विनय बिहारी सिंह
कल एक व्यक्ति ने प्रश्न किया- योगी को रमता कहना क्या उचित है? वह तो योग में स्थिर रहता है। मैंने कहा- हां, आपका कहना तो बिल्कुल सच है। भगवत गीता में भगवान ने स्वयं कहा है कि योगी भगवान में इस तरह स्थिर हो जाए जैसे स्थिर दीपक की लौ। रमता योगी, बहता पानी की कहावत की पृष्ठभूमि मुझे नहीं पता है। लेकिन अनुमान से लगता है कि योगी मोह- माया से दूर रहते हैं। इसलिए वे कहीं एक जगह टिक कर रