Friday, March 15, 2013

एक बहुत बढ़िया कथन


मैंने एक बहुत अच्छा कथन पढ़ा। किसी महापुरुष ने कहा है(नाम नहीं दिया गया है)कि यदि कोई ईश्वर पर विश्वास करता है उससे ईश्वर के बारे में कुछ कहने की जरूरत नहीं है। और जो ईश्वर पर विश्वास नहीं करता, उससे भी आपको कुछ कहने की जरूरत नहीं है क्योंकि आप उसे लाख समझाएंगे कि ईश्वर है, हम ईश्वर की ही संतानें हैं तो वह नहीं मानेगा। अपना तर्क देता रहेगा। इसलिए जो ईश्वर में विश्वास करता है, उससे और जो विश्वास नहीं करता, उससे कोई तर्क करना ही नहीं चाहिए।

उसे कुछ समझाना ही नहीं चाहिए।

Monday, March 11, 2013

क्यों कम हो चले हैं परहित की सोचने वाले?



मित्रों, आज कोलकाता के धर्मतल्ला इलाके में डेकर्स लेन स्थित एक प्रसिद्ध चाय की दुकान पर गया। वहां चाय पी तो पाया कि कप छोटे साइज के हो गए हैं। चाय का जायका भी थोड़ा मद्धिम हो गया है। यानी महंगाई खाने- पीने की चीजों का स्तर लगातार गिरा रही है। आप कहेंगे,यह कोई नई बात नहीं है। हां। लेकिन इस पर गौर करना जरूरी है। यह कोई निराशावाद नहीं है। स्थिति का मूल्यांकन है। जो स्वादिष्ट और बड़े साइज की मिठाइयां हम अपेक्षाकृत कम कीमत पर खा चुके हैं,वे आज दुर्लभ लग रही हैं। हर जगह स्तर में गिरावट आई है। तो हम विकास कर रहे हैं या पीछे जा रहे हैं? भारत समेत सारी दुनिया में तो अरबपतियों की संख्या बढ़ रही है। लेकिन साथ ही अपराध और धोखाधड़ी, भरोसे पर चोट भी बढ़ रही है। परहित या परसेवा करने वाले लोग और संस्थाएं तो हैं लेकिन आज कितने लोग आम आदमी के लिए तालाब खुदवाते हैं, स्कूल या कालेज खुलवाते हैं। स्कूल, कालेज और यहां तक कि विश्वविद्यालय भी प्राइवेट खुलने लगे हैं। अस्पताल तो अब प्राइवेट ही खुल रहे हैं। आम आदमी के हित की बात सोचने वाले कहां गए? हां, कुछ साधु- संत और उनकी संस्थाएं आज भी आम आदमी के लिए ईमानदारी से लगातार काम कर रही हैं। ऐसी संस्थाओं में एक है योगदा सत्संग सोसाइटी आफ इंडिया? और भी संस्थाएं हैं। भारत सेवाश्रम संघ और रामकृष्ण मिशन भी है। और भी संस्थाएं हैं। लेकिन योगदा सत्संग (संस्थापक- परमहंस योगानंद) ने क्रिया योग इच्छुक साधकों को दे कर जो जनकल्याण कर रहा है, वह प्रणम्य है। यह संस्था जन सेवा भी लगातार कर रही है। 

मैं निराश नहीं हूं। सेवा करने वाले साधु और संस्थाएं ही युवा पीढ़ी में प्रेरणा भरने के लिए काफी है। काश राजनीतिक पार्टियों में भी देश के आम आदमी को खुशहाल करने की धुन सवार हो पाती।  युवा पीढ़ी में सुगबुगाहट है। आज की युवा पीढ़ी ही तस्वीर बदलेगी। क्या पता कल को कुछ चमत्कार हो और राजनीतिक पार्टियां-    परहित सरिस धर्म नहिं भाई    का मर्म समझने लगें।

