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम् ||७||

न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतोहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम् |
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ||८||


रुद्रष्टकमिदं प्रोक्तं विपेण हरतुष्टये |
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ||
|| इति श्री गोस्वामी तुलसीदास कृतं श्री रुद्राष्टकम् संपूर्णं ||

Monday, October 15, 2012

तुलसीदास की एक सुंदर रचना


काहे ते हरि मोहिं बिसारो।
जानत निज महिमा मेरे अघ, तदपि न नाथ सँभारो॥१॥
पतित-पुनीत दीन हित असुरन सरन कहत स्त्रुति चारो।
हौं नहिं अधम सभीत दीन ? किधौं बेदन मृषा पुकारो॥२॥
खग-गनिका-अज ब्याध-पाँति जहँ तहँ हौहूँ बैठारो।
अब केहि लाज कृपानिधान! परसत पनवारो फारो॥३॥
जो कलिकाल प्रबल अति हो तो तुव निदेस तें न्यारो।
तौ हरि रोष सरोस दोष गुन तेहि भजते तजि मारो॥४॥
मसक बिरंचि बिरंचि मसक सम, करहु प्रभाउ तुम्हारो।
यह सामरथ अछत मोहि त्यागहु, नाथ तहाँ कछु चारो॥५॥
नाहिन नरक परत मो कहँ डर जद्यपि हौं अति हारो।
यह बड़ि त्रास दास तुलसी प्रभु नामहु पाप न जारो॥६॥

Thursday, October 11, 2012

गीता का दसवां अध्याय


भगवान कृष्ण ने भगवत गीता के दसवें अध्याय में अपनी विभूतियां बताई हैं। अर्जुन ने प्रश्न किया है कि प्रभु, आपको मैं किन- किन रूपों में स्मरण कर सकता हूं, आपका ध्यान कर सकता हूं। भगवान ने सबसे पहले कहा है- मैं सबकी आत्मा हूं। फिर उन्होंने कहा है कि मैं सूर्य हूं। नक्षत्रों में चंद्रमा हूं। सिद्धों में कपिल मुनि हूं। संतों में नारद ऋषि, और पांडवों में अर्जुन यानी तुम, पर्वतों में सुमेरु पर्वत, वृक्षों में पीपल....आदि।  अध्याय के अंत में भगवान ने कहा है- जितनी भी विभूतियां तुम देखते हो, उनमें मैं ही हूं। लेकिन इन बहुत से वर्णनों से तुम्हें क्या। तुम तो बस मुझे ही स्मरण करो और तुम्हारा काम बन जाएगा। भगवान संकेत देते हैं कि उनके प्रति अनन्यता के साथ जुड़ने से ही भक्त का काम बन जाएगा। उसे कहीं और भटकने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन मैं इन-इन रूपों में भी हूं। यहां भगवान यह स्पष्ट संकेत देते हैं कि संपूर्ण ब्रह्मांड के कर्ता और ब्रह्मांड को धारण करने वाले वही हैं। वही इसके मालिक हैं, वही इसे चला रहे हैं। जो  उनकी शरण में जाएगा, उसे ब्रह्मांड का रहस्य मालूम हो जाएगा। यही नहीं, उसे भगवान की कृपा भी प्राप्त हो जाएगी।

Tuesday, October 9, 2012

भगवान के वचन




भगवान श्रीकृष्ण ने भगवत गीता में कहा है- जो मुझे अनन्य प्रेम से भजते हैं। जो मुझे कभी नहीं भूलते, उन्हें मैं भी कभी नहीं भूलता। वे मुझमें और मैं उनमें हूं। कितना सांत्वनादाई वादा है यह। हम अपने हृदय से भगवान के नाम का उच्चारण करते हैं और यह पुकार तत्क्षण उन तक पहुंच जाती है। भगवान कहते हैं- मेरे भक्त कभी नष्ट नहीं होते। यानी भगवान अपने भक्तों की सदा रक्षा करते हैं। रामकृष्ण परमहंस कहा करते थे- भक्ति, भक्त और भगवान- एक हो जाएं तो फिर कहना ही क्या। यही चरम स्थिति तो पाने के लिए भक्त छटपटाता रहता है। वह भीतर से पुकारता रहता है- कहां हैं भगवान। दर्शन दीजिए। वह भगवान को महसूस करता रहता है लेकिन जब उनके दर्शन नहीं होते, सिर्फ अनुभूति होती है तो वह कहता- दर्शन दीजिए प्रभु। दर्शन दीजिए। भगवान यह सुन कर मुस्कराते हैं। वे भक्त की व्याकुलता को और परखना चाहते हैं। यह भक्त और भगवान के बीच चलता रहता है। यह भगवान को भी अच्छा लगता है और भक्त को भी।

Saturday, October 6, 2012

आत्मचिंतन


परमहंस योगानंद जी ने लिखा है कि यदि आप किसी आध्यात्मिक विषय पर एक घंटे पढ़ते हैं तो दो घंटे लिखिए, तीन घंटे उस पर सोचिए और बाकी बचे समय में जब फुरसत मिले ध्यान कीजिए। सचमुच आध्यात्मिक चीजें सिर्फ पढ़ना और पढ़ते जाना ही हमें ज्यादा फायदा नहीं पहुंचाता। जो पढ़ते हैं उसे लिखने से वह ज्यादा अच्छी तरह आत्मसात होता है। और जो आत्मसात किया उस पर गहरा चिंतन करने से वह हमारे भीतर गहरे बैठ जाता है। इसके बाद यदि उस पर ध्यान करें तो ज्यादा फायदा पहुंचता है। हम ईश्वर को अपने करीब ज्यादा पाते हैं। संतों ने तो कहा ही है- ईश्वर तो हमारे भीतर, बाहर, सर्वत्र हैं। हम्हीं उन्हें अपनी अज्ञानता के कारण जान- समझ नहीं पाते। सर्वं खल्विदं ब्रह्म। सबकुछ ब्रह्म ही है। यह ज्ञान भीतर तक जब तक नहीं जड़ जमा लेता, हम यही कहते रहेंगे कि भगवान हमसे दूर हो गए हैं। जबकि सच्चाई यह है कि हमारे सबसे करीब भगवान ही हैं।

Thursday, October 4, 2012

रहीम के दोहे



जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ अति ही इतराय।
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाय॥
अर्थ: ओछे लोग जब प्रगति करते हैं तो बहुत ही इतराते हैं। वैसे ही जैसे शतरंज के खेल में जब प्यादा फरजी बन जाता है तो वह टेढ़ी चाल चलने लगता है।

बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन बिगरे दूध को, मथे न माखन होय॥
अर्थ: जब बात बिगड़ जाती है तो किसी के लाख कोशिश करने पर भी बनती नहीं है। उसी तरह जैसे कि दूध को मथने से मक्खन नहीं निकलता।

आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि।
ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देहि॥
अर्थ: ज्यों ही कोई किसी से कुछ मांगता है त्यों ही आबरू, आदर और आंख से प्रेम चला जाता है।

खीरा सिर ते काटिये, मलियत नमक लगाय।
रहिमन करुये मुखन को, चहियत इहै सजाय॥
अर्थ: खीरे को सिर से काटना चाहिए और उस पर नमक लगाना चाहिए। यदि किसी के मुंह से कटु वाणी निकले तो उसे भी यही सजा होनी चाहिए।

चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह॥
अर्थ: जिन्हें कुछ नहीं चाहिए वो राजाओं के राजा हैं। क्योंकि उन्हें ना तो किसी चीज की चाह है, ना ही चिंता और मन तो बिल्कुल बेपरवाह है।

Wednesday, October 3, 2012

जड़ प्रकृति और प्रेम



भगवत गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार ये आठ तो जड़ प्रकृति है। इससे परे जो है वह आत्मा है। यानी मन और बुद्धि से भी परे है आत्मा। हम मन या बुद्धि से ईश्वर को कैसे पकड़ सकते हैं? संभव ही नहीं है। तो ध्यान कैसे करें? जब मन और बुद्धि से ईश्वर को जाना ही नहीं जा सकता तो इन्हें ईश्वर के चरणों में अर्पित कर देना ही उचित है। कबीरदास ने इसीलिए कहा है-

कबीर यहु घर प्रेम का, खाला का घर नाहिं।
सीस उतारे हाथि करि, सो पैसे घर माहिं।।

सीस उतारे हाथि करि यानी अपने मन, अपनी बुद्धि और अपने अहंकार को नष्ट करने के बाद ही ईश्वरीय प्रेम के घर में प्रवेश किया जा सकता है। जब तक मैं, मैं, मैं लगा रहेगा, हम ईश्वर से दूर रहेंगे। जब तू, तू, तू यानी ईश्वर, ईश्वर, ईश्वर की रट हमारे अंतरमन में आ जाएगी तो बस काम बन जाएगा।
 ईश्वर सच्चे प्रेम के लिए लालायित रहते हैं। वे वहीं आकर्षित होते हैं जहां भक्त का सच्चा हृदय उन्हें पुकारता है।


Monday, October 1, 2012

अदृश्य आत्मा




हमारा शरीर तो दिखाई देता है। लेकिन आत्मा नहीं। आत्मा दिखाई नहीं दे सकती। भगवत् गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि इंद्रियों से सूक्ष्म मन है, मन से सूक्ष्म बुद्धि है और बुद्धि से भी सूक्ष्म आत्मा है। यानी आत्मा सूक्ष्मतम है। क्योंकि आत्मा ईश्वर का अंश है। मनुष्य ज्यादातर इंद्रियों, मन और बुद्धि के चक्कर में ही पड़ा रहता है। इसलिए वह आत्मा को नहीं जान पाता। संत कहते हैं कि आत्मा का आनंद या आत्मानंद अवर्णनीय है। आत्म साक्षात्कार करने से ईश्वर तक पहुंचा जा सकता है। यह कैसे संभव है? जब इंद्रियों, मन और बुद्धि को स्थिर रख कर ईश्वर में लय किया जाए। यह गहन ध्यान से संभव है। संत कहते हैं- धार्मिक ग्रंथ कहते हैं- गहन ध्यान मे ईश्वर से संपर्क ही मनुष्य जीवन का उद्देश्य है। वे पुकार रहे हैं- आओ, आओ, लेकिन हम गहन ध्यान में उतर कर उनसे संपर्क नहीं करना चाहते। यदि जीते जी ध्यान के जरिए ईश्वर से संपर्क नहीं हो पाया तो मृत्यु के बाद तो और नहीं होगा। इंद्रियों, मन और बुद्धि पर नियंत्रण ही तो असली उद्देश्य है मनुष्य जीवन का।

Friday, September 28, 2012

भगवान भी हमें पुकारते हैं


आज एक बहुत अच्छी कथा पढ़ने को मिली। एक भेड़ पालने वाले के पास सौ भेड़ें थीं। एक दिन शाम को भेड़ें चराने के बाद घर लाकर उसने गिनती की तो पाया कि कुल ९९ भेड़ें ही हैं। एक भेड़ गायब है। अंधेरा छाने लगा था। लेकिन उस एक भेड़ के लिए उसने अंधेरे की परवाह नहीं की। उसने टार्च लिया और भेड़ खोजने निकल पड़ा। रास्ते में उसे अपनी वह भेड़ एक झाड़ी में फंसी मिली। उसने सावधानी से उस भेड़ को झाड़ी से निकाला और घर लाकर उपचार किया।
 कथा है कि भगवान भी उस भेड़ चराने वाले की तरह हमें ढूंढ़ते रहते हैं। हम जो ईश्वर की राह से भटक गए हैं। ईश्वर हमें पुकारते रहते हैं। पुकारते रहते हैं। वे चाहते हैं कि हम बच्चे उनकी याद करें। उनसे प्यार करें और उनसे संबंध जोड़े रखें। फिर भी हम यदि नहीं सुनते तो वे इंतजार करते रहते हैं। पुकारते रहते हैं। कहते रहते हैं- मेरे बच्चे मेरे पास आओ। असली सुख मेरे ही पास है। आओ न मेरे पास।
 लेकिन हम समझते हैं कि भगवान को बाद में याद कर लेंगे। पहले संसार का सुख उठा लें। भगवान कहते हैं- संसार दुखों का घर है। यहां सुख मत ढूंढ़ो। सुख तुम्हें संसार में नहीं, मेरे पास मिलेगा। आओ, मेरे पास आओ।

