Wednesday, November 28, 2012

कब्ज पर एक और चर्चा



इस बार रांची प्रवास के दौरान मुझे कब्ज की भारी शिकायत हो गई। तब मैंने इसबगोल की भूसी का सेवन कर इससे छुटकारा पाया। वहां से लौटने के बाद कई जगह खोजबीन की कि कब्ज के कारणों पर एक बार फिर गौर कर सकूं। विशेषज्ञों ने कब्ज के ये लक्षण बताए हैं-
खुलकर शौच नहीं आना
नींद का नही आना
शरीर में कमजोरी
पेट में भारीपन महसूस होना
बार बार थोडा थोडा सिरदर्द होना
काम में मन नहीं लगना एवं उत्साह में कमी
आलस्य आना
भूख नहीं लगना
पेट में बहुत गैस बनना

हां। यह तो सच है कि १७ से २३ नवंबर के बीच मैं रात को लगातार तीन- चार घंटों से ज्यादा नहीं सो पाया। सुबह काफी गंभीर नाश्ता भी करता था। जब कब्ज हुआ तो मैं एक दिन फलाहार पर रहा और रात को हल्का भोजन किया। इससे बड़ा फायदा हुआ। एक दिन सुबह का नाश्ता छोड़ दिया। उसके बदले दो केले खाए। दिन में हल्का भोजन किया। इसके बाद इसबगोल की भूसी का सेवन। आखिरकार कब्ज से छुटकारा मिला। खुल कर शौच न आने से मल आतों के भीतर विष पैदा करता रहता है। नतीजा यह है कि शरीर और मन भारी रहता है। लेकिन चूंकि मैंने कब्ज तोड़ने के लिए तत्काल कारर्वाई की, इसलिए मुझे राहत मिल गई। विशेषज्ञों ने सलाह दी कि तली भुनी चीजों से मुझे दूर रहना चाहिए। वैसे भी मैं तली- भुनी चीजें पसंद नहीं करता। समोसे छूता तक नहीं हूं। पूड़ी, पराठे की तरफ देखता तक नहीं। खाना तो दूर की बात है। यह मेरे स्वभाव में शामिल है। फिर भी कब्ज हो ही गया। हां, मैं खूब पानी पीता था। फिर भी कब्ज था। मुझे याद आया- गुरुदेव परमहंस योगानंद जी ने कहा है कि आप अपनी ओर से सारे प्रयत्न कीजिए। इसके बाद ईश्वर पर छोड़ दीजिए। वे सब कुछ ठीक करेंगे। लेकिन अपने प्रयत्नों में कमी मत आने दीजिए।

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