Friday, March 1, 2013

अब आई कमाल की लचीली बैटरी



जैसन पॉलमर
 विज्ञान एवं तकनीकी मामलों के संवाददाता

courtesy- BBC Hindi

इस बैटरी को तीन गुना तक खींच सकते हैं. आजकल बैटरी के इस्तेमाल के बिना तो जैसे आप ज़िदगी की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं. आसपास की न जाने कितनी चीज़ों में हम क्लिक करें बैटरी का इस्तेमाल करते हैं. मसलन, घड़ी, मोबाइल फ़ोन, इनवर्टर, कार, इत्यादि चीज़ें तो झटके से ध्यान में आती हैं. महानगरों में कई लोग ऐसे स्वास्थ्य उपकरणों को भी साथ रखते हैं जो बैटरी से ही चलते हैं. संबंधित समाचार15 साल चलने वाली मोबाइल बैटरीअधिक बैट्री खाते हैं मुफ़्त के ऐप्सई-शर्ट के विकास की संभावना बढ़ीक्लिक करें बैटरी के बिना जब हमारा आपका काम नहीं चल सकता तो उसके साथ वैज्ञानिक समुदाय प्रयोग भी ख़ूब कर रहा है.

अब वैज्ञानिकों ने ऐसी बैटरी बना ली है जिसे आप खींचकर बड़ा कर सकते हैं, वो भी तीन गुना तक. वायरलेस चार्ज होगी बैटरी"बैटरी को स्ट्रैचबल बनाना बेहद चुनौतीपूर्ण काम था क्योंकि ऐसा करने से बैटरी की क्षमता पर असर पड़ता है. लेकिन हमने कई तरीकों का इस्तेमाल किया." - जॉन रोजर्स, प्रोफेसर और शोधकर्ता, इल्यानोइस यूनिवर्सिटी पिछले कुछ दिनों में ऐसे इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों का उत्पादन बढ़ा है जिन्हें खींचकर बढ़ाया जा सकता है. ऐसे ही उत्पादों के लिए लचीली बैटरी को तैयार किया गया है. 'आइडिया इन नेचर कम्यूनिकेशन' में 'स्ट्रेचेबल पॉलीमर' के इस्तेमाल से ऐसी बैटरियों को बनाया गया है. इल्यानोइस यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर और वरिष्ठ लेखक जॉन रोजर्स ने बीबीसी से कहा, “बैटरी को स्ट्रेचेबल बनाना बेहद चुनौतीपूर्ण काम था क्योंकि ऐसा करने से बैटरी की क्षमता पर असर पड़ता है. लेकिन हमने कई तरीकों का इस्तेमाल किया.”

जॉन रोजर्स हाल के वर्षों तक नार्थ वेस्टर्न यूनिवर्सिटी में लचीले इलेक्ट्रानिक उत्पादों को विकसित करने की विधि पर काम करते रहे थे. इस दौरान वे किसी भी सर्किट को बनाकर लचीले पॉलीमर में तैयार करते थे और उसे वैसी तार से कनेक्ट करते थे, जिसे खींचने पर ख़ास असर नहीं पड़े. लेकिन बैटरी पर इस तरह के प्रयोग काम नहीं कर पा रहे थे. क्योंकि परंपरागत तौर पर बैटरी किसी इलेक्ट्रिक सर्किट के मुक़ाबले काफ़ी बड़ी होती है. बैटरी को छोटा बनाने में इस बात की आशंका रहती है कि उसकी पावर भी कम हो जाएगी.

इस्तेमाल बढ़ने की उम्मीद

लचीली बैटरियों का इस्तेमाल तेजी से बढ़ने की उम्मीद ऐसे में जॉन रोजर्स ने चक्करदार बनावट का उपयोग किया, जिसमें स्ट्रेचेबल पॉलीमर के इस्तेमाल से अंग्रेज़ी के 'S' अक्षर का आकार दिया गया. इस लचीली बैटरी को उसके सामान्य आकार से तीन गुना तक खींचा जा सकता है. इन शोधकर्ताओं का दावा है कि बैटरी को थोड़ी दूरी के अंतराल से क्लिक करें वायरलेस से भी चार्ज किया जा सकता है. जॉन रोजर्स को भरोसा है कि उनके इस उत्पाद का इस्तेमाल तेज़ी से बढ़ेगा.
वे कहते हैं, “इसका सबसे ज़्यादा उपयोग उन उत्पादों में होगा जो स्वास्थ्य उपकरण हैं और शरीर की त्वचा से जुड़े होते हैं.”