Wednesday, September 26, 2012

भगवान की कृपा




संतों ने कहा है कि भगवान के किसी नाम का जप करना कल्याणकारक है। यह जप हृदय की गहराई से होनी चाहिए। अनेक लोग ऐसे हैं जो- राम, राम, राम का जप करते हैं और इसमें उन्हें खूब आनंद आता है। कुछ लोग- ओम नमः शिवाय का भी जप करते हैं। इसी तरह भगवान कृष्ण, दुर्गा, काली और भगवान के अन्य नामों का जप करने वाले भी हैं। भगवान के किसी एक रूप और नाम को पकड़ने से ही हुआ। संतों कहते हैं कि भगवान का भक्त एक बार दिल से उन्हें पुकारता है तो वे तुरंत उसके पास चले आते हैं। वे तो बस बाट जोहते रहते हैं। यह आकर्षण अत्यंत मनोहारी है। इधर भक्त भगवान को पुकारता है। भगवान तो सहज ही दिखाई नहीं देते, भक्त इसका बुरा नहीं मानता। वह कहता है- ठीक है आप छुपे रहिए लेकिन मैं आपको पुकारता रहूंगा। मैं जानता हूं आप मेरी पुकार सुन रहे हैं। मैं आपसे बातें भी करूंगा।  भले ही यह बात एकतरफा ही क्यों न हो। लेकिन मैं आपसे अपना संबंध बनाए रखूंगा। भले ही यह सिर्फ मेरी ही तरफ से क्यों न हो। आखिर कभी तो आप पिघलेंगे। तब भगवान के पास कोई चारा नहीं रहता। वे भक्त के हृदय की भावनाओं का आदर करते हैं। वे भक्त की तड़प का आदर करते हैं और उस पर कृपा करते हैं।

Tuesday, September 25, 2012

मूड का खराब होना


संतों ने कहा है कि मूड में रहने वाला व्यक्ति विकास नहीं कर पाता। उन्होंने सुझाव दिया है कि जिनका मूड किसी घटना के कारण खराब या अच्छा होता है, वे भीतर से कमजोर होते हैं। मूड है क्या? जरूरत से ज्यादा संवेदनशीलता होना मूडी होना है। जैसे कई बार आप बोर हो जाते हैं। यह ठीक नहीं है। बोर होते ही हमारे शरीर के हार्मोन घातक रसायन स्रावित करने लगते हैं। इस तरह हम बोर होकर खुद अपना ही नुकसान करते हैं। किसी ने कुछ कह दिया। हम दुखी हो गए। यह भी ठीक नहीं है। हालांकि दिमाग पर उसका असर कुछ देर पड़ना स्वाभाविक है। लेकिन जल्दी ही उस भाव को झटक देना चाहिए और कोई अच्छी बात सोचने लगना चाहिए। इससे हमारा दिलोदिमाग तो ठीक रहता ही है, हमारा मानसिक स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है। इसलिए हमें सबसे ज्यादा जो ध्यान रखना है वह है- मूड का अस्थिर न रहना। सदा ईश्वर के लिए ही सोचना, उन्हीं के लिए काम करना। इसका क्या मतलब? इसके लिए परमहंस योगानंद जी ने एक उपाय बताया है। उन्होंने कहा है- आप जो अच्छा काम कीजिए, सोचिए कि यह ईश्वर के लिए कर रहा हूं। बस हो गया  आपका काम। मान लीजिए आप भोजन कर रहे हैं। आप सोचिए कि यह भोजन मैं ईश्वर के लिए कर रहा हूं। मेरे भीतर बैठे ईश्वर, इस भोजन का आनंद ले रहे हैं। आप अपने कार्यालय का काम कर रहे हैं तो सोचिए कि यह काम मैं ईश्वर के लिए कर रहा हूं। इस तरह हम ईश्वर से जुड़े रहेंगे।

Friday, September 21, 2012

बूढ़ा शरीर



शरीर बूढा होता है तो व्यक्ति चाहता है कि उसकी मृत्यु जल्दी हो जाए। हालांकि घर के लोग ऐसा नहीं चाहते। जिस शरीर के प्रति मनुष्य जीवन भर आसक्त रहता है, वही एक वक्त परेशान करने लगता है। आंखों से दिखाई नहीं देता। पैरों से चला नहीं जाता। सुनने की क्षमता खत्म होती जाती है। तब लगता है कि शरीर साथ छोड़ रहा है। यानी यह शरीर भी अपना नहीं है। यह धोखा दे देता है। या कहें साथ नहीं निभा पाता। भगवत गीता के दूसरे अध्याय में भगवान कृष्ण ने कहा है- जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग कर नए वस्त्र धारण करता है, वैसे ही आत्मा पुराने शरीर को त्याग कर नया शरीर धारण करती है। गीता में भगवान ने यह भी कहा है-  जन्म लेने वाले व्यक्ति की मृत्यु निश्चित है और मरे हुए का जन्म निश्चित है । सिर्फ उन्हीं लोगों का जन्म नहीं होता जो सांसारिक कामनाओं से ऊपर उठ चुके हैं और ईश्वर के साथ तादात्म्य स्थापित कर चुके हैं। ऐसे साधक मोक्ष पाते हैं।

Thursday, September 20, 2012

देह और मन से परे होना




 भगवत गीता में भगवान ने कहा है कि आत्मा देह, मन और बुद्धि से परे है। यानी अत्यंत सूक्ष्म है। तुलसीदास ने कहा है- ईश्वर अंश जीव अविनासी। मनुष्य की आत्मा अविनाशी है। शास्वत है। वेदांत नेति नेति की शिक्षा देता है। साधक कहता है- मैं शरीर नहीं हूं, मैं मन नहीं हूं, मैं बुद्धि नहीं हूं। मैं हूं शुद्ध सच्चिदानंद। लेकिन जो देह से बहुत आसक्त हैं और देह को ही सब कुछ समझते हैं वे सूक्ष्म तत्व को ग्रहण नहीं कर पाते। शास्त्रों में कहा गया है- जब आप शांत और स्थिर हो जाते हैं। दिमाग को जहां- तहां दौड़ने से रुकता है तब आती है स्थिरता। मन कैसे शांत होगा? अभ्यास से। भगवत गीता में भगवान से अर्जुन ने कहा है- मन बहुत दृढ़ और बलवान है। उसे रोकना वायु को रोकने जैसा दुष्कर प्रतीत होता है। तो भगवान उत्तर देते हैं- हां, यह सत्य है। लेकिन अभ्यास और वैराग्य से मन को नियंत्रित करना संभव है।
एक व्यक्ति एक संत के पास शिष्य बनने गया। उसने दरवाजा खटखटाया। अंदर से संत ने पूछा- कौन? व्यक्ति ने उत्तर दिया- यही तो मैं जानने आया हूं कि मैं कौन हूं।

Wednesday, September 19, 2012

पिता जी की मृत्यु



पिछले ३० अगस्त को पिता जी की मृत्यु हो गई।  वे ९४ वर्ष के थे। लंबे समय से बीमार चल रहे थे। शारीरिक कष्टों से उन्हें मुक्ति मिली। मुखाग्नि मैंने दी। पिता जी को चिता पर जलते देख कर एक बार फिर लगा कि मनुष्य का अंत यही है। जिस आग से हम खाना पका कर खाते हैं। जाड़े में जिसकी आंच से गर्माते हैं, उसी अग्नि में हमें भस्म हो जाना है। गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि अग्नि भी मैं ही हूं। तो पिता जी को अग्नि के हवाले कर दिया। काफी देर तक उनके शव को जलते हुए देखता रहा। आग की लपटें उनके पार्थिव शरीर को लील रही थीं। धीरे- धीरे उनका शव राख हो गया। उस राख को एक नई मिट्टी की हांडी में रख कर पवित्र गंगा नदी में प्रवाहित किया और उन्हें अंतिम प्रणाम कहा। इस जन्म के पिता को अलविदा कहते हुए लगा- एक दिन मेरा बेटा भी इसी तरह मुझे हमेशा के लिए अलविदा कह देगा। यही मनुष्य की नियति है। जब सिर मुड़ा रहा था तो लगा कि न जाने किन बंधनों से मुक्त हो रहा हूं। पिता जी कहां से आए थे और कहां चले गए? निश्चय ही सूक्ष्म जगत से आए थे और वापस वहीं चले गए। शायद उनका दुबारा जन्म हो। किसी नए परिवेश में, नए शरीर में। एक बार फिर गीता के अध्याय दो के श्लोक याद आए। गीता ऐसे मौकों पर संजीवनी का काम करती है।

Wednesday, August 29, 2012

खान- पान में परहेज




शोध के परिणाम बताते हैं कि हमें हरी सब्जियां और फलों का सेवन ज्यादा करना चाहिए। तेल- घी का सेवन जरूरी है लेकिन बहुत ही कम। जितना तेल हम सब्जी बनाने में इस्तेमाल करते हैं, उतना पर्याप्त है। इसके लिए पूड़ी- पराठा खाने की जरूरत नहीं है। यह बार- बार साबित हो चुका है कि पूड़ी, पराठा, समोसे और खूब ज्यादा तली हुई खाद्य वस्तुएं, मैदा और ज्यादा चीनी हमारे लिए नुकसानदेह होता है। कुछ लोग कहते हैं कि इतना परहेज करेंगे तो जीने का मजा ही क्या रह जाएगा? लेकिन खूब अनियमित आहार लेने के बाद अगर हम बीमार पड़ते हैं तो फिर जीने का मजा और किरकिरा हो जाएगा। इसलिए पहले से ही क्यों न सावधान रहें। फल, हरी सब्जियां,  दही, दूध, पनीर, छेना, सूखे फल आदि का सेवन करना निश्चय ही हमारी सेहत के लिए फायदेमंद है। इसके अलावा खूब पानी पीना अच्छा है। डाक्टरों की सलाह है कि रोज कम से कम तीन लीटर पानी तो पीना ही चाहिए। यदि आपको दूध या दही सूट नहीं करता तो आप मट्ठा यानी छाछ पी सकते हैं। शोध से यह बात बार- बार सामने आई है कि मांसाहार हमारे शरीर को क्षति पहुंचाता है। हमें शाकाहार का आनंद उठाना चाहिए। स्वास्थ्य के लिए सबसे बेहतर उपाय है- ध्यान। जितना गहरा ध्यान होगा, मनुष्य उतनी ही शांति का आनंद उठा सकेगा।

Tuesday, August 28, 2012

शिरडी के साईंबाबा




शिरडी के साईं बाबा का मूल नाम क्या है, यह कोई नहीं जानता। वे महाराष्ट्र के शिरडी में आए तो उन्हें लोगों ने साईं बाबा के नाम से पुकारा और वे हिंदू- मुसलिम दोनों धर्मों के लोगों के लिए श्रद्धा के पात्र बन गए। कुछ विद्वानों के अनुसार उन्होंने कई सौ वर्ष पृथ्वी पर रहने के बाद १९१८ में अपना शरीर त्याग दिया। शिरडी के साईं बाबा का मुफ्त भंडारा आज भी चलता है। शिरडी में ही उनका मंदिर है जहां सोने के सिंहासन पर सोने का मुकुट धारण की हुई उनकी आकर्षक मूर्ति है। रोज कई हजार लोग उनका दर्शन करते हैं और उनके भंडारा में भरपेट प्रसाद ग्रहण करते हैं। उनके मंदिर में उनका दर्शन और प्रसाद ग्रहण करने वाले लोगों में एक मैं भी हूं। शिरडी के साईं बाबा का महत्वपूर्ण संदेश हमेशा याद रखने लायक है- सबका मालिक एक है। उनका दूसरा उपदेश है- श्रद्धा और सबूरी यानी भगवान में  गहरी श्रद्धा और संपूर्ण प्रयास के बाद आपको जो मिल गया, उसी में संतोष करना।

Monday, August 27, 2012

समर्थ रामदास

महान संत समर्थ रामदास




विनय बिहारी सिंह



 पंद्रहवीं शताब्दी के प्रसिद्ध संत थे। उनका जन्म महाराष्ट्र में १६०८ ईस्वी में हुआ था। वे भगवान राम के अनन्य भक्त थे। वे अपने शिष्यों को सिखाते थे- राम का नाम लो। राम में ही डूबे रहो। शारीरिक आवश्यकताओं के बारे में जरूरत से ज्यादा मत सोचो। अपने हृदय में सदा राम को विराजमान रखो। वे भोर में चार बजे उठ जाते थे और गोदावरी नदी में कमर तक खड़े हो कर दोपहर तक रामनाम का जाप करते थे। इसके बाद वे भिक्षा मांगने निकल पड़ते थे। भिक्षा में जो भी मिलता था, उसे अपने प्रिय भगवान राम को चढ़ाते थे और तब जाकर भोजन करते थे। उनका मूल नाम नारायण था। वे शिवाजी के प्रेरणा स्रोत थे। उनकी प्रसिद्ध रचनाओं में- दशाबोध, मानसे श्लोक (मन को संबोधित करते श्लोक), करुणाष्टक बहुत प्रसिद्ध हैं। उनका देहांत सन १६८२ में हुआ था। उन्होंने रामायण की रचना की जिसमें राम की लंका पर विजय का आकर्षक उल्लेख था। उनका कहना था- वासना, लालच, क्रोध, हिंसा और अहंकार आदि से सदा दूर रहना चाहिए। जो इनमें फंस जाता है वह दुख भोगता है। उनका कहना था कि राम का नाम जितनी बार दुहराया जाएगा, मनुष्य का कल्याण होगा।

Friday, August 24, 2012

किसान ने कोबरा को दाँत से काटकर मार डाला



नेपाल
नेपाल के किसान ने जिस साँप को काट कर मारा, वो कोबरा था
आपने ये तो सुना होगा कि साँप के काटने से किसी व्यक्ति की मौत हो गई, लेकिन आपने ये शायद ही सुना होगा कि किसी व्यक्ति ने उलटे साँप को काट लिया और फिर साँप मर भी गया.
ऐसा हुआ है नेपाल में. नेपाल की राजधानी काठमांडू से 200 किलोमीटर दक्षिणपूर्व स्थित एक गाँव में मंगलवार को ये घटना हुई.
नेपाल के एक किसान को धान के खेत में एक कोबरा ने काट लिया. बदले में किसान ने भी साँप को अपने दाँत से इतनी बार काटा कि साँप की मौत हो गई.
मोहम्मद सलमोद्दीन ने बीबीसी को बताया, "एक सँपेरे ने मुझे बताया था कि अगर कोई साँप तुम्हे काटे, तो बदले में तुम भी उसको उस समय तक काटते रहो कि उसकी मौत हो जाए और तुम्हें कुछ नहीं होगा."
मोहम्मद सलमोद्दीन साँप के काटने और फिर उसे मारने के बाद अस्पताल तो गए, लेकिन अब उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिल गई है.

कार्रवाई नहीं

अधिकारियों का कहना है कि उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी क्योंकि ये साँप लुप्तप्राय प्रजाति का नहीं था.
मोहम्मद सलमोद्दीन ने बिराटनगर में बीबीसी नेपाली के बिक्रम निरौला को बताया, "जब मुझे लगा कि साँप ने मुझे काट लिया है, तो मैं घर गया और टॉर्च लेकर आया और देखा कि वो एक कोबरा था. इसके बाद मैंने उसे काटकर मार डाला."
साँप को दाँत से काटकर मारने के बाद मोहम्मद सलमोद्दीन ने कहा कि वे अपनी दिनचर्चा में ऐसे व्यस्त हो गए, जैसे कुछ हुआ ही न हो. लेकिन परिजनों, पड़ोसियों और पुलिस के दबाव में वे अस्पताल जाने को तैयार हुए.
माना जा रहा है कि जो साँप मारा गया, वो सामान्य कोबरा था. नेपाल में कई तरह के साँप पाए जाते हैं, जिनमें से कई ज़हरीले होते हैं और इनमें कोबरा भी शामिल है.
समाचार एजेंसी एएफ़पी के मुताबिक़ आकलन ये है कि नेपाल में हर साल साँप के काटने के 20 हज़ार मामले सामने आते हैं. इनमें से ज़्यादातर मामले दक्षिणी तराई क्षेत्र से आते हैं और क़रीब हज़ार लोगों की मौत भी हो जाती है.