Thursday, September 20, 2012

देह और मन से परे होना




 भगवत गीता में भगवान ने कहा है कि आत्मा देह, मन और बुद्धि से परे है। यानी अत्यंत सूक्ष्म है। तुलसीदास ने कहा है- ईश्वर अंश जीव अविनासी। मनुष्य की आत्मा अविनाशी है। शास्वत है। वेदांत नेति नेति की शिक्षा देता है। साधक कहता है- मैं शरीर नहीं हूं, मैं मन नहीं हूं, मैं बुद्धि नहीं हूं। मैं हूं शुद्ध सच्चिदानंद। लेकिन जो देह से बहुत आसक्त हैं और देह को ही सब कुछ समझते हैं वे सूक्ष्म तत्व को ग्रहण नहीं कर पाते। शास्त्रों में कहा गया है- जब आप शांत और स्थिर हो जाते हैं। दिमाग को जहां- तहां दौड़ने से रुकता है तब आती है स्थिरता। मन कैसे शांत होगा? अभ्यास से। भगवत गीता में भगवान से अर्जुन ने कहा है- मन बहुत दृढ़ और बलवान है। उसे रोकना वायु को रोकने जैसा दुष्कर प्रतीत होता है। तो भगवान उत्तर देते हैं- हां, यह सत्य है। लेकिन अभ्यास और वैराग्य से मन को नियंत्रित करना संभव है।
एक व्यक्ति एक संत के पास शिष्य बनने गया। उसने दरवाजा खटखटाया। अंदर से संत ने पूछा- कौन? व्यक्ति ने उत्तर दिया- यही तो मैं जानने आया हूं कि मैं कौन हूं।

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