Tuesday, September 25, 2012

मूड का खराब होना


संतों ने कहा है कि मूड में रहने वाला व्यक्ति विकास नहीं कर पाता। उन्होंने सुझाव दिया है कि जिनका मूड किसी घटना के कारण खराब या अच्छा होता है, वे भीतर से कमजोर होते हैं। मूड है क्या? जरूरत से ज्यादा संवेदनशीलता होना मूडी होना है। जैसे कई बार आप बोर हो जाते हैं। यह ठीक नहीं है। बोर होते ही हमारे शरीर के हार्मोन घातक रसायन स्रावित करने लगते हैं। इस तरह हम बोर होकर खुद अपना ही नुकसान करते हैं। किसी ने कुछ कह दिया। हम दुखी हो गए। यह भी ठीक नहीं है। हालांकि दिमाग पर उसका असर कुछ देर पड़ना स्वाभाविक है। लेकिन जल्दी ही उस भाव को झटक देना चाहिए और कोई अच्छी बात सोचने लगना चाहिए। इससे हमारा दिलोदिमाग तो ठीक रहता ही है, हमारा मानसिक स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है। इसलिए हमें सबसे ज्यादा जो ध्यान रखना है वह है- मूड का अस्थिर न रहना। सदा ईश्वर के लिए ही सोचना, उन्हीं के लिए काम करना। इसका क्या मतलब? इसके लिए परमहंस योगानंद जी ने एक उपाय बताया है। उन्होंने कहा है- आप जो अच्छा काम कीजिए, सोचिए कि यह ईश्वर के लिए कर रहा हूं। बस हो गया  आपका काम। मान लीजिए आप भोजन कर रहे हैं। आप सोचिए कि यह भोजन मैं ईश्वर के लिए कर रहा हूं। मेरे भीतर बैठे ईश्वर, इस भोजन का आनंद ले रहे हैं। आप अपने कार्यालय का काम कर रहे हैं तो सोचिए कि यह काम मैं ईश्वर के लिए कर रहा हूं। इस तरह हम ईश्वर से जुड़े रहेंगे।

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