Tuesday, October 30, 2012

नजीर की एक रचना



इस दुनिया या संसार के बारे में समय समय पर विभिन्न साधु- संतों ने अपने विचार प्रकट किए हैं। शायर नजीर ने दुनिया के बारे में जो कुछ लिखा है, उसे आप भी पढ़ना चाहेंगे। नजीर की यह रचना मैंने बार- बार पढ़ी और अच्छा लगा। आप भी पढ़ें-

है बहारे बाग दुनिया चंद रोज।
देख लो इसका तमाशा चंद रोज।।

ऐ मुसाफिर कूच का सामान कर।
इस जहां में है बसेरा चंद रोज।।

फिर कहां तुम और मैं ऐ दोस्तों।
साथ है मेरा तुम्हारा चंद रोज।।

क्या सताते हो दिले बेजुर्म को।
जालिमों है यह जमाना चंद रोज।।

याद कर तू ऐ `नजीर' कब्रों के रोज।
जिंदगी का है भरोसा चंद रोज।।

 कैसी लगी नजीर की यह रचना?

1 comment:

संगीता पुरी said...

बहुत अच्‍छी ..
महान पुरूषों की रचनाएं कालजयी होती है.