परमहंस योगानंद जी ने लिखा है कि यदि आप किसी आध्यात्मिक विषय पर एक घंटे पढ़ते हैं तो दो घंटे लिखिए, तीन घंटे उस पर सोचिए और बाकी बचे समय में जब फुरसत मिले ध्यान कीजिए। सचमुच आध्यात्मिक चीजें सिर्फ पढ़ना और पढ़ते जाना ही हमें ज्यादा फायदा नहीं पहुंचाता। जो पढ़ते हैं उसे लिखने से वह ज्यादा अच्छी तरह आत्मसात होता है। और जो आत्मसात किया उस पर गहरा चिंतन करने से वह हमारे भीतर गहरे बैठ जाता है। इसके बाद यदि उस पर ध्यान करें तो ज्यादा फायदा पहुंचता है। हम ईश्वर को अपने करीब ज्यादा पाते हैं। संतों ने तो कहा ही है- ईश्वर तो हमारे भीतर, बाहर, सर्वत्र हैं। हम्हीं उन्हें अपनी अज्ञानता के कारण जान- समझ नहीं पाते। सर्वं खल्विदं ब्रह्म। सबकुछ ब्रह्म ही है। यह ज्ञान भीतर तक जब तक नहीं जड़ जमा लेता, हम यही कहते रहेंगे कि भगवान हमसे दूर हो गए हैं। जबकि सच्चाई यह है कि हमारे सबसे करीब भगवान ही हैं।
Saturday, October 6, 2012
आत्मचिंतन
परमहंस योगानंद जी ने लिखा है कि यदि आप किसी आध्यात्मिक विषय पर एक घंटे पढ़ते हैं तो दो घंटे लिखिए, तीन घंटे उस पर सोचिए और बाकी बचे समय में जब फुरसत मिले ध्यान कीजिए। सचमुच आध्यात्मिक चीजें सिर्फ पढ़ना और पढ़ते जाना ही हमें ज्यादा फायदा नहीं पहुंचाता। जो पढ़ते हैं उसे लिखने से वह ज्यादा अच्छी तरह आत्मसात होता है। और जो आत्मसात किया उस पर गहरा चिंतन करने से वह हमारे भीतर गहरे बैठ जाता है। इसके बाद यदि उस पर ध्यान करें तो ज्यादा फायदा पहुंचता है। हम ईश्वर को अपने करीब ज्यादा पाते हैं। संतों ने तो कहा ही है- ईश्वर तो हमारे भीतर, बाहर, सर्वत्र हैं। हम्हीं उन्हें अपनी अज्ञानता के कारण जान- समझ नहीं पाते। सर्वं खल्विदं ब्रह्म। सबकुछ ब्रह्म ही है। यह ज्ञान भीतर तक जब तक नहीं जड़ जमा लेता, हम यही कहते रहेंगे कि भगवान हमसे दूर हो गए हैं। जबकि सच्चाई यह है कि हमारे सबसे करीब भगवान ही हैं।
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1 comment:
बहुत ज्ञानमयी उपदेश
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