Wednesday, October 3, 2012

जड़ प्रकृति और प्रेम



भगवत गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार ये आठ तो जड़ प्रकृति है। इससे परे जो है वह आत्मा है। यानी मन और बुद्धि से भी परे है आत्मा। हम मन या बुद्धि से ईश्वर को कैसे पकड़ सकते हैं? संभव ही नहीं है। तो ध्यान कैसे करें? जब मन और बुद्धि से ईश्वर को जाना ही नहीं जा सकता तो इन्हें ईश्वर के चरणों में अर्पित कर देना ही उचित है। कबीरदास ने इसीलिए कहा है-

कबीर यहु घर प्रेम का, खाला का घर नाहिं।
सीस उतारे हाथि करि, सो पैसे घर माहिं।।

सीस उतारे हाथि करि यानी अपने मन, अपनी बुद्धि और अपने अहंकार को नष्ट करने के बाद ही ईश्वरीय प्रेम के घर में प्रवेश किया जा सकता है। जब तक मैं, मैं, मैं लगा रहेगा, हम ईश्वर से दूर रहेंगे। जब तू, तू, तू यानी ईश्वर, ईश्वर, ईश्वर की रट हमारे अंतरमन में आ जाएगी तो बस काम बन जाएगा।
 ईश्वर सच्चे प्रेम के लिए लालायित रहते हैं। वे वहीं आकर्षित होते हैं जहां भक्त का सच्चा हृदय उन्हें पुकारता है।


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