Friday, November 2, 2012

कबीरदास



मित्रों कबीरदास का एक विलक्षण पद प्रस्तुत कर रहा हूं। यह पद मुझे सर्वाधिक पसंद आता है-



रस गगन गुफा में अजर झरै।
बिन बाजा झनकार उठै जहं, समुझि परै जब ध्यान धरै।।
बिना ताल जहं कमल फुलाने, तेहि चढ़ि हंसा केलि करै।।
बिन चंदा उजियारी दरसै, जहं तहं हंसा नजर परै।।
दसवें द्वारे ताली लागी, अलख पुरुष जाको ध्यान धरै।।
काल कराल निकट नहिं आवै, काम क्रोध मद लोभ जरै।।
जुगन जुगन की तृषा बुझाती, करम भरम अघ ब्याधि टरै।।
कहै कबीर सुनो भई साधो, अमर होय कबहूं न मरै।।

No comments: