Tuesday, November 6, 2012

गीता का एक श्लोक


कायेन मनसा बुद्ध्या केवलैरिन्द्रियैरपि।
योगिनः कर्म कुर्वन्ति संगं त्यक्त्वात्मशुद्धये।।

योगी ममत्व बुद्धि रहित इंद्रिय, मन व बुद्धि के परे रहते हुए अंतःकरण की शुद्घि के लिए काम करते हैं।

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