tag:blogger.com,1999:blog-24464933800005596842024-03-13T13:16:33.596-07:00divya prakashthis blog is spiritualAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/08160854592562131489noreply@blogger.comBlogger866125tag:blogger.com,1999:blog-2446493380000559684.post-11735870707083780112015-02-14T02:39:00.001-08:002015-02-14T02:39:10.620-08:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div dir="ltr">
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red;"><span style="font-size: x-large;">महान योगी <br />श्री श्री परमहंस योगानंद </span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red;"><span style="font-size: x-large;"><span style="color: blue;"><span style="font-size: medium;">विनय बिहारी सिंह</span></span> </span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<br /><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhjJxrFg5wpdN_mdk9kC37lzBpNu3cNw10uq06Z6VglIwFoHgBmwFXdW0O5OofISSj4MHOKfpBl8JE1eW7LNNny5WnaQwBzVT5CupsEj5kAxDdqd-1Seh_r8kep0lYzHp60xPCfKQF-Auld/s1600/Guru+ji+9.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhjJxrFg5wpdN_mdk9kC37lzBpNu3cNw10uq06Z6VglIwFoHgBmwFXdW0O5OofISSj4MHOKfpBl8JE1eW7LNNny5WnaQwBzVT5CupsEj5kAxDdqd-1Seh_r8kep0lYzHp60xPCfKQF-Auld/s1600/Guru+ji+9.jpg" height="320" width="268" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<br />महान योगी श्री श्री
परमहंस योगानंद पश्चिमी देशों में योग के प्रणेता के रूप में जाने जाते
हैं। उनकी शिक्षा पद्धति क्रिया योग पर आधारित है। क्रिया योग की संक्षिप्त
जानकारी देने से पहले आइए जानें इस महान संत के जीवन के बारे में। श्री
श्री परमहंस योगानंद का जन्म पांच जनवरी १८९३ को उत्तर प्रदेश के नगर
गोरखपुर में हुआ था। बचपन से ही उनमें गहरी आध्यात्मिक रुझान थी। <br /><span style="font-family: Mangal;"> वे बचपन में हिमालय में साधना के लिए घर से भागे लेकिन घर वालों ने उन्हें पकड़ लिया। उनके पिता श्री भगवती चरण घोष</span>
(१८५३-१९४२) बंगाल- नागपुर रेलवे (बीएनआर) में उपाध्यक्ष (वाइस
प्रेसीडेंट) के समकक्ष पद पर कार्यरत थे। यात्रा उनके पिता की नौकरी का ही
हिस्सा थी, इसलिए उनका परिवार अनेक शहरों में रहा। उनकी माता ज्ञानप्रभा
घोष (१८६८- १९०४) अत्यंत धार्मिक और प्रेममयी महिला
थीं। श्री श्री परमहंस योगानंद <wbr></wbr>के माता- पिता विख्यात संत, योगावतार श्यामा चरण लाहिड़ी (लाहिड़ी महाशय) के शिष्य थे। माता बचपन में उन्हेंं
अनेक धार्मिक कथाएं सुनातीं। लेकिन जब परमहंस जी च लगभग ११ वर्ष के बच्चे
थे, तभी उनकी माता का देहांत हो गया। वैराग्य ने तब उन पर और गहरे प्रभाव डाला। <br /><span style="font-family: Mangal;">
सन १९१५ मेें कोलकाता विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के
बाद श्री योगानंद जी को उनके गुरु स्वामी श्रीयुक्तेश्वर गिरि जी ने
संन्यास की दीक्षा दी। श्रीयुक्तेश्वर जी ने भविष्यवाणी की थी कि, भारत की
प्राचीन क्रिया योग ध्यान प्रविधि का समूचे विश्व में प्रचार करना ही उनके
जीवन का मूल उद्देश्य होगा। उन्हें सन १९२० में अमेरिका के बोस्टन शहर में
होने वाले धार्मिक उदारवादियों के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भारत के
प्रतिनिधि के रूप में भाग लेने का</span> निमंत्रण मिला। उन्होंने
अपने गुरु स्वामी श्रीयुक्तेश्वर जी की अनुमति से यह निमंत्रण स्वीकार कर
लिया। इस प्रकार वे अमेरिका गए और वहां ही अपने जीवन का अधिकांश समय
बिताया। वे बीच में अपने गुरु के देह त्याग के सूक्ष्म संकेत पर १९३५ में
भारत आए और कुछ महीने गुरु प्रदत्त कार्य कर १९३६ वापस चले गए। लेकिन भारत
में अपने कार्य में उनकी गहरी रुचि थी। उनकी रुचि के कारण ही भारत में
उनका कार्य व्यापक रूप से फैला। महासमाधि के समय उन्होंने भारत की प्रशंसा
में ही कविता पढ़ी थी। परमहंस योगानंद गुरु परंपरा में अंतिम गुरु थे।
उनके बाद जो भी संन्यासी संघ के शीर्ष पद पर होता है, वह कुछ सन्यासियों को
अधिकृत करता है जो क्रिया योग की दीक्षा देने का माध्यम बनते हैं। श्री
श्री परमहंस योगानंद की शिक्षावली, पाठ ( लेसन) के रूप में हर माह डाक से
घर आ जाती है। इन पाठों में व्यक्त पद्धतियों का अनुसरण करने पर साधक को
अद्भुत लाभ मिलता है। इन पाठों में साधना के समूचे तत्व
विद्यमान हैं। साधना पद्धतियां साधक को नई चेतना में ले जाती हैं- ईश्वर की
ओर। यदि किसी साधक को कोई चीज समझ में नहीं आती तो वह
बिना हिचक किसी योगदा संन्यासी से मिल कर शंका निवारण कर सकता है या रांची
(झारखंड) मुख्यालय में पत्र लिख कर जानकारी ले सकता है। योगदा का अपना
वेबसाइट भी है, वहां भी इस बारे में पूरी जानकारी उपलब्ध है। <br /><span style="font-family: Mangal;">
अपनी शिक्षाओं के प्रसार के लिए श्री श्री परमहंस योगानंद ने योगदा सत्संग
सोसाइटी अॉफ इंडिया/सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप की स्थापना की।
ये दोनों संस्थाएं आध्यात्मिक और परोपकारी संस्थाएं है।
योगदा सत्संग सोसाइटी आफ इंडिया की स्थापना श्री श्री परमहंस योगानंद ने सन
१९१७ में की थी। परमहंस जी विख्यात आध्यात्मिक पुस्तक ''आटोबायोग्राफी अॉफ
अ योगी'' (हिंदी अनुवाद- ''योगी कथामृत'') के लेखक हैं। उन्होंने समूचे
विश्व के आध्यात्मिक सत्यान्वेषियों के लिए यह अनूठी पुस्तक लिखी जो विश्व
की ३४ भाषाओं में अनूदित हो चुकी है। इसका उर्दू अनुवाद भी उपलब्ध है। <br />श्री
श्री परमहंस योगानंद की शिक्षावली क्रिया योग पर केंद्रित है। यह एक परम
पवित्र आध्यात्मिक विज्ञान की विधा है, जो आदि काल से चली आ रही है।
संप्रदायवाद से परे इन शिक्षाओं में जीवन के संपूर्ण तथ्यों और जीवन- दर्शन
प्रत्यक्ष रूप से समाहित है जिसमेें मनुष्य की बहुआयामी सफलता और सुखी
जीवन के तत्व हैं। इसके अलावा इन शिक्षाओं में जीवन का चरम उद्देश्य -
आत्मा का परमात्मा से मिलन के लिए ध्यान के तरीके बताए गए हैं।<br />जैसा कि परमहंस योगानंद ने अपने लक्ष्य और आदर्शों को व्यक्त किया है- योगदा सत्संग सोसाइटी का कार्य-
विश्व परिवार के विविध प्रकार के लोगों और धर्मों के प्रति प्रेम व सद्भाव
के लिए गहरी समझ को प्रोत्साहित करना और सभी संस्कृतियों और राष्ट्रों के
लोगों के बीच मनुष्य की आत्मा की सुंदरता, अभिजात्यता और आध्यात्मिकता का
अनुभव करने के लिए प्रेरित करना है।<br />योगदा सत्संग सोसाइटी अॉफ इंडिया
९० वर्षों से भी अधिक समय से इसके संस्थापक श्री श्री परमहंस योगानंद के
आध्यात्मिक निर्देशों और मनुष्य की सेवा का कार्य कर रही है। <br />आज पूरे
देश में योगदा सत्संग सोसाइटी आफ इंडिया के १८० केंद्र हैं। सोसाइटी देश भर
में २३ शैक्षणिक संस्थानों का संचालन कर रही है। यह संस्था कई सामाजिक,
परोपकारी गतिविधियों, जैसे गरीबों और जरूरतमंदों की चिकित्सा सेवा,
प्राकृतिक आपदा से पीड़ित लोगों के लिए राहत कार्य, कुष्ठ रोगियों के लिए
चिकित्सा सेवा, गरीब मेधावी विद्यार्थियों के लिए आर्थिक सहायता और
छात्रवृत्ति भी देती है। <br />अपने लेखों व भारत, अमेरिका और यूरोप के सघन
दौरोंं में अपने व्याख्यानों द्वारा व अनेक आश्रम व ध्यान केंद्र बनाकर
उनके माध्यम से हजारों सत्यान्वेषियों को उन्होंने योग के प्राचीन
विज्ञान- क्रिया योग और दर्शन से</span> तथा ध्यान पद्धतियों से परिचित कराया। इस समय योगदा सत्संग सोसाइटी अॉफ इंडिया<span style="font-family: Mangal;">/सेल्फ-रियलाइजेशन फेलोशिप की सं</span>घमाता
और अध्यक्ष के रूप में श्री श्री मृणालिनी माता हैं। इसके पहले १९५५ से
लेकर २०१० दया माता यह जिम्मेदारी संभाल रही थीं। उनके पहले राजर्षि
जनकानंद जी लगभग दो वर्ष तक इस शीर्ष पद पर रहे। उनके पहले स्वयं श्री श्री
परमहंस योगानंद ही अध्यक्ष थे। वे सात मार्च १९५२ को महासमाधि में लीन
हुए। अर्थात मृणालिनी माता श्री श्री परमहंस योगानंद जी के बाद तीसरी
अध्यक्ष और दूसरी संघमाता हैं। <br /><span style="font-family: Mangal;"> अब एक संक्षिप्त
जानकारी क्रिया योग के बारे में। वैसे तो कुछ प्राचीन यौगिक विधि निषेधों
के कारण क्रिया योग का पूर्ण विवरण देना वर्जित
है। संपूर्ण रूप से इसे दीक्षा के समय ही जाना जा सकता है। इन पंक्तियों
के लेखक ने यह दीक्षा ली है। हर साल योगदा सत्संग सोसाइटी अॉफ इंडिया के
माध्यम से अनेक लोग दीक्षा लेते हैं। फिर भी श्री श्री परमहंस योगानंद जी
ने अपनी पुस्तक ''आटोबायो</span>ग्राफी अॉफ अ योगी'' में जितना बताना संभव है, बता दिया है। उसे ही यहां दिया जा रहा है- <br />''क्रिया
योग एक सरल मनःकायिक प्रणाली है जिसके द्वारा मानव रक्त कार्बन रहित होकर
आक्सीजन से प्रपूरित हो जाता है। इस अतिरिक्त आक्सीजन के अणु प्राण- धारा
में रूपांतरित हो जाते हैं, जो मस्तिष्क और मेरुदंड के चक्रों में नवशक्ति
का संचार कर देती है। शिराओं में बहने वाले अशुद्ध रक्त का संचय रुक जाने
से योगी उत्तकों में होने वाले ह्रास को रोक सकता है या कम कर सकता है।
उन्नत योगी अपनी कोशिकाओं को प्राणशक्ति में रूपांतरित कर देता है। एलाइजा,
इसा मसीह,कबीर औऱ अन्य महानुभाव क्रिया योग या उसी के समान किसी प्रविधि
के प्रयोग में अवश्य निष्णात थे, जिसके द्वारा वे अपने शरीर को अपनी इच्छानुसार प्रकट या अंतर्धान कर सकते थे। ''<br /><span style="font-family: Mangal;">
परमहंस योगानंद पर पिछले साल अमेरिका में एक फिल्म बनी है- अवेक, द लाइफ
आफ योगानंद। इसका निर्देशन दो मशहूर महिलाओं ने किया है- पावला डी फ्लोरियो
और लिसा ली मैन। इसके निर्माता हैं- पीटर राडर। फ्लोरियो आस्कर नामांकित
निर्देशक हैं। वे टेलीविजन प्रोड्यूसर भी हैं। यह फिल्म कई अवार्ड जीत चुकी
है। अब भारत में इस फिल्म के रिलीज होने की प्रतीक्षा की जा रही है। इन
पंक्तियों के लेखक ने निर्देशकों से ई मेल के माध्यम से संपर्क किया था।
उनका कहना है कि वे भारत में किसी स्पांसर की प्रतीक्षा कर रहे हैं। इस
फिल्म की शूटिंग </span>लगभग ३० देशों में हुई है। जाहिर है भारत में जिन
जगहों से परमहंस जी जुड़े हैं, इस फिल्म में उनका भी दृश्य है। लास एंजिलिस
टाइम्स ने इस फिल्म को गहरे प्रभावित करने वाला बताय है। <br />------</div>
<div dir="ltr">
------------------------<wbr></wbr>------------------------------<wbr></wbr>------</div>
<div style="text-align: left;">
<br /><h2>
<span style="color: red;"><b>२० दिन के बाद भी उनका पार्थिव शरीर जस का तस </b></span></h2>
</div>
<div style="text-align: left;">
देहांत के २० दिन के बाद भी उनका पार्थिव शरीर जस का तस था<br />परमहंस
जी द्वारा लिखित पुस्तक ''आटोबायोग्राफी आफ अ योगी'' के अंतिम हिस्से में
इस घटना का उल्लेख है। इसका शीर्षक है- ''जीवन में भी योगी और मृत्यु मेें
भी''। उसका अनुवाद आप भी पढ़ें-<br /><br />श्री श्री परमहंस योगानंद जी ने
लॉस एंजिलिस, कैलिफोर्निया (अमेरिका) में सात मार्च १९५२ को भारतीय राजदूत
श्री विनय रंजन सेन के सम्मान के लिए आयोजित भोज के अवसर पर अपना भाषण
समाप्त करने के बाद ''महासमाधि'' (एक योगी का सचेतन अवस्था में देह त्याग) में प्रवेश किया। <br /> विश्व
के महान गुरु ने योग के मूल्य (ईश्वर- प्राप्ति के लिए वैज्ञानिक
प्रविधियों) को जीवन में ही नहीं बल्कि देहांत के बाद भी प्रदर्शित किया।
उनके देहावसान के कई सप्ताह बाद भी उनका अपरिवर्तित चेहरा अक्षयता की दिव्य
कांति से आलोकित था।<br />फारेस्ट
लॉन मेमोरियल- पार्क, लॉस एंजिलिस (जहां इस महान गुरु का पार्थिव शरीर
अस्थायी रूप से रखा गया है) के निदेशक श्री हैरी टी रोवे ने सेल्फ
रियलाइजेशन फेलोशिप को एक प्रमाण पत्र भेजा था, जिसके कुछ अंश निम्नलिखित हैंः<br />''परमहंस
योगानंद के पार्थिव शरीर में किसी भी प्रकार के विकार का लक्षण नहीं
दिखाई पड़ना हमारे लिए एक अत्यंत असाधारण और अपूर्व अनुभव है। .. उनके
देहांत के बीस दिन बाद भी उनके शरीर में किसी प्रकार का विघटन नहीं दिखाई
पड़ा। न तो त्वचा के रंग में किसी प्रकार परिवर्तन के संकेत थे और न
शरीर के उत्तकों में शुष्कता आई प्रतीत होती थी। शवागार (मार्चुअरी) के
इतिहास में हमें जहां तक विदित है, पार्थिव शरीर की परिपूर्ण संरक्षण की
ऐसी अवस्था अद्वितीय है। .. योगानंद का पार्थिव शरीर स्वीकार करते समय
शवागार के कर्मचारियों को यह आशा थी कि उन्हें शवपेटिका के कांच के ढक्कन
से आमतौर से बढ़ते शारीरिक क्षय के चिह्न दिखाई पड़ेंगे। हमारा विस्मय
बढ़ता गया, जब निरीक्षण के अंतर्गत दिन पर दिन बीतते गए, लेकिन उनकी देह पर
परिवर्तन के कोई चिह्न दिखाई नहीं पड़े।... योगानंद की देह निर्विकारता
की अद्भुत अवस्था में थी। <br /><span style="font-family: Mangal;"> </span>''किसी
भी समय उनके शरीर से तनिक भी दुर्गंध नहीं आई। २७ मार्च को शवपेटिका पर
कांसे के ढक्कन को बंद करने के पूर्व योगानंद का शारीरिक रूप ठीक वैसा ही
था जैसा ७ मार्च को। २७ मार्च को भी उनका शरीर उतना ही ताजा और विकाररहित
दिखाई पड़ा, जितना कि उनके देहांत वाली रात को। २७ मार्च को ऐसा कोई कारण
नहीं दिखा जिससे कहा जा सके कि उनके शरीर में किसी भी प्रकार का थोड़ा भी
विकार आया हो। इन कारणों से हम फिर बताना चाहते हैं कि परमहंस योगानंद का
उदाहरण हमारे अनुभव में अभूतपूर्व है। <br />------------------------------<wbr></wbr>-------------------------<br /><h2>
<span style="color: red;"><b>उनके
सम्मान में डाक टिकट</b></span></h2>
</div>
<div dir="ltr">
श्री श्री
परमहंस योगानंद की महासमाधि की पच्चीसवीं वर्षगांठ पर भारत सरकार ने, उनके
सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया था। इस डाक- टिकट के साथ, भारत सरकार ने एक पर्चा प्रकाशित किया, जिसका एक अंश इस प्रकार है-<br />''ईश्वर
के लिए प्रेम और मानवता की सेवा का आदर्श परमहंस योगानंद के जीवन में
पूर्ण रूप से व्यक्त हुआ.. यद्यपि उनका अधिकांश जीवन भारत के बाहर व्यतीत
हुआ, फिर भी उनका स्थान हमारे महान संतों में है। उनका कार्य पहले से अधिक
बढ़ और चमक रहा है, और ईश्वर की तीर्थ यात्रा के पथ पर हर दिशा से लोगों को आकर्षित कर रहा है। </div>
</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08160854592562131489noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2446493380000559684.post-11485799770379165572014-08-04T04:15:00.004-07:002014-08-04T04:15:48.589-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="g-container">
<h1>
शीशे की तरह दिखेंगे शरीर के अंग</h1>
<h1>
<span style="font-size: small;">Courtesy-BBC Hindi </span></h1>
</div>
<div class="g-container">
<div class="datestamp">
<span class="lastupdated"></span> </div>
</div>
<div class="module">
<div class="image img-w624">
<img alt="किडनी के ऊतक" height="351" src="http://wscdn.bbc.co.uk/worldservice/assets/images/2014/08/01/140801084303_seethrough_tissue_624x351_binyangandvivianagradinaru.jpg" width="624" /></div>
</div>
<div class="ingress">
वैज्ञानिकों ने एक ऐसी तकनीकी विकसित की है जिससे पूरा शरीर शीशे की तरह पारदर्शी हो सकता है.</div>
'सेल' नाम की विज्ञान पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने इस तकनीक की जानकारी दी है.<br />
<div class="module inline-contextual-links">
<div class="list li-relatedlinks">
<div class="content">
</div>
</div>
</div>
<h2 class="strapline">
<span style="font-size: small;">अभी तक चूहों और गिलहरी जैसे स्तनपायी जानवरों पर
इसका प्रयोग किया गया है लेकिन इसका प्रयोग मानव शरीर में विषाणुओं के
प्रसार और कैंसर का पता लगाने में भी किया जा सकता है.</span></h2>
क़रीब एक सदी से वैज्ञानिक शरीर को पारदर्शी रूप
से देखने का प्रयास कर रहे थे लेकिन अधिकांश तकनीकें उत्तकों को नुक़सान
पहुंचा सकती हैं.<br />
कोशिकाओं में मौज़ूद लिपिड (वसा) के मोटे कण
प्रकाश किरणों को विकृत कर उत्तकों को अपारदर्शी बना सकते हैं लेकिन उन्हें
विघटित करने में प्रयोग होने वाली प्रक्रिया से <a class="page" href="http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2012/08/120824_organ_donation_ar.shtml"><span class="label">क्लिक करें </span><span class="link-title">
अंग</span></a> कमज़ोर हो सकते हैं और उनका आकार बिगड़ सकता है.
<br />
<div class="module">
<div class="image img-w624">
<img alt="आंत के ऊतक" height="351" src="http://wscdn.bbc.co.uk/worldservice/assets/images/2014/08/01/140801084502_intestinal_tissues_624x351__nocredit.jpg" width="624" /></div>
</div>
कैलिफ़ोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने पूर्व के वैज्ञानिक कामों के आधार पर एक तीन स्तरीय तकनीक विकसित की है.<br />
<ul>
<li>एक नरम प्लास्टिक की झिल्ली उत्तकों को सहारा देती है.</li>
<li>ख़ून के प्रवाह के ज़रिए आनुवांशिक डिटर्जेंट
(साफ़ करने वाले पदार्थ) को लगातार डाला जाता है. यह लिपिड को घोलता जाता
है और अंगों को पारदर्शी बनाता जाता है.</li>
<li>महत्वपूर्ण जोड़ों को पहचानने के लिए इस मिश्रण में पहचान करने वाले रंगों और अणुओं को मिलाया जा सकता है.</li>
</ul>
इस विधि का चूहों और गिलहरियों में प्रयोग कर वैज्ञानिक उनकी <a class="page" href="http://www.bbc.co.uk/hindi/science/2013/04/130415_kidney_in_lab_rd.shtml"><span class="link-title">
किडनी</span></a>, दिल, फेफड़ों और आंतों को तीन दिन में देखने में सफल रहे. उन्होंने दो हफ़्ते में उनके पूरे शरीर को पारदर्शी रूप से देख लिया.
<br />
<h2>
वैज्ञानिकों का सपना</h2>
रिपोर्ट के प्रमुख लेखक डॉक्टर विवियाना गार्डिनारू कहते हैं कि यह जीव वैज्ञानिकों के सपनों को सच करने जैसा है.<br />
वो कहते हैं कि स्कैनिंग तकनीक की मदद से डॉक्टरों
को शरीर को देखने में मदद मिल रही है. लेकिन वो यह नहीं जान पा रहे है कि
कोई कोशिका या उत्तक कर क्या रहे हैं. मगर इस तकनीक के ज़रिए शरीर के उन
अंगों की पहचान और उनके काम की प्रामाणिक जानकारी जुटाई जा सकती है, जिसके
बारे में हम जानकारी हासिल करना चाहते हैं.</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08160854592562131489noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2446493380000559684.post-13767936423762576902014-03-21T22:16:00.003-07:002014-03-21T22:16:55.239-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="g-container">
<div class="blq-rst" id="blq-mast">
<div class="blq-masthead-container blq-default-worldwide" id="blq-mast-bar">
<div id="blq-blocks">
<a href="http://www.bbc.co.uk/" hreflang="en-GB"> <abbr class="blq-home" title="British Broadcasting Corporation"> <img alt="BBC" height="24" src="http://static.bbci.co.uk/frameworks/barlesque/2.60.6/desktop/3.5/img/blq-blocks_grey_alpha.png" width="84" /> </abbr> </a> </div>
</div>
</div>
<h1>
कान के मैल से जुड़ी पांच अहम बातें</h1>
</div>
<div class="g-container">
<br /></div>
<div class="module">
<div class="image img-w624">
<img alt="कान का मैल" height="351" src="http://wscdn.bbc.co.uk/worldservice/assets/images/2014/03/19/140319083524_ear_wax_624x351_spl_nocredit.jpg" width="624" /></div>
</div>
<div class="ingress">
कान का मैल कुछ उन शारीरिक पदार्थों में से एक है जिसकी चर्चा करना अमूमन हम पसंद नहीं करते हैं.</div>
शरीर के अन्य स्रावों की तरह, हम में से ज़्यादातर
अकेले में इससे निपटना पसंद करते हैं. तब भी कई लोगों के लिए यह एक आकर्षण
का विषय है.<br />
पहले इसका इस्तेमाल एक लिप बाम और ज़ख़्मों पर मरहम के तौर पर किया जाता था<br />
लेकिन यह इससे कुछ ज़्यादा कर सकता है. हाल के शोध
से पता चलता है कि यह शरीर में प्रदूषक पदार्थ इकट्ठा होने का संकेत देता
है और इससे शरीर में कुछ बीमारियों का भी पता लगाया जा सकता है.<br />
कान के मैल से जुड़ी पाँच चीजें जो शायद आप ना जानते हो.<br />
<h2>
1. ये बाहर कैसे आता है?</h2>
कान के अंदर की कोशिकाएँ विशेष तरह की होती है. वे एक जगह से दूसरे जगह तक जाती है.<br />
लंदन के रॉयल नेशनल अस्पताल में गला, नाक और कान
के प्रोफेसर शकील सईद के मुताबिक़ " आप कान में स्याही की एक बूंद डाल कर
देखिए, कुछ हफ़्तों के बाद पाएंगे कि कोशिकाओं के साथ ये बाहर आ रही है."<br />
यदि ऐसा नहीं होता है तो कान का छेद प्राकृतिक प्रक्रिया से बनी मृत कोशिकाओं से भर जाएगा.<br />
<div class="module">
<div class="image img-w624">
<img alt="कान का मैल" height="351" src="http://wscdn.bbc.co.uk/worldservice/assets/images/2014/03/19/140319084031_ear_graphics_624x351_bbc_nocredit.jpg" width="624" /></div>
</div>
इसी तरह से कान का मैल भी आगे बढ़ता है. ऐसा माना जाता है कि खाने-पीने के दौरान जबड़े के हिलने से भी ये मैल बाहर आता है.<br />
प्रोफेसर सईद ने पाया है कि उम्र बढ़ने के साथ
कभी-कभी यह मैल ज़्यादा काला हो जाता है और जिन लोगों के कान में बाल
ज़्यादा होते हैं उनके कान से मैल बाहर नहीं आ पाता है.<br />
<h2>
2. एंटी-माइक्रोबियल गुण</h2>
कान के मैल में मोम होता है लेकिन यह मूल रूप से मृत केराटिनोसाइट्स कोशिकाओं का बना होता है.<br />
कान का मैल कई पदार्थों का मिश्रण होता है. करीब
1,000 से 2,000 के बीच ग्रंथियां एंटी-माइक्रोबियल पेप्टाइड बनाती हैं.
बालों की कोशिकाओं के करीब मौजूद वसा की ग्रंथियां मिश्रित एल्कोहल,
स्कुआलीन नाम का तेल, कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड बनाती हैं.<br />
महिलाओं और पुरूषों में कान का मैल एक समान मात्रा
में बनता है लेकिन एक अध्ययन से पता चला है कि ट्राइग्लिसराइड की मात्रा
नंवबर से जुलाई के बीच कम हो जाती है.<br />
कान के मैल में लाइसोज़ाइम भी पाया जाता है जो एक एंटी-बैक्टिरियल एंज़ाइम है.<br />
<h2>
3. आपका परिवार कहां से है ये मायने रखता है</h2>
<div class="module">
<div class="image img-w624">
<img alt="कान का ऑपरेशन" height="351" src="http://wscdn.bbc.co.uk/worldservice/assets/images/2014/03/19/140319084128_ear_operation_624x351_bbc_nocredit.jpg" width="624" /></div>
</div>
अमरीका के फिलाडेल्फिया के मोनेल संस्थान के
वैज्ञानिकों के मुताब़िक एशियाई और गैर एशियाई लोगों के कान में अलग-अलग
तरह का मैल होता है. क्रोमोज़ोम 16 कान के मैल के "गीले" या "सूखा" होने के
लिए जिम्मेदार है.<br />
जीन एबीसीसी11 में एक छोटा सा परिवर्तन कान के मैल
के सूखा होने और चीनी, जापानी और कोरियाई व्यक्तियों के शरीर के कम
दुर्गंध युक्त होने से संबंधित है.<br />
अमरीकी अध्ययन में पूर्वी एशियाई और गोरे पुरुषों के समूहों में कान के मैल में 12 वाष्पशील कार्बनिक यौगिक पाए गए हैं.<br />
<h2>
4. साफ़ करने का तरीका</h2>
<div class="module">
<div class="image img-w304">
<img alt="कान का मैल" height="171" src="http://wscdn.bbc.co.uk/worldservice/assets/images/2014/03/19/140319084248_earwax_dry_304x171_bbc_nocredit.jpg" width="304" /><div class="caption">
कान के मैल में एंटी-बैक्टीरियल एंजाइम लाइसोज़ाइम पाया जाता है.</div>
</div>
</div>
कान को साफ़ करने के लिए किसी सिरींज के बदले नन्हा वैक्युम क्लीनर बेहतर है.<br />
प्रोफेसर सईद सिरीज से बेहतर वैक्युम क्लीनर को
मानते हुए कहते है, "अगर आप पानी का इस्तेमाल करते हैं तो उसे मैल से आगे
जाना होगा और मैल लेकर वापस आना होगा. अगर कोई अंतर नहीं होगा तो ये मैल से
आगे नहीं जा सकेगा और इस पर ज़्यादा ताकत भी नहीं लगाई जानी चाहिए. कान के
पर्दे को सिरींज करने पर यूं तो नुकसान नहीं पहुंचता लेकिन ऐसा कभी-कभी
होता है."<br />
<h2>
5. इससे प्रदूषण का पता चलता है</h2>
कान के मैल में कई अन्य शारीरिक स्राव की तरह कुछ भारी धातुओं के रूप में कुछ विषाक्त पदार्थ हो सकते हैं.<br />
लेकिन एक तो यह ऐसी चीज़ देखने के लिए एक अजीब जगह है और दूसरी बात ये कि एक साधारण रक्त परीक्षण से ज़्यादा विश्वसनीय नहीं है.<br />
कुछ दुर्लभ चयापचय संबंधी विकार कान के मैल को प्रभावित करने वाले होते हैं.</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08160854592562131489noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2446493380000559684.post-56633574243194446682014-03-20T00:09:00.000-07:002014-03-20T00:09:08.978-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="g-container">
<h1>
'सैचुरेटेड फैट' से जुड़ी सलाह 'स्पष्ट' नहीं </h1>
</div>
<div class="g-container">
<div class="box bx-byline">
<div class="person">
<div class="person-info">
<div class="name">
माइकेल रॉबर्ट</div>
<div class="role">
स्वास्थ्य संपादक, बीबीसी न्यूज ऑनलाइन</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
<div class="g-container">
<br /></div>
<div class="module">
<div class="image img-w624">
<img alt="सैचुरेटेड फैट" height="351" src="http://wscdn.bbc.co.uk/worldservice/assets/images/2014/03/18/140318151245_saturated_fat_624x351_spl.jpg" width="624" /></div>
</div>
<div class="ingress">
आमतौर पर सलाह दी जाती है कि यदि
ह्रदय रोगों से दूर रहना है तो सैचुरेटेड फैट वाले भोजन की जगह
पॉलीअनसेचुरेटेड फैट का सेवन करें. मगर एक नया शोध बताता है कि इस बात के
पुख्ता प्रमाण नहीं है.</div>
ब्रिटिश हॉर्ट फाउंडेशन के <a class="page" href="http://www.bbc.co.uk/hindi/science/2013/07/130725_health_breakfast_food_aj.shtml"><span class="label"> </span><span class="link-title">
शोधकर्ताओं</span></a> ने पाया कि खाने में मक्खन की जगह सनफ्लावर स्प्रेड की अदला-बदली दिल की बीमारियों से जुड़े खतरों को कम नहीं करती.
<br />
<div class="module inline-contextual-links">
</div>
600,000 से ज्यादा प्रतिभागियों के साथ किए गए 72 शोधों के बाद ये नतीजा सामने आया है.<br />
ह्रदयरोग विशेषज्ञ हमेशा से कहते आए हैं कि बहुत सारा पनीर, पाई और केक खाना सेहत के लिए हानिकारक होता है.<br />
<h2>
सैचुरेटेड फैट</h2>
विशेषज्ञों का मानना रहा है कि आप बहुत ज्यादा सैचुरेटेड फैट वाला भोजन ले रहे हैं तो <a class="page" href="http://www.bbc.co.uk/hindi/science/2013/09/130906_health_lung_disease_sr.shtml"><span class="label"> </span><span class="link-title">
सावधान</span></a> रहिए, इससे आपके रक्त में कॉलेस्ट्रोल की मात्रा बढ़ सकती है. यदि ऐसा हुआ तो कोरोनरी ह्रदयरोग का गंभीर खतरा पैदा हो जाएगा.
<br />
मक्खन, बिस्किट, मीट के वसायुक्त टुकड़े, सॉसेज,
बैकन, पनीर और क्रीम आदि में जो वसा पाई जाती है उसे संतृप्त वसा यानि
सैचुरेटेड फैट कहते हैं.<br />
<div class="module">
<div class="image img-w624">
<img alt="वसा" height="351" src="http://wscdn.bbc.co.uk/worldservice/assets/images/2014/03/18/140318144018_saturated_fat_advice_624x351_spl_nocredit.jpg" width="624" /></div>
</div>
अधिकांश लोग इस तरह की चीजें बहुत ज्यादा मात्रा
में खाते हैं. जबकि इसे खाते समय हमें खास ख्याल रखना चाहिए. विशेषज्ञ सलाह
देते हैं कि पुरुषों को एक दिन में 30 ग्राम संतृप्त वसा और महिलाओं को एक
दिन में 20 ग्राम संतृप्त वसा खाना चाहिए.<br />
पिछले कई दिनों से सेहत संबंधी अभियान जोर-शोर से
चलाया गया कि कम संतृप्त वसा वाला खाना जैसे कि जैतून का तेल, सनफ्लावर ऑयल
और दूसरे गैरपशु वसा वाला भोजन अधिक लाभकारी होता है.<br />
मगर कैंब्रिज विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं की
अगुवाई में किए गए और 'अनल ऑफ इंटरनल मेडिसिन' में छपे हुए शोध के मुताबिक
इस बात का कोई सबूत नहीं है कि कम संतृप्त वसा वाला भोजन लाभकारी होता है.<br />
यह शोध कहता है कि पॉलीअनसेचुरेटेड फैट वाले भोजन के सेवन से भी दिल की बीमारियों से कोई बचाव नहीं होता.<br />
<h2>
कृत्रिम वसा</h2>
<div class="module">
<div class="image img-w624">
<img alt="वसा" height="351" src="http://wscdn.bbc.co.uk/worldservice/assets/images/2014/03/18/140318144359_saturated_fat__624x351__nocredit.jpg" width="624" /></div>
</div>
शोधकर्ताओं का कहना है कि ट्रांस वसा से भी गंभीर
ह्रदयरोग का खतरा हो सकता है. इसलिए प्रसंस्कृत फूड आइटमों, कृत्रिम मक्खन
आदि में पाई जाने वाली इस तरह की कृत्रिम वसा का सेवन करने से बचना चाहिए.<br />
प्रमुख शोधकर्ता डॉ. राजीव चौधरी का कहना है आम
तौर पर हम संतृप्त वसा वाले भोजन की जगह ढेर सारा कार्बोहाइड्रेट ले लेते
हैं, जैसे कि व्हाइट ब्रेड, व्हाइट राइस, पोटैटो आदि, या प्रोसेस्सड फूड
में रिफाइन चीनी और नमक का सेवन करते हैं. इन दोनों से बचना चाहिए.<br />
वे कहते हैं, "परिष्कृत कार्बोहाइड्रेट, चीनी, नमक ये सब वैस्कुलर हेल्थ के लिए गंभीर रूप से खतरनाक है."<br />
<div class="module">
<div class="image img-w624">
<img alt="मक्खन" height="351" src="http://wscdn.bbc.co.uk/worldservice/assets/images/2014/03/18/140318144547_saturated_fat__624x351_getty.jpg" width="624" /></div>
</div>
फाउंडेशन कहता है कि इस खोज से उस हिदायत पर कोई
असर नहीं पड़ता जिसमें कहा जाता है कि ज्यादा वसा वाला भोजन सेहत के लिए
हानिकारक होता है.<br />
एसोसिएड मेडिकल डायरेक्टर प्रो जेरेमी पियरर्सन
कहते हैं, "यह शोध ये नहीं कहता कि अब आप जितना चाहे उतना वसा वाला खाना खा
सकते हो. बहुत ज्यादा वसा खतरनाक है आपके लिए."</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08160854592562131489noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2446493380000559684.post-21045240217337299622014-03-17T04:13:00.001-07:002014-03-17T04:13:29.865-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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</h1>
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<br />
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<a href="http://www.bbc.co.uk/" hreflang="en-GB"> <abbr class="blq-home" title="British Broadcasting Corporation"> <img alt="BBC" height="24" src="http://static.bbci.co.uk/frameworks/barlesque/2.60.3/desktop/3.5/img/blq-blocks_grey_alpha.png" width="84" /> </abbr> </a> </div>
<h1>
</h1>
<h1>
धरती के गर्भ में है महासागरों से ज़्यादा पानी</h1>
</div>
<div class="g-container">
<div class="box bx-byline">
<div class="person">
<div class="person-info">
<div class="name">
सिमोन रेडफ़र्न</div>
<div class="role">
विज्ञान लेखक</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
<div class="g-container">
<br /></div>
<div class="module">
<div class="image img-w624">
<img alt="नीला खनिज" height="351" src="http://wscdn.bbc.co.uk/worldservice/assets/images/2014/03/14/140314111524_blue_mineral_624x351_joesmyth_nocredit.jpg" width="624" /></div>
</div>
<div class="ingress">
हीरे के अंदर संरक्षित खनिजों ने
धरती के गर्भ में दबी चमकदार नीली चट्टानों के बारे में संकेत दिए हैं,
जिनमें इतना पानी हो सकता है जितना सारे महासागरों में है.</div>
मध्य-पश्चिम ब्राज़ील से मिले एक हीरे में ऐसे
खनिज मौजूद हैं जो धरती से करीब 600 किलोमीटर अंदर बनते हैं और इनके अंदर
पर्याप्त मात्रा में पानी मौजूद है.<br />
<div class="module inline-contextual-links">
<div class="list li-relatedlinks">
<div class="content">
</div>
</div>
</div>
इस शोध को विज्ञान की पत्रिका नेचर
में प्रकाशित किया गया है. इस शोध से यह भी अनुमान लगाया जा सकता है कि
पत्थरों से पटे बहुत से ग्रहों की गहराई में पानी हो सकता है.<br />
<h2>
प्राकृतिक हीरा</h2>
बहुत गहरे ज्वालामुखी पहाड़ के फटने से जो चट्टान
या पत्थर धरती की सतह पर आए और इनमें जो हीरे के टुकड़े मिले वो धरती की
बड़ी ही दिलचस्प तस्वीर दिखाते हैं.<br />
कनाडा के अल्बर्टा विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर
ग्राहम पीयरसन के नेतृत्व वाले शोध दल ने एक विस्तृत परियोजना के तहत दस
करोड़ साल पुराने किंबरलाइट से निकले और ब्राज़ील के जुइना में मिले एक
हीरे का अध्ययन किया.<br />
उन्होंने देखा कि इसमें रिंगवूडाइट नाम का एक खनिज
है जो धरती के अंदर 410 से 660 किलोमीटर की गहराई में ही बन सकता है. इससे
यह भी पता चला कि कुछ हीरे कितनी गहराई में तैयार होते हैं.<br />
इससे पहले रिंगवूडाइट सिर्फ़ उल्कापिडों में ही
पाया गया था, ऐसा पहली बार हुआ है कि धरती में रिंगवूडाइट पाया गया. इससे
भी आश्चर्यजनक बात यह है कि इस खनिज का तक़रीबन एक फ़ीसद हिस्सा पानी है.<br />
हालांकि यह सुनने में बहुत कम लगता है लेकिन
क्योंकि रिंगवूडाइट धरती की गहराई के बहुत बड़े हिस्से में पाया जाता है,
इसलिए इसका मतलब हुआ कि धरती के अंदर बहुत सारा पानी होगा.<br />
<div class="module">
<div class="image img-w624">
<img alt="ब्राज़ील से मिला हीरा" height="351" src="http://wscdn.bbc.co.uk/worldservice/assets/images/2014/03/14/140314111832_brazil_diamond_624x351_richardsiemens_nocredit.jpg" width="624" /></div>
</div>
कैंब्रिज विश्वविद्यालय की डॉ सैली गिबसन इस शोध
में शामिल थीं. वह कहती हैं, "पानी का इतनी भारी मात्रा में पाया जाना
हमारी धरती की सतह पर सबसे पहले पानी मिलने की अवधारणा में बेहद महत्वपूर्ण
नई जानकारी है."<br />
यह अवलोकन हमारे ग्रह की गहराई में पानी जमा होने
का पहला भौतिक सबूत तो है ही इसके साथ ही यह धरती के अंदरूनी हिस्से के
सूखे, तरल या कई हिस्सों में तरल होने के 25 साल पुराने विवाद पर भी विराम
लगाता है.<br />
हीरे के इन नमूनों की व्याख्या करते हुए प्रोफ़ेसर
पीयरसन कहते हैं, "ऐसा लगता है कि यह नरक तक जाकर वापस आया है, जो इसमें
मौजूद है."<br />
<h2>
नीला ग्रह</h2>
कोलोराडो विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर जोसेफ़ स्मिथ
कई सालों से रिंगवूडाइट का अध्ययन कर रहे हैं और उनकी प्रयोगशाला में ऐसे
कई खनिजों का अध्ययन किया गया है.<br />
वह कहते हैं, "मुझे यह अचंभित करने वाली बात लगती
है! इसका मतलब यह हुआ कि धरती के गर्भ में महासागरों से कई गुना ज़्यादा
पानी जमा हो सकता है. इससे हमें यह भी पता चलता है कि हाइड्रोजन धरती का
आधारभूत तत्व है और वो बाद में धूमकेतुओं से नहीं आया है."<br />
<div class="module">
<div class="image img-w624">
<img alt="पृथ्वी" height="351" src="http://wscdn.bbc.co.uk/worldservice/assets/images/2014/03/14/140314112155_earth_624x351_afp.jpg" width="624" /></div>
</div>
"इस खोज के आधार पर कहा जा सकता है कि हाइड्रोजन
धरती की अंदरूनी व्यवहार को वैसे ही नियंत्रित करता होगा जैसे कि वह सतह पर
करता है. और धरती जैसे पानी वाले ग्रह हमारे सौरमंडल में और भी हो सकते
हैं."<br />
यह अनुमान भी लगाया जा सकता है कि दूसरे चट्टानी ग्रहों में किस मात्रा में पानी हो जमा हो सकता है.<br />
प्रोफ़ेसर स्मिथ की प्रयोगशाला में भी इसी तरह के खनिज के कण है जो माइक्रोस्कोप से देखने पर चमकदार नीले नज़र आते हैं.<br />
रिंगवूडाइट के पानी धारण करने की क्षमता की खोज,
धरती की गहराई में इसकी प्रचुरता और इसके ख़ूबसूरत रंग को देखते हुए धरती
को मिला "नीले ग्रह" का नाम और भी सार्थक हो जाता है.</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08160854592562131489noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2446493380000559684.post-27276288150890331622014-03-10T04:21:00.004-07:002014-03-10T04:21:46.925-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div id="blq-global">
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</div>
</div>
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<div class=" g-w20 g-first">
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<a href="http://www.bbc.co.uk/" hreflang="en-GB"> <abbr class="blq-home" title="British Broadcasting Corporation"> <img alt="BBC" height="24" src="http://static.bbci.co.uk/frameworks/barlesque/2.60.3/desktop/3.5/img/blq-blocks_grey_alpha.png" width="84" /> </abbr> </a> </div>
<br /><div class="g-container story-body">
<div class="bodytext">
<div class="module">
<div class="image img-w624">
<img alt="" height="351" src="http://wscdn.bbc.co.uk/worldservice/assets/images/2014/03/10/140310083057_atmosphere_624x351_getty.jpg" width="624" /></div>
</div>
<div class="ingress">
वैज्ञानिकों को ऐसी चार नई मानव-निर्मित गैसों का पता चला है, जो ओज़ोन परत को नुक़सान पहुँचा रही हैं.</div>
इनमें से दो गैसें ओज़ोन परत को इतनी तेज़ी से नुकसान पहुँचा रही हैं कि वैज्ञानिक इसे लेकर काफ़ी चिंतित हैं.<br />
<div class="module inline-contextual-links">
<div class="list li-relatedlinks">
<h3 class="title">
संबंधित समाचार</h3>
<div class="content">
<ul>
<li class="ts-headline body-disabled first teaser"><a href="http://www.bbc.co.uk/hindi/rolling_news/2012/03/120312_ozone_rowland_rn.shtml">नोबेल विजेता शेरवुड रोलैंड का निधन</a></li>
<li class="ts-headline body-disabled teaser"><a href="http://www.bbc.co.uk/hindi/international/2013/11/131109_phosphorus_crisis_fertiliser_sp.shtml">दुनिया में छिड़ सकता है खाद युद्ध?</a></li>
<li class="ts-headline body-disabled teaser"><a href="http://www.bbc.co.uk/hindi/science/2013/05/130511_science_carbon_dioxide_sp.shtml">कार्बन डाई ऑक्साइड ख़तरनाक स्तर पर </a></li>
</ul>
</div>
</div>
</div>
ज़मीन से 15 से 30 किलोमीटर की ऊंचाई
पर वायुमंडल में पाई जाने वाली ओज़ोन की परत मनुष्यों और जानवरों को
हानिकारक अल्ट्रावायलट (यूवी) किरणों को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका
निभाती है. यूवी किरणों से मनुष्यों में कैंसर होता है. जानवरों की प्रजनन
क्षमता पर भी इनका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.<br />
<a class="page" href="http://www.bbc.co.uk/hindi/rolling_news/2012/03/120312_ozone_rowland_rn.shtml"><span class="label">क्लिक करें </span><span class="link-title">
ओज़ोन परत</span></a> में बढ़ते छेद के कारण 1980 के दशक के मध्य से क्लोरोफ़्लोरोकार्बन (सीएफ़सी) गैस के उत्पादन पर प्रतिबंध लगा दिया गया है.
<br />
<h2>
गैस की उत्पत्ति</h2>
<div class="module">
<div class="box bx-quote">
<div class="content">
<div class="body">
<blockquote>
<span class="start-quote">"</span>हमारे शोध से पता चलता है कि ये चार गैसें 1960 तक वायुमंडल में नहीं थीं. इससे पता चलता है कि ये मानव निर्मित गैसें हैं.<span class="end-quote">"</span><br />
</blockquote>
<div class="person">
<div class="person-info">
<div class="name">
डॉक्टर जॉनसन लाउबे, प्रमुख शोधकर्ता</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
सीएफ़सी से मिलती-जुलती इन गैसों की उत्पत्ति का सटीक कारण अभी भी रहस्य है.<br />
सबसे पहले ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे के वैज्ञानिकों ने 1985 में अंटार्कटिक के ऊपर ओज़ोन परत में एक बड़े छेद की खोज की थी.<br />
वैज्ञानिकों को पता चला कि इसके लिए सीएफ़सी गैस
ज़िम्मेदार है, जिसकी खोज 1920 में हुई थी. इस गैस का प्रयोग रेफ्रिज़रेटर,
हेयरस्प्रे और डिऑडरेंट बनाने वाले प्रोपेलेंट में अधिकता से होता है.<br />
सीएफ़सी पर नियंत्रण पाने के लिए 1987 में दुनिया
के देशों में सहमति बनी और इसके उत्पादन को नियंत्रित करने के लिए
मांट्रियल संधि अस्तित्व में आई.<br />
साल 2010 में सीएफ़सी के उत्पादन पर वैश्विक स्तर पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया.<br />
<h2>
इंसान ने बनाया</h2>
<div class="module">
<div class="image img-w304">
<img alt="ओज़ोन परत में छेद" height="171" src="http://wscdn.bbc.co.uk/worldservice/assets/images/2011/10/02/111002232127_ozone_304.jpg" width="304" /><div class="caption">
ओज़ोन परत में छेद का पता सबसे पहले ब्रितानी वैज्ञानिकों ने 1985 में लगाया था.</div>
</div>
</div>
इन चार नई <a class="page" href="http://www.bbc.co.uk/hindi/science/2013/05/130511_science_carbon_dioxide_sp.shtml"><span class="label">क्लिक करें </span><span class="link-title">
गैसों</span></a> की मौज़ूदगी का पता लगाया है ईस्ट एंजिलिया विश्वविद्लय के शोधकर्ताओं ने.
<br />
इनमें से तीन गैसें सीएफ़सी हैं और एक गैस
हाइड्रोक्लोरोफ़्लोरोकार्बन (एचसीएफ़सी) है, यह गैस भी ओज़ोन परत को
नुक़सान पहुँचा सकती है.<br />
इस अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता डॉक्टर जॉनसन लाउबे
कहते हैं, ''हमारे शोध से पता चलता है कि ये चार गैसें 1960 तक वायुमंडल
में नहीं थीं यानी ये मानवनिर्मित गैसें हैं.''<br />
वैज्ञानिक ध्रुवीय बर्फ़ से निकाली गई हवा के विश्लेषण से पता लगा सकते हैं कि आज से 100 साल पहले कैसा वायुमंडल कैसा था.<br />
शोधकर्ताओं ने इनकी तुलना वर्तमान वायुमंडल में
पाई जाने वाली गैसों के नमूने से भी की. इसके लिए तस्मानिया के दूर-दराज़
के इलाक़े से नमूने लाए गए.<br />
वैज्ञानिकों का अनुमान है कि वायुमंडल में 74
हज़ार टन ऐसी गैस मौजूद हैं. इनमें से दो गैसें ओज़ोन परत में क्षरण की दर
में उल्लेखनीय वृद्धि कर रही हैं.<br />
डॉक्टर लाउबे कहते हैं, ''इन चार गैसों की पहचान बहुत चिंताजनक है, क्योंकि वो ओज़ोन परत के क्षरण में योगदान देंगी.''<br />
<h2>
बहुत बड़ा ख़तरा नहीं</h2>
वो कहते हैं, ''हम यह नहीं जानते कि इन नई गैसों
का उत्सर्जन कहाँ से हो रहा है, इसकी जाँच की जानी चाहिए. कीटनाशक के
निर्माण में उपयोग होने वाला कच्चा माल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के अवयवों
की धुलाई में काम आने वाले विलायक इसके संभावित स्रोत हो सकते हैं.''<br />
वो कहते हैं कि ये तीन सीएफ़सी वायुमंडल में बहुत
धीरे-धीरे नष्ट होते हैं. इसलिए अगर इनके उत्सर्जन को तत्काल प्रभाव से रोक
भी दिया जाए, तो भी वो कई दशक तक वायुमंडल में बने रहेंगे.<br />
वहीं अन्य वैज्ञानिकों का मानना है कि अभी इन
गैसों की मात्रा कम है और इनसे अभी कोई तात्कालिक ख़तरा नहीं है लेकिन इनके
स्रोत का पता लगाने की ज़रूरत है.<br />
लीड्स विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर पाइरस फॉरेस्टर
को कहते हैं, ''इस अध्ययन से पता चलता है कि ओज़ोन परत का क्षरण अभी भी
पुरानी बात नहीं हुई है.''<br />
वो कहते हैं, ''जो चार गैसें खोजी गई हैं, उनमें
से सीएफ़सी-113ए ज़्यादा चिंता पैदा करने वाली प्रतीत हो रही है क्योंकि
कहीं से इसका मामूली उत्सर्जन हो रहा है, लेकिन यह बढ़ता जा रहा है. हो
सकता है कि यह कीटनाशकों के निर्माण से पैदा हो रही हो. हमें इसकी पहचान
करनी चाहिए और इसका उत्पादन रोक देना चाहिए."</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
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<br /></div>
</div>
</div>
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Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08160854592562131489noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2446493380000559684.post-74834502651650861862013-12-25T01:16:00.001-08:002013-12-25T01:18:53.744-08:00Happy Christmas<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgyTAtNl00lUw-zDlqyWWIp8n6Z5NMnDPSaeOVWAI-gCqlkqwPQK2P9tkB_xv4yNS4cbmucmjNj3xYIgZ2zhyncTA5QSeBSRw3ir9ZciYQK71Qnd2Sn9CzQiSZ6Ho2Y0z-Nd-4StwchqDfj/s1600/1477952_366873440123733_1568125307_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgyTAtNl00lUw-zDlqyWWIp8n6Z5NMnDPSaeOVWAI-gCqlkqwPQK2P9tkB_xv4yNS4cbmucmjNj3xYIgZ2zhyncTA5QSeBSRw3ir9ZciYQK71Qnd2Sn9CzQiSZ6Ho2Y0z-Nd-4StwchqDfj/s320/1477952_366873440123733_1568125307_n.jpg" width="233" /></a></div>
<span style="color: blue;"><span style="font-size: large;">A very warm and happy Christmas my dear friends. May Lord Jesus shower all His blessings always on you. May Christ always present in your hearts.</span></span><br />
<br /></div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08160854592562131489noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2446493380000559684.post-19169849986389655982013-12-10T02:03:00.002-08:002013-12-10T02:03:44.245-08:00Life is struggle for joy<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
Vinay Bihari Singh<br />
<br />
Paramahansa Yogananda ji has said- Life is struggle for joy. Many times, I find- it is true. I am passing through difficult phase of life. I am searching groom for my daughter who woks in IBM, Calcutta. In the search of suitable groom,I am wandered in different cities but could not find any boy. So according to my Guru Paramahansa Yogananda this can be the test and trials of Divine mother. Divine mother loves us. Thats why she put us in tests and trials to let us learn test and trials. To think like this- I am feeling peaceful. This is a good way to pass through difficult days.</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08160854592562131489noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2446493380000559684.post-48715905959209160422013-09-07T00:34:00.002-07:002013-09-07T00:34:54.430-07:00जीवन की गति न्यारी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br /><br /><span style="color: blue;"><img height="238" id="irc_mi" 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style="margin-top: 78px;" width="212" /> मित्रों, काफी दिनों तक अपने ब्लाग से अलग रहा।
लेकिन दुबारा यह अपने पास खींच ही लाया। इस बीच कई नए अनुभव प्राप्त हुए।
उनकी चर्चा फिर कभी। आज भगवत गीता पढ़ रहा था। भगवान कृष्ण ने कितनी सुंदर
बातें कहीं हैं इस पवित्र पुस्तक में। भगवान ने कहा है- मेरा भक्त कभी नष्ट
नहीं होता। कैसा भक्त? जो अनन्य भक्ति करता हो। यानी उसकी हर गतिविधि में
भगवान का स्मरण हो। ईश्वर ही जिसके आधार हों, वह व्यक्ति कभी नष्ट नहीं
होता। भगवान स्वयं उसकी रक्षा करते हैं। पढ़ कर अच्छा लगा। एक औऱ प्रसंग
है- भगवान कहते हैं कि जो सुख औऱ दुख में, सर्दी और गर्मी में, मान और
अपमान में सम हो वह मेरा अत्यंत प्रिय है। जो भय, घृणा या कामना से रहित
हो गया हो वह मेरा अत्यंत प्रिय है। भगवत गीता तो हमें रोज ही पढ़नी चाहिए। </span></div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08160854592562131489noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2446493380000559684.post-40081249954839197622013-07-06T07:43:00.002-07:002013-07-12T01:51:14.710-07:00कब्ज कैसे दूर करें<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi06VHxQINQ7PUq-QO5gf7zxtcKHgQEul-GjvF54gBQv_GBWv_7ow9c010tapPj3e1Zd7lbv5E8Qdvg8EkrFQV8YmZoUi6F5n5cH2syY4jBClDPSe2KjCmog9rl9OM4UAInvlnZ9oxnjZXl/s1600/images_019.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi06VHxQINQ7PUq-QO5gf7zxtcKHgQEul-GjvF54gBQv_GBWv_7ow9c010tapPj3e1Zd7lbv5E8Qdvg8EkrFQV8YmZoUi6F5n5cH2syY4jBClDPSe2KjCmog9rl9OM4UAInvlnZ9oxnjZXl/s1600/images_019.jpg" /></a></div>
<br />
<span style="font-size: large;">कब्ज हमेशा से मनुष्य के लिए परेशानी का कारण
रहा है। लेकिन इसे तोड़ने का एक उपाय पा कर मुझे बहुत खुशी हो रही है। क्या
करें कि कब्ज टूटे? या कब्ज ही न हो। </span><br />
<span style="font-family: Mangal; font-size: large;">
योगदा सत्संग सोसाइटी आफ इंडिया के संस्थापक</span><span style="font-family: Mangal; font-size: large;"> और मेरे गुरुदेव परमहंस योगानंद जी का
फार्मूला अत्यंत कारगर है। फलों पर या बिना चीनी के फलों के रस पर एक दिन
उपवास करें। सुबह औऱ शाम एक या दो चम्मच इसबगोल की भूसी पानी में घोल कर पी
लें। यह सप्ताह में सिर्फ एक ही दिन करना है। अन्यथा इसबगोल के भूसी की
आदत पड़ जाएगी। सिर्फ एक दिन। इससे आदत भी नहीं पड़ेगी और पेट भी अच्छी तरह
साफ हो जाएगा। अगले दिन हल्की सी खिचड़ी खाएं। तो मन प्रसन्न रहेगा। कई
लोग उपवास के अगले दिन गरिष्ठ भोजन कर लेते हैं क्योंकि उन्हें काफी भूख
लगी होती है। लेकिन थोड़ा सा संयम बरत कर खिचड़ी खाने वाले दिन के अगले
दिन से सामान्य भोजन शुरू करें तो काफी फायदा होता है। इसे आप आजमा कर देख
सकते हैं। निश्चित फायदा होगा। हां, उपवास के दौरान पर्याप्त पानी पीने से
और ज्यादा लाभ होगा। </span></div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08160854592562131489noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2446493380000559684.post-75583525204956946532013-07-02T04:08:00.002-07:002013-07-02T04:08:53.378-07:00संगीत का ककहरा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjAfTcDg2E3hUxWe1MP3Vhebs7wl70eNTpUWnMOM3usURqbuboTxb5-rafUH9PB6tnCRQOxuU_xhsKaEUMvpUvv9-aV5Xjwc2NlgQH60ilRoutXqpHLvoLfJVudiPfgr7OPC8_APnO2boZk/s309/harmonium.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjAfTcDg2E3hUxWe1MP3Vhebs7wl70eNTpUWnMOM3usURqbuboTxb5-rafUH9PB6tnCRQOxuU_xhsKaEUMvpUvv9-aV5Xjwc2NlgQH60ilRoutXqpHLvoLfJVudiPfgr7OPC8_APnO2boZk/s309/harmonium.jpg" /></a></div>
<br />मित्रों, पिछले दिनों एक बहन ने अपने घर ले जाकर
मुझे हारमोनियम बजाने की शिक्षा दी। अभी तो बस एक ही दिन शिक्षा ली है।
लेकिन यह अचानक हुआ। उस बहन ने खुद आ कर मुझसे कहा कि चलिए मैं आपकों
हारमोनियम सिखा देती हूं। ईश्वर की असीम अनुकंपा। उस बहन का नाम है-
पिऊ घोष भौमिक। पहले दिन मैंने सा रे ग म प ध नी सा का अभ्यास किया।
हारमोनियम के स्ट्रिंग्स पर हाथ आजमाया। मैंने पाया कि सा रे ग म इत्यादि
गाते वक्त जो संतुलन चाहिए वह मुझमें नहीं था। लेकिन सिखाने वाली बहन ने
मुझे वह संतुलन सिखा दिया। तब लगा कि यह तो एक और क्षेत्र है जिसके बारे
मैं बिल्कुल नहीं जानता था। एक नया संसार। ठीक इसी तरह जीवन में भी एक
सकारात्मक लय की जरूरत है। वह लय तभी आ सकती है जब ईश्वर के प्रति उत्सुकता हो। ईश्वर, ईश्वर औऱ ईश्वर।</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08160854592562131489noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2446493380000559684.post-19462740553471399462013-06-06T00:13:00.004-07:002013-06-06T00:13:45.733-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="g-container">
<h1>
आपने सोचा और वो उड़ा हेलिकॉप्टर...</h1>
<h1>
<span style="font-size: small;">COURTESY- BBC Hindi</span></h1>
<h1>
<img alt="" height="171" src="http://wscdn.bbc.co.uk/worldservice/assets/images/2013/06/05/130605154310_helicopter_thought_guided_304x171_bbc_nocredit.jpg" width="304" /></h1>
</div>
<div class="module">
<div class="image img-w304">
<br /><div class="caption">
ये हेलिकॉप्टर इंसान के दिमाग से आने वाली कमांड पर चलेगा</div>
</div>
</div>
<div class="ingress">
शोधकर्ताओं ने सोच की शक्ति का ऐसा इस्तेमाल कर दिखाया है कि हेलिकॉप्टर के नियंत्रण के लिए मस्तिष्क का इस्तेमाल <a class="page" href="http://www.bbc.co.uk/hindi/science/2013/03/130306_robot_friend_pn.shtml"><span class="label"> </span><span class="link-title">
रिमोट-कंट्रोल</span></a> के तौर पर किया जा सकेगा.
</div>
दुनिया भर में शोधकर्ता सोच की शक्ति को
इलेक्ट्रिक सिग्नल में बदलने की कोशिश में लगे हैं और इस आविष्कार के साथ
उन कोशिशों में एक नया अध्याय जुड़ गया है.<br />
<a class="page" href="http://www.bbc.co.uk/hindi/international/2012/11/121127_europe_robot_pk.shtml"><span class="label"> </span><span class="link-title">काल्पनिक और वास्तविक दुनिया</span></a> के बीच अब एक नायाब रिश्ता जुड़ गया है, जिसके बारे में कुछ वर्षों पहले सोचा भी नहीं जा सकता था.
इस आविष्कार का मकसद है मानसिक रूप से कमज़ोर लोगों की मदद करना और साथ ही वीडियो गेम खेलने के नायाब तरीके इजाद करना.<br />
इस शोध में दिमाग की विद्युत किरणों को कैद किया गया.<br />
हालांकि इसका मतलब ये नहीं है कि ये उपकरण खुद-ब-खुद ही जान सकता है कि आपके दिमाग में क्या चल रहा है.<br />
बल्कि इसके लिए एक <a class="page" href="http://www.bbc.co.uk/hindi/science/2012/09/120924_robotics_cancer_surgery_psa.shtml"><span class="label"> </span><span class="link-title">
इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम</span></a> को तैयार किया जाता है जिसे दिमाग की विद्युत किरणों का स्वरूप पढ़ने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है.
<br />
इस उपकरण की मदद से इंसान के दिमाग में चल रही सोच को हेलिकॉप्टर के साथ जोड़ा जाता है.<br />
<h2>
दिमागी कंट्रोल</h2>
<div class="module">
<div class="box bx-quote">
<div class="content">
<div class="body">
<blockquote>
<span class="start-quote">"</span>हमारा
मकसद है उन लोगों की या मरीज़ों की मदद करना जो चल-फिर नहीं पाते हैं. इस
तकनीक के ज़रिए हम व्हीलचेयर को कंट्रोल करना चाहते हैं, टीवी को नियंत्रित
करना चाहते हैं और साथ ही अगर हो सके तो शरीर के किसी कृत्रिम अंग का
संचालन भी इस तकनीक के ज़रिए करना चाहते हैं<span class="end-quote"> ---- "</span>प्रॉफेसर बिन हे, मुख्य आविष्कारक<br />
</blockquote>
<div class="person">
<div class="person-info">
<div class="name">
<br /></div>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
इस प्रक्रिया के दौरान कंप्यूटर स्क्रीन पर प्रतीत होने वाला ग्राफ़ अजब ही लगता है, लेकिन ये तकनीक प्रभावशाली साबित हुई है.<br />
इससे पहले ऐसी तकनीक का इस्तेमाल व्हीलचेयर को चलाने और ‘दिमागी ऑरकेस्ट्रा’ चलाने के लिए भी हो चुका है.<br />
<div class="module">
<div class="image img-w304">
<img alt="" height="171" src="http://wscdn.bbc.co.uk/worldservice/assets/images/2013/06/05/130605154149_helicopter_thought_guided_304x171_bbc_nocredit.jpg" width="304" /><div class="caption">
इस शोध में दिमाग की विद्युत किरणों को कैद किया गया है</div>
</div>
</div>
तकनीक से जुड़ी कंपनियों को भी इस प्रयोग में कई संभावनाएं दिखाई देती हैं.<br />
खबरों के मुताबिक सैमसंग भी ‘<a class="page" href="http://www.bbc.co.uk/hindi/science/2012/09/120905_robot_job_aa.shtml"><span class="label"> </span><span class="link-title">
दिमागी कंट्रोल</span></a>’ तकनीक का इस्तेमाल करने वाली एक टैबलेट डिवाइस पर काम कर रहा है.
<br />
अब जब शोधकर्ता दिमाग के भीतर तक तकनीक का
इस्तेमाल कर पहुंच सकते हैं, तो अब वे अपना ध्यान और ज़्यादा सूक्ष्म
विषयों पर केंद्रित कर सकते हैं.<br />
इस शोध के वरिष्ठ आविष्कारक बिन हे का कहना है कि उनकी टीम इस प्रयोग पर काफी समय से काम कर रही थी.<br />
प्रॉफेसर बिन हे ने बीबीसी को बताया, “हमारा मकसद
है उन लोगों की या मरीज़ों की मदद करना जो चल-फिर नहीं पाते हैं. इस तकनीक
के ज़रिए हम व्हीलचेयर को कंट्रोल करना चाहते हैं, टीवी को नियंत्रित करना
चाहते हैं और साथ ही अगर हो सके तो शरीर के किसी कृत्रिम अंग का संचालन भी
इस तकनीक के ज़रिए करना चाहते हैं.”<br />
इस प्रयोग के लिए पांच लोगों को चुना गया और उन्हें एक साधारण टोपी पहनाई गई जिसमें 64 इलेक्ट्रोड लगे थे.<br />
इन इलेक्ट्रोड्स के ज़रिए कंप्यूटर को दिमाग में
होने वाली हलचल के बारे में बताया जाता है, और फिर वाई-फाई की मदद से
कंप्यूटर कमांड देता है जिससे हेलिकॉप्टर चलता है.<br />
इंसान की दिमागी कमांड का पालन करते हुए ये
हेलिकॉप्टर अपने सामने आने वाली रुकावटों को भी झांसा दे सकता है. इसके
अलावा इस तकनीक का इस्तेमाल घर में रोबोट के संचालन के लिए भी हो सकता है.</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08160854592562131489noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2446493380000559684.post-85347182683219548332013-05-27T08:31:00.000-07:002013-05-27T08:31:34.583-07:00भगवान पर विश्वास को लेकर सर्वे<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />एक बेहद अविश्वसनीय खबर पढ़ने को मिली। मुझे इस सर्वे पर शंका हो रही है। आइए पहले खबर पढ़िए- <br /><i><br />भारतीयों
की धर्म में दिलचस्पी घट रही है. कई लोगों का भगवान में यक़ीन नहीं है और
वो ख़ुद को धार्मिक नहीं मानते. हालांकि ख़ुद को पूरी तरह नास्तिक कहने
वालों की तादाद में गिरावट आई है. ग्लोबल इंडेक्स ऑफ़ रिलीजियॉसिटी एंड
अथीज़्म की ताज़ा रिपोर्ट से ये जानकारी सामने आई है.</i><br /><br />आपने खबर
पढ़ी। जहां तक मुझे पता है भारत में धर्म में दिलचस्पी बढ़ी है। लोग योग और
आध्यात्मिक गतिविधियों मे ज्यादा रुचि ले रहे हैं। आप पूछेंगे कि इसका
प्रमाण क्या है? आप पिछले साल की तुलना में भारत के तमाम प्रसिद्ध मंदिरों
में जाने वाले श्रद्धालुओं की संख्या का पता लगा लीजिए। आपको पता चल जाएगा
कि भारत में लोगों की धर्म में दिलचस्पी घट रही है या बढ़ रही है। मुझे
पक्का यकीन है कि ईश्वर की सत्ता में विश्वास रखने वालों की संख्या में
वृद्धि हो रही है। अध्यात्म के प्रति, ध्यान (मेडिटेशन) के प्रति लोगों में
उत्सुकता बढ़ रही है। आप सभी ध्यान केंद्रों, संस्थानों में जा कर पता लगाइए। <br /><span style="font-size: small;"><span style="font-family: Mangal;">
भारत गांवों का देश है। आप गांवों में जाइए। वहां सर्वे कीजिए। मुझे नहीं
पता ग्लोबल इंडेक्स ऑफ़ रिलीजियॉसिटी एंड अथीज़्म के लोग भारत के गां</span></span>वों
में गए थे या नहीं। लेकिन मुझे इस पर कतई विश्वास नहीं हो रहा है कि भारत
के लोगों की भगवान में दिलचस्पी घट रही है। भाई, इस तरह का सर्वे आपने
क्यों कराया? क्या आप नास्तिकता का झंडा गाड़ना चाहते हैं? आपको कैसे लगा
कि भारत में भगवान को मानने वाले कम हो रहे हैं? अब हम किसी भी सर्वे को
आंख मूंद कर स्वीकार नहीं करेंगे। एक बार खबर आती है कि चाकलेट खाने वालों
का स्वास्थ्य उत्तम रहता है। तो कुछ दिनों बाद खबर आती है कि चाकलेट में
अमुक तत्व यह रोग बढ़ाता है। कभी खबर आती है कि काफी पीने से यह फायदा होता
है तो कभी खबर आती है कि काफी पीने से यह नुकसान होता है। मुझे तो लगता है
कि सर्वे कराने वाले खुद कनफ्यूज हैं। समग्र भारत के विचार अचानक किसी
सर्वे में पता चल जाए, यह मुझे संभव नहीं लगता। बहरहाल मुझे अपने विचार
रखने की पूरी आजादी है। और मैं किसी हालत मे इस सर्वे को मान नहीं सकता।
पूरे भारत का सर्वे इतना आसान नहीं है भाई। </div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08160854592562131489noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2446493380000559684.post-41839175517993406552013-05-21T02:14:00.002-07:002013-05-21T02:14:20.282-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<h1>
30 सेकेंड में होगा मोबाइल चार्ज'</h1>
<div class="g-container">
<strong>Courtesy- बीबीसी हिन्दी </strong></div>
<div class="g-container story-body">
<div class="bodytext">
<div class="module ">
<div class="image img-w624">
<img alt="" height="351" src="http://wscdn.bbc.co.uk/worldservice/assets/images/2013/05/21/130521061100_eesha_khare_indian_american_student_mobile_charger_624x351_bbc.jpg" width="624" /></div>
</div>
<div class="ingress">
<a class="page" href="http://www.bbc.co.uk/hindi/institutional/2013/05/130515_angelina_shikha_breast_cancer_da.shtml"><span class="label"> </span><span class="link-title">अमरीका में रहने वाली भारतीय</span></a> छात्रा ईशा खरे ने छोटे से आकार का एक ऐसा उपकरण बनाया है जो <a class="page" href="http://www.bbc.co.uk/hindi/science/2013/03/130301_smartphone_battery_sm.shtml"><span class="label"> </span><span class="link-title">
मोबाइल फोन की बैटरी</span></a> के अंदर फिट हो सकता है.
</div>
ईशा का दावा है कि इससे मोबाइल फोन 20-30 सेकेंड में पूरा चार्ज हो जाएगा और इसे कार की <a class="page" href="http://www.bbc.co.uk/hindi/science/2013/03/130227_stretchy_battery_pk.shtml"><span class="link-title">
बैटरी</span></a> के लिए भी उपयोग में लाया जा सकेगा.
<br />
<div class="module inline-contextual-links">
<div class="list li-relatedlinks">
<br /></div>
</div>
इसके लिए 18 वर्षीय ईशा खरे को 'इंटेल फाउंडेशन यंग साइंटिस्ट अवॉर्ड' से नवाज़ा गया है और 50,000 डॉलर की स्कॉलरशिप भी दी गई है.<br />
दुनिया की जानी-मानी कम्प्यूटर उपकरण बनाने वाली
कंपनी, ‘इन्टेल’, हर साल विश्व के अलग-अलग स्कूलों से क़रीब 70 लाख बच्चों
की प्रतियोगिता आयोजित करवाता है.<br />
इनाम की घोषणा के बाद ईशा ने पत्रकारों से कहा,
“मैंने तो इस उपकरण पर काम करना इसलिए शुरू किया क्योंकि मेरे मोबाइल फोन
की बैटरी बहुत जल्दी ख़त्म हो जाती थी, लेकिन अब इस जीत पर यकीन करना भी
मुश्किल हो रहा है.”<br />
<div class="module ">
<div class="image img-w624">
<img alt="" height="351" src="http://wscdn.bbc.co.uk/worldservice/assets/images/2013/05/21/130521062628_eesha_khare_indian_american_mobile_charger_624x351_intelisef.jpg" width="624" /><div class="caption">
विजेताओं को अरिज़ोना के फीनिक्स शहर में एक कार्यक्रम में सम्मानित किया गया.</div>
</div>
</div>
<h2>
अब हारवर्ड की ओर</h2>
इन्टेल की प्रतियोगिता में बच्चे विज्ञान, तकनीक और गणित की दुनिया में शोध कर नए उपकरण इजाद करते हैं.<br />
<div class="module ">
<div class="box bx-quote">
<div class="content">
<div class="body">
</div>
</div>
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</div>
इस साल के प्रतियोगियों ने क्वांटम थ्योरी और
पर्यावरण संरक्षण के तरीकों से लेकर बीमारियों के इलाज और तकनीकी उपकरण
बनाने तक के प्रोजेक्ट्स पेश किए.<br />
अपने प्रयोग में ईशा ने इस उपकरण से एक ‘एलईडी’
यानि ‘लाइट एमिटिंग डायोड’ चलाकर दिखाया. ईशा ने बताया कि उन्होंने
नैनोटेकनॉलॉजी की मदद से बहुत सारी ऊर्जा अपने इस उपकरण में केन्द्रित करने
की तकनीक विकसित की है जिससे चार्जिंग जैसा काम भी सेकेंड्स में हो सकता
है.<br />
फिलहाल कैलिफोर्निया के एक स्कूल में पढ़ रहीं ईशा इसी वर्ष हारवर्ड विश्वविद्यालय में नैनोकेमिस्ट्री की पढ़ाई करने जाएंगी.<br />
लाखों छात्रों में से छांटे गए 1600 छात्रों में
से चुने जाते हैं तीन विजेता जो 75,000 (पहला इनाम) और 50-50,000 डॉलर
(दूसरा और तीसरा इनाम) में ले जाते हैं.<br />
ईशा को दूसरा इनाम मिला तो पहला इनाम गया रोमानिया
के 19 वर्षीय आयोनेट बुडिस्टीनो को, जिन्होंने एक सस्ती स्वचालित कार का
मॉडल बनाया.<br />
<strong><br /></strong>
</div>
</div>
</div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08160854592562131489noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2446493380000559684.post-70151317166413189802013-05-17T02:01:00.001-07:002013-05-17T08:06:29.083-07:00जैसे भक्त को भगवान मिल गए हों<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEju6WuHuOigOhl254xT_VCEaIhM0wcr6CrYQg_bVTcIeUuAs3m_ITXxz9RjrTNh4mpJpcA8DZumPmWIyMkl8pSGyUlv7ImPALVWQDQt9nAe17aydGA-PcMUtnBFOhd9KKE0rPK9jTNzeWdg/s1600/SunRise-1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEju6WuHuOigOhl254xT_VCEaIhM0wcr6CrYQg_bVTcIeUuAs3m_ITXxz9RjrTNh4mpJpcA8DZumPmWIyMkl8pSGyUlv7ImPALVWQDQt9nAe17aydGA-PcMUtnBFOhd9KKE0rPK9jTNzeWdg/s320/SunRise-1.jpg" width="320" /></a></div>
<br />
<span style="font-size: large;">मित्रों, पिछले सोमवार को मैंने हुगली नदी में आए ज्वार को
देखा। ज्वार उन्हीं नदियों में आता है जो समुद्र </span><span style="font-size: large;">के करीब हो और लगभग जु़ड़ी हुई हो। हुगली
समुद्र से जुड़ी हुई है। इसे ही उत्तर भारत में गंगा नदी कहते हैं। हुगली
के किनारे लोग पूजा- पाठ, मुंडन और कथा आदि के अलावा पितरों को तर्पण आदि
करते हैं। मैं कोलकाता के पास बैरकपुर के धोबी घाट पर इंजन वाली नाव का
इंतजार कर रहा था ताकि मैं उस पार श्रीरामपुर में अपने परमगुरु स्वामी श्री
युक्तेश्वर जी (मेरे गुरु परमहंस योगानंद जी के गुरु) द्वारा स्थापित
आश्रम में प्रणाम करने जा सकूं। आप जानते ही हैं कि परमहंस योगानंद जी की
पुस्तक- आटोबायोग्राफी आफ अ योगी- विश्व की ३३ भाषाओं में अनूदित है और आज
भी सर्वाधिक रोचक पुस्तकों में से एक है। हिंदी में इसका अनुवाद- योगी
कथामृत- के नाम से हुआ है। </span><br />
<span style="font-family: Mangal; font-size: large;"> जब मैं
बैरकपुर के धोबीघाट पहुंचा तो मुझे बताया गया कि ज्वार आ रहा है, इसलिए
इंजन वाली नाव का आना- जाना फिलहाल बंद कर दिया गया है। मुझे भी
ज्वार देखने की उत्सुकता थी। लगभग २० मिनट बाद ज्वार आया। जीवन में पहली बार मैंने किसी नदी में ज्वार देखा। वैसे रामकृष्ण परमहंस पर लिखी उनके शिष्य श्री म की पुस्तक रामकृष्ण वचनामृत में बान (बांग्ला में ज्वार को बान कहते हैं) का जिक्र है। इसका हिंदी में अनुवाद किया है- सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने। <br />तो
ज्वार आया। भारी लहरों के साथ। लहरें छपाक से किनारे से टकरातीं। मानों
नदी </span><span style="font-family: Mangal; font-size: large;"><span style="font-family: Mangal; font-size: large;">के</span> किनारे को मथ दिया। जैसे भक्त का मन भगवान के लिए मथ जाता है। जिसे गुरुदेव परमहंस योगानंद ने- चर्निंग द इथर कहा है। करीब पांच- सात मिनट के बाद ही ज्वार शांत हो गया। इंजन वाली नाव किनारे आ कर खड़ी हो गई। हम लोग पांच- सात मिनट में ही उस पार पहुंच गए और उस पवित्र स्थल और परमगुरुओं को प्रणाम किया जिसका वर्णन- आटोबायोग्राफी आफ अ योगी में भी है। लौटे तो हुगली नदी शांत थी। जैसे भक्त को भगवान मिल गए हों। वह पूर्ण तृप्त हो गया हो। </span></div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08160854592562131489noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2446493380000559684.post-24414683167478993182013-05-03T07:51:00.003-07:002013-05-03T07:51:29.334-07:00ईश्वर सर्वत्र व्याप्त हैं<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />मित्रों, हमारे जीवन में यूं तो अक्सर
कोई न कोई घटना होती रहती है। अच्छी भी और सामान्य भी। एक दिन असाधारण ढंग
से भयानक बिजली कड़की। लगा कहीं बिजली गिरी। और मेरा कंप्यूटर इंटरनेट से
डिसकनेक्ट हो गया। मैंने तकनीशियन को बुलाया। उसने बताया कि मेरा लैन कार्ड
जल गया है। चूंकि कंप्यूटर एक आदत में शामिल हो गया है, इसलिए मैं लैन
कार्ड तुरंत खरीद लाया और उसे लगाया। इंटरनेट फिर से कनेक्ट हो गया। जब मैं
लैन कार्ड खरीद रहा था तो दुकानदार ने बताया कि जब भी बिजली कड़के तो आप
इंटरनेट का तार सीपीयू से निकाल दिया कीजिए। मैंने पूछा कि क्या बिजली का
प्लग निकाल देने से काम नहीं चलेगा? उसने कहा- नहीं सर। आसमान में कड़कती
बिजली, तब भी आपके सीपीयू में घुस जाएगी और आपका मदर बोर्ड तक जला डालेगी।
इसलिए आप इंटरनेट का ही प्लग निकाल दीजिए। झंझट खत्म हो जाएगा। मैं सोचने
लगा कि क्या गजब है। आसमान में चमकती बिजली से हम किस तरह करीब से जुड़े
हैं। उधर बिजली चमकी नहीं कि इंटरनेट से हमारा कनेक्शन खत्म। क्योंकि बिजली
हमारे सीपीयू में घुस गई। ऋषियों ने कहा ही है- यत पिंडे, तत
ब्रह्मांडे।। ईश्वर आखिर सर्वत्र व्याप्त हैं। वही कंप्यूटर हैं और वही
हमारा दिमाग भी हैं। वही इस ब्रह्मांड के रचयिता भी हैं और वही हमारी आत्मा भी हैं। </div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08160854592562131489noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2446493380000559684.post-29265833620306498182013-04-22T23:58:00.003-07:002013-04-22T23:58:46.581-07:00योगी कथामृत<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
परमहंस योगानंद जी की पुस्तक - आटोबायोग्राफी आफ अ
योगी (हिंदी में अनूदित पुस्तक का नाम- योगी कथामृत ) सचमुच एक अद्भुत
पुस्तक है। अपनी आत्मकथा के बहाने परमहंस जी ने विश्व के विशिष्ट साधु
संतों के बारे में विस्तार से लिखा है। यह पुस्तक पढ़ते हुए आप उसमें इस
तरह खो जाएंगे कि खाने- पीने और सोने की सुधि भी नहीं रहेगी। इसी पुस्तक
में क्रिया योग के बारे में बताया गया है। जो लोग क्रिया योग के बारे में
जानना चाहते हैं, उन्हें योगदा सत्संग सोसाइटी आफ इंडिया का लेसन मेंबर
बनना होता है। योगी कथामृत में परमहंस योगानंद ने इसके बारे में जितना
बताया जा सकता है, बताया है। योगदा सत्संग सोसाइटी आफ इंडिया की स्थापना
स्वयं परमहंस योगानंद जी ने सन १९१७ में की थी। तब से इस आध्यात्मिक संगठन
ने लाखों लोगों को क्रिया दीक्षा दी है। क्रिया योग के बारे में विस्तार से
नहीं लिखा जा सकता न ही बताया जा सकता है। इसे दीक्षा के माध्यम से
प्राप्त किया जाता है और गोपनीयता की शपथ दिलाई जाती है क्योंकि
प्राचीन काल से ही यह धार्मिक निषेध चला आ रहा है जिसका पालन आवश्यक है।
क्यों? इसका जवाब आपको तभी मिल जाएगा, जब आप दीक्षा लेंगे। <br /><br /></div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08160854592562131489noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2446493380000559684.post-11753600912350683782013-04-12T04:28:00.004-07:002013-04-12T05:21:23.412-07:00हम विकास कर रहे हैं या हमारे दिल छोटे हो रहे हैं?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b><br /></b><span style="font-size: small;"><span style="font-family: Mangal;"><b> विनय बिहारी सिंह</b></span></span><br />
<br />
<span style="font-size: small;"><span style="font-family: Mangal;"><b> </b><span style="font-size: small;">क्या रेलवे स्टेशन पर मर रहे किसी आदमी को बचाने वाला कोई नहीं है। हम किस समाज में रहते हैं? किस व्यवस्था के अंग
हैं? यह कैसा लोकतंत्र है? कैसी संवेदनहीनता है? क्या इक्कीसवीं शताब्दी
का यही प्राप्य है? ये कई सवाल मेरे जेहन में तब उभरे जब मैं एक आदमी को
मरते हुए देख कर आया। हम विकास कर रहे हैं या हमारा विनाश हो रहा है? वहां रेलवे सुरक्षा बल के दो जवान खड़े थे। वे चुपचाप
उस आदमी को मरते देख रहे थे। निर्विकार भाव से। रेल का भाड़ा बढ़ गया है।
लेकिन सुविधाओं में क्या फर्क पड़ा? कहां हैं टेलीविजन पर बहस करने वाले
देश की चिंता में कथित रूप से मरे जा रहे राजनीतिक नेता?<br /><br />मैं १२ अप्रैल को दिन के एक बजे एक रिश्तेदार को कोलकाता स्थित सियालदह स्टेशन तक पहुंचाने गया था। जब उनकी ट्रेन १.२५ बजे रवाना हो गई तो मैं घर लौटने लगा। तभी देखा कि एक आदमी वही ट्रेन (सियालदह- बलिया एक्सप्रेस) पकड़ने आया था और अचानक उसकी तबियत खराब हो गई थी। वह बेहोश हो कर गिर पड़ा था। उसका कंबल, अन्य सामान वहीं पड़ा हुआ था। मुंह खुला था। किसी को ट्रेन पर चढ़ाने आए एक व्यक्ति ने अपने बोतल से मर रहे व्यक्ति के मुंह में पानी डाला। पानी अंदर चला गया लेकिन वह बेहोश ही रहा। उसकी आंखें अधखुली थीं। किसी ने एक व्यक्ति को भेजा- जाओ, स्टेशन मास्टर को यह खबर दे दो। वह आदमी स्टेशन मास्टर के पास गया। वहां से कोई नहीं आया। पास ही खड़े रेलवे सुरक्षा बल के दो जवान सिर्फ लोगों से कह रहे थे- गर्मी के कारण इस आदमी का यह हाल हुआ है। मर रहा आदमी मुंह को और ज्यादा खोल कर सांस लेना चाहता था लेकिन सांस नहीं ले पा रहा था। पता नहीं उसे क्या तकलीफ थी। पास ही नीलरतन मेडिकल कालेज व अस्पताल है, जो सरकारी है। स्टेशन से वहां ले जाने में मुश्किल से दस मिनट लगता। लेकिन किसी ने कोई पहल नहीं की। रेलवे स्टेशन पर मर रहे किसी व्यक्ति को बचाने के लिए रेलवे के पास कोई इंतजाम नहीं है। कोई रुचि नहीं है। कोई मर रहा है तो मरे। यह है हमारी व्यवस्था। हमारा तंत्र। इसे विकासशील देश कहते हैं। हमारे देश में अरबपतियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। विकास का खूब ढिंढोरा पीटा जाता है। लेकिन आम आदमी जानवर की तरह सबके सामने मर जाता है। उसे कोई नहीं पूछता। </span></span> </span><br />
<br /></div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08160854592562131489noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2446493380000559684.post-18452060746897442462013-03-15T04:17:00.000-07:002013-03-15T04:17:44.581-07:00एक बहुत बढ़िया कथन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
मैंने एक बहुत अच्छा कथन पढ़ा। किसी महापुरुष ने कहा है(नाम नहीं दिया गया है)कि यदि कोई ईश्वर पर विश्वास करता है उससे ईश्वर के बारे में कुछ कहने की जरूरत नहीं है। और जो ईश्वर पर विश्वास नहीं करता, उससे भी आपको कुछ कहने की जरूरत नहीं है क्योंकि आप उसे लाख समझाएंगे कि ईश्वर है, हम ईश्वर की ही संतानें हैं तो वह नहीं मानेगा। अपना तर्क देता रहेगा। इसलिए जो ईश्वर में विश्वास करता है, उससे और जो विश्वास नहीं करता, उससे कोई तर्क करना ही नहीं चाहिए। <br />
<br />
उसे कुछ समझाना ही नहीं चाहिए। </div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08160854592562131489noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2446493380000559684.post-77193545646872763242013-03-11T04:34:00.000-07:002013-03-11T04:34:43.354-07:00क्यों कम हो चले हैं परहित की सोचने वाले?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<br />
मित्रों, आज कोलकाता के धर्मतल्ला इलाके में डेकर्स लेन स्थित एक प्रसिद्ध चाय की दुकान पर गया। वहां चाय पी तो पाया कि कप छोटे साइज के हो गए हैं। चाय का जायका भी थोड़ा मद्धिम हो गया है। यानी महंगाई खाने- पीने की चीजों का स्तर लगातार गिरा रही है। आप कहेंगे,यह कोई नई बात नहीं है। हां। लेकिन इस पर गौर करना जरूरी है। यह कोई निराशावाद नहीं है। स्थिति का मूल्यांकन है। जो स्वादिष्ट और बड़े साइज की मिठाइयां हम अपेक्षाकृत कम कीमत पर खा चुके हैं,वे आज दुर्लभ लग रही हैं। हर जगह स्तर में गिरावट आई है। तो हम विकास कर रहे हैं या पीछे जा रहे हैं? भारत समेत सारी दुनिया में तो अरबपतियों की संख्या बढ़ रही है। लेकिन साथ ही अपराध और धोखाधड़ी, भरोसे पर चोट भी बढ़ रही है। परहित या परसेवा करने वाले लोग और संस्थाएं तो हैं लेकिन आज कितने लोग आम आदमी के लिए तालाब खुदवाते हैं, स्कूल या कालेज खुलवाते हैं। स्कूल, कालेज और यहां तक कि विश्वविद्यालय भी प्राइवेट खुलने लगे हैं। अस्पताल तो अब प्राइवेट ही खुल रहे हैं। आम आदमी के हित की बात सोचने वाले कहां गए? हां, कुछ साधु- संत और उनकी संस्थाएं आज भी आम आदमी के लिए ईमानदारी से लगातार काम कर रही हैं। ऐसी संस्थाओं में एक है योगदा सत्संग सोसाइटी आफ इंडिया? और भी संस्थाएं हैं। भारत सेवाश्रम संघ और रामकृष्ण मिशन भी है। और भी संस्थाएं हैं। लेकिन योगदा सत्संग (संस्थापक- परमहंस योगानंद) ने क्रिया योग इच्छुक साधकों को दे कर जो जनकल्याण कर रहा है, वह प्रणम्य है। यह संस्था जन सेवा भी लगातार कर रही है। <br />
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मैं निराश नहीं हूं। सेवा करने वाले साधु और संस्थाएं ही युवा पीढ़ी में प्रेरणा भरने के लिए काफी है। काश राजनीतिक पार्टियों में भी देश के आम आदमी को खुशहाल करने की धुन सवार हो पाती। युवा पीढ़ी में सुगबुगाहट है। आज की युवा पीढ़ी ही तस्वीर बदलेगी। क्या पता कल को कुछ चमत्कार हो और राजनीतिक पार्टियां- <em>परहित सरिस धर्म नहिं भाई </em>का मर्म समझने लगें। </div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08160854592562131489noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2446493380000559684.post-51198124689273563872013-03-01T22:13:00.003-08:002013-03-01T22:13:40.499-08:00अब आई कमाल की लचीली बैटरी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<strong>जैसन पॉलमर</strong><br />
विज्ञान एवं तकनीकी मामलों के संवाददाता<br />
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<strong>courtesy- BBC Hindi</strong><br />
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इस बैटरी को तीन गुना तक खींच सकते हैं. आजकल बैटरी के इस्तेमाल के बिना तो जैसे आप ज़िदगी की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं. आसपास की न जाने कितनी चीज़ों में हम क्लिक करें बैटरी का इस्तेमाल करते हैं. मसलन, घड़ी, मोबाइल फ़ोन, इनवर्टर, कार, इत्यादि चीज़ें तो झटके से ध्यान में आती हैं. महानगरों में कई लोग ऐसे स्वास्थ्य उपकरणों को भी साथ रखते हैं जो बैटरी से ही चलते हैं. संबंधित समाचार15 साल चलने वाली मोबाइल बैटरीअधिक बैट्री खाते हैं मुफ़्त के ऐप्सई-शर्ट के विकास की संभावना बढ़ीक्लिक करें बैटरी के बिना जब हमारा आपका काम नहीं चल सकता तो उसके साथ वैज्ञानिक समुदाय प्रयोग भी ख़ूब कर रहा है. <br />
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अब वैज्ञानिकों ने ऐसी बैटरी बना ली है जिसे आप खींचकर बड़ा कर सकते हैं, वो भी तीन गुना तक. वायरलेस चार्ज होगी बैटरी"बैटरी को स्ट्रैचबल बनाना बेहद चुनौतीपूर्ण काम था क्योंकि ऐसा करने से बैटरी की क्षमता पर असर पड़ता है. लेकिन हमने कई तरीकों का इस्तेमाल किया." - जॉन रोजर्स, प्रोफेसर और शोधकर्ता, इल्यानोइस यूनिवर्सिटी पिछले कुछ दिनों में ऐसे इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों का उत्पादन बढ़ा है जिन्हें खींचकर बढ़ाया जा सकता है. ऐसे ही उत्पादों के लिए लचीली बैटरी को तैयार किया गया है. 'आइडिया इन नेचर कम्यूनिकेशन' में 'स्ट्रेचेबल पॉलीमर' के इस्तेमाल से ऐसी बैटरियों को बनाया गया है. इल्यानोइस यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर और वरिष्ठ लेखक जॉन रोजर्स ने बीबीसी से कहा, “बैटरी को स्ट्रेचेबल बनाना बेहद चुनौतीपूर्ण काम था क्योंकि ऐसा करने से बैटरी की क्षमता पर असर पड़ता है. लेकिन हमने कई तरीकों का इस्तेमाल किया.”<br />
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जॉन रोजर्स हाल के वर्षों तक नार्थ वेस्टर्न यूनिवर्सिटी में लचीले इलेक्ट्रानिक उत्पादों को विकसित करने की विधि पर काम करते रहे थे. इस दौरान वे किसी भी सर्किट को बनाकर लचीले पॉलीमर में तैयार करते थे और उसे वैसी तार से कनेक्ट करते थे, जिसे खींचने पर ख़ास असर नहीं पड़े. लेकिन बैटरी पर इस तरह के प्रयोग काम नहीं कर पा रहे थे. क्योंकि परंपरागत तौर पर बैटरी किसी इलेक्ट्रिक सर्किट के मुक़ाबले काफ़ी बड़ी होती है. बैटरी को छोटा बनाने में इस बात की आशंका रहती है कि उसकी पावर भी कम हो जाएगी.<br />
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<strong>इस्तेमाल बढ़ने की उम्मीद</strong><br />
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लचीली बैटरियों का इस्तेमाल तेजी से बढ़ने की उम्मीद ऐसे में जॉन रोजर्स ने चक्करदार बनावट का उपयोग किया, जिसमें स्ट्रेचेबल पॉलीमर के इस्तेमाल से अंग्रेज़ी के 'S' अक्षर का आकार दिया गया. इस लचीली बैटरी को उसके सामान्य आकार से तीन गुना तक खींचा जा सकता है. इन शोधकर्ताओं का दावा है कि बैटरी को थोड़ी दूरी के अंतराल से क्लिक करें वायरलेस से भी चार्ज किया जा सकता है. जॉन रोजर्स को भरोसा है कि उनके इस उत्पाद का इस्तेमाल तेज़ी से बढ़ेगा. <br />
वे कहते हैं, “इसका सबसे ज़्यादा उपयोग उन उत्पादों में होगा जो स्वास्थ्य उपकरण हैं और शरीर की त्वचा से जुड़े होते हैं.”<br />
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Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08160854592562131489noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2446493380000559684.post-57795149876912445542013-02-20T23:49:00.002-08:002013-02-21T07:48:09.844-08:00संत कबीर दास (पुनरावलोकन)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<div style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none;">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiCHPq2RfBTAkvmwKj6b4iq9ddjPW0wKWAYobN0BSsy8rtUW2UbRl8Q87mTiDXixLvzY1Mxyg9bP3muLzbN7hp3uOqCZwGkIamyim3UP2j5zdVNCJIFL1aFum7SFqyC0jj43QoYDWCpdOIc/s1600/Sant-Kabirdas2.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" mea="true" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiCHPq2RfBTAkvmwKj6b4iq9ddjPW0wKWAYobN0BSsy8rtUW2UbRl8Q87mTiDXixLvzY1Mxyg9bP3muLzbN7hp3uOqCZwGkIamyim3UP2j5zdVNCJIFL1aFum7SFqyC0jj43QoYDWCpdOIc/s1600/Sant-Kabirdas2.jpg" /></a></div>
<div style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none;">
संत कबीरदास को जितनी बार पढ़ा जाए, हर बार नया अनुभव और नया अर्थ मिलता है। अब आप इसी दोहे को लें-</div>
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<strong>कबीर एक न जन्या , तो बहु जन्या क्या होई । </strong><br />
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<strong>एक तै सब होत है , सब तै एक न होई ।। </strong><br />
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उनका कहना है कि ईश्वर एक है। संसार की सारी वस्तुएं, सारे विचार, ईश्वर से पैदा हुए हैं। एक ईश्वर से ही सब है, सारी वस्तुओं से एक का निर्माण नहीं हुआ है। सबसे पहले ईश्वर ही हैं और सबसे अंत में भी ईश्वर ही हैं। फिर मध्य में भी वही हैं। यह बात गीता के नौवें और दसवें अध्याय में स्पष्ट रूप से कही गई है। कबीरदास को इसीलिए बार- बार पढ़ने की इच्छा होती है। संत कबीर इसीलिए तो कहते हैं कि उस एक को ही जानने से सबकुछ ज्ञात हो जाता है। लेकिन अगर ईश्वर को ही नहीं जाना तो सारे संसार को जान कर क्या होगा? ईश्वर को जाने बिना संसार को जानने की कोशिश व्यर्थ है। संसार को आप जान ही नहीं सकते, यदि ईश्वर आपके लिए अनजान हैं तो। </div>
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Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08160854592562131489noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2446493380000559684.post-35840502064498805122013-01-28T02:49:00.003-08:002013-02-21T07:57:44.210-08:00हर पल महत्वपूर्ण है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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कल रविवार को सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप के सन्यासी स्वामी विश्वानंद जी ने कहा- हर पल महत्वपूर्ण होता है। किस पल, किस मोमेंट में आप ईश्वर का अनुभव कर लें, कहा नहीं जा सकता। बशर्ते आप कोशिश करते रहें। ईश्वर आम्नी प्रेजेंट हैं। यानी सर्वव्यापी हैं। उन्हें किसी भी क्षण अनुभव किया जा सकता है। एक बार यदि आप ईश्वर से एट्यूंड हो जाएं। ईश्वर से एकरस हो जाएं तो बस काम बन गया। ईश्वर तक ले जाने वाला तत्व है- अनन्य विश्वास और भक्ति। स्वामी विश्वानंद का प्रवचन सुन कर मुझे लगा कि गुरुदेव परमहंस योगानंद जी ने हमें क्रिया योग की टेक्निक या प्रविधि देकर हमारा बहुत उपकार किया है। हमारे ऊपर अत्यंत कृपा की है। इससे हमें भक्ति पथ पर चलने का रास्ता मिल गया। </div>
Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08160854592562131489noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2446493380000559684.post-55581844985425974762013-01-23T02:31:00.001-08:002013-01-23T02:31:32.666-08:00ग्राफ़ीन के पेटेंट को लेकर है मारामारी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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Courtesy- BBC Hindi<br />
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<strong>डेविड शुकमन</strong><br />
विज्ञान संपादक<br />
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ग्राफीन एक ऐसा पदार्थ है जिससे कागज से भी पतली स्क्रीन तैयार की जा सकती है. <br />
इस वक्त दुनिया में एक नए और आश्चर्यजनक पदार्थ से पैसे बनाने की होड़ मची है. ब्रिटेन में पहचाना गया ग्राफीन अब तक का सबसे पतला पदार्थ है और इसमें जबरदस्त मज़बूती और ललीचापन है.<br />
माना जाता है कि ये इलेक्ट्रोनिक्स से लेकर सौर पैनल और चिकित्सा उपकरणों तक, हर क्षेत्र में क्रांति कर सकता है. लेकिन इसके इस्तेमाल के अधिकार या पेटेंट की संख्या को देखे तो पता चलता है कि ब्रिटेन इस मामले में अपने प्रतिद्वंद्वियों से पिछड़ रहा है.<br />
उत्तरी इंग्लैंड में मैनचेस्टर विश्विविद्यालय में एक शोधकर्ता कुछ टेपों को हटा कर वो छोटा सा पदार्थ दिखाते हैं जिसमें क्रांतिकारी संभावनाएं हैं और ये पदार्थ है ग्राफीन.<br />
अणुओं की एक परत से बना ग्राफीन हीरे से भी ज्यादा कड़ा है, तांबे से भी ज्यादा सुचालक है और रबड़ से भी ज्यादा लचीला है. इसलिए इससे ऐसी स्क्रीन बनाई जा सकती है जिसे आप मोड़ कर रख पाएंगे और ऐसी बैटरी भी जो अभी के मुकाबले कहीं ज्यादा चलेगी.<br />
दो रूसी वैज्ञानिकों ने मैनचेस्टर में इस पर अग्रणी काम किया और इसके लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार के साथ साथ नाइटहुड से भी सम्मानित किया गया है.<br />
इन्हीं में से एक हैं आंद्रे गाइम.<br />
आंद्रे गाइम कहते हैं, ये अणुओं की खोज किए जाने के शुरुआती दिनों की तरह है, जब आप अपनी पूरी ऊर्जा और समय किसी विषय पर लगाते हैं और उसकी संभावनाओं को परखते रहते हैं, परखते रहते हैं और हर तार्किक अपेक्षा से परे जाकर भी कुछ और खोज निकालना चाहते हैं.<br />
ग्राफीन के शोध को प्राथमिकता"ये वाकई बहुत प्रतिस्पर्धा वाला क्षेत्र है. न सिर्फ विज्ञान के नजरिए से बल्कि कारोबार के नजरिए से भी. एशिया और खास तौर से सिंगापुर ने इस क्षेत्र में जल्दी काम शुरू कर दिया है. हमें देखना है कि आगे क्या होता है. बहुत सारी चीजें हो रही हैं. तो ये पता चलने में कुछ वक्त लगेगा कि इस दौड़ को कौन जीतेगा."<br />
प्रोफेसर एंतोनियो कास्त्रो नीतो-- असल में ये आश्यचर्यजनक रूप से बहुत ही समृद्ध है. ऐसा इसलिए है क्योंकि हमें ऐसा पदार्थ मिला है जिसके बारे में हम पहले नहीं जानते थे.<br />
ब्रितानी सरकार ने ग्राफीन को अपनी शोध प्राथमिकता बनाया है और उसने इसके लिए 10 करोड़ डॉलर की राशि की भी पेशकश की है. <br />प्रोफेसर गाइम मानते हैं कि कुछ कंपनियों का रवैया इस बारे में खासा सुस्त है. ब्रिटेन की दिग्गज तेल कंपनी बीपी मैनचेस्टर में ग्राफीन शोध संस्थान बना रही है क्योंकि इस नए और अनोखे पदार्थ के जरिए अरबों के वारे न्यारे किए जा सकते हैं. दुनिया और हिस्सों में भी ऐसे केंद्र स्थापित हो रहे हैं. उदाहरण के लिए सिंगापुर में नेशनल यूनिवर्सिटी ने एक विशाल ग्राफीन प्रयोगशाला बनाई है और इसे चलाते हैं प्रोफेसर एंतोनियो कास्त्रो नीतो.<br />
नीतो कहते हैं, "ये वाकई बहुत प्रतिस्पर्धा वाला क्षेत्र है. न सिर्फ विज्ञान के नजरिए से बल्कि कारोबार के नजरिए से भी. एशिया और खास तौर से सिंगापुर ने इस क्षेत्र में जल्दी काम शुरू कर दिया है. हमें देखना है कि आगे क्या होता है. बहुत सारी चीजें हो रही हैं. तो ये पता चलने में कुछ वक्त लगेगा कि इस दौड़ को कौन जीतेगा."<br />
दक्षिण कोरिया की नामी इलेक्ट्रिनिक्स कंपनी सैमसंग ने ग्राफीन को प्रोत्हासन देने के लिए एक वीडियो तैयार किया है जिसमें कागज के जैसी एक काल्पनिक स्क्रीन दिखाई गई है. ग्राफीन का व्यावसायिक इस्तेमाल करने के लिए पहला जरूरी कदम है इसका पेटेंट हासिल करना और सैमसंग अब तक इस तरह के 400 पेटेंट हासिल कर चुकी है. लेकिन ग्राफीन के सबसे ज्यादा पेटेंट चीन के पास हैं, दो हजार से भी ज्यादा.ये आंकड़े कैंब्रिज आईपी नाम की संस्था की ओर से मुहैया कराए गए हैं. ग्राफीन की पूरी तरह पहचान लगभग नौ साल पहले हुई, और बड़ी तेजी से ये परिदृश्य पर छा गया. बेशक इसमें निवेश करना किसी जुए के जैसा ही है क्योंकि ग्राफीन के पहले व्यावसायिक इस्तेमाल में अभी कई सालों का इंतजार करना पड़ सकता है. लेकिन मैनचेस्टर में अब जिस प्रायोगिक विज्ञान की शुरुआत हुई है, वो इस वैश्विक दौड़ का केंद्र है.<br />
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Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/08160854592562131489noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2446493380000559684.post-47109868919398714942013-01-12T00:50:00.001-08:002013-01-12T00:50:25.514-08:00स्वामी विवेकानंद<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEian6NRyrBra4h-g319jF0yI-g0I7MF0jrq_55jVk2b-eVQM-ay3VFZmzRLIiLc-IoYLjVWTmryhkR0OTCxL3IJJS_C0U6alUp5J0pp7aekdDQ8H1K1-rd6-I4J1QBkcXb-oR7ej2nuSlNu/s1600/images.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" eea="true" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEian6NRyrBra4h-g319jF0yI-g0I7MF0jrq_55jVk2b-eVQM-ay3VFZmzRLIiLc-IoYLjVWTmryhkR0OTCxL3IJJS_C0U6alUp5J0pp7aekdDQ8H1K1-rd6-I4J1QBkcXb-oR7ej2nuSlNu/s1600/images.jpg" /></a></div>
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<em><span style="color: magenta;">रामकृष्ण परमहंस </span></em></div>
आज स्वामी विवेकानंद की १५०वां जन्मदिन है। स्वामी जी का जन्म कोलकाता के ३,गौड़ मोहन मुखर्जी स्ट्रीट स्थित घर में १२ जनवरी १८६३ को हुआ था। उनका पूरा नाम नरेंद्रनाथ दत्त। उन्होंने ४ जुलाई १९०२ को अपने पार्थिव का त्याग कर दिया। स्वामी जी के गुरु थे रामकृष्ण परमहंस। जब स्वामी विवेकानंद अपने होने वाले गुरु से मिले तो उन्होंने उनसे पूछा- क्या आपने ईश्वर को देखा है? रामकृष्ण परमहंस ने कहा- हां ठीक उसी तरह देखा है जैसे तुमको देख रहा हूं और ईश्वर से उसी तरह बातें की हैं जैसे तुमसे कर रहा हूं। यह स्वामी जी की ईश्वर के बारे में पहली प्रत्यक्ष जानकारी थी। उन्हें पहली बार लगा कि ईश्वर का साक्षात्कार किया जा सकता है। स्वामी जी ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में अपने गुरु के बारे में कहा- मैंने उनके जैसा विलक्षण व्यक्ति पूरे संसार में नहीं देखा। रामकृष्ण परमहंस लाल किनारे वाली धोती पहनते थे। उनके व्यक्तित्व में जादुई आकर्षण था। वे अपने ड्रेस के प्रति बहुत सतर्क नहीं रहते थे। साधारण धोती और कुर्ता। दाढ़ी बढ़ी हुई। शरीर दुबला- पतला। लेकिन उनके शरीर और चेहरे में जो तेज और गहरा आकर्षण था, वह अनोखा था। वे अवतार पुरुष थे। <br />
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स्वामी विवेकानंद ने कहा है- हम ईश्वर के जितने समीप आते जाते हैं, उतने ही अधिक स्पष्ट रूप से देखते हैं कि सब कुछ उसी में है। जब जीवात्मा इस परम प्रेमानंद को आत्मसात करने में सफल हो जाता है, तब वह ईश्वर को सर्वभूतों में देखने लगता है। इस प्रकार हमारा हृदय प्रेम का एक अनंत स्रोत बन जाता है। ईश्वर प्रेम से अलौकिक शक्ति मिलती है। प्रेम से भक्ति उत्पन्न होती है। प्रेम ही ज्ञान देता और प्रेम ही मुक्ति की ओर ले जाता है। </div>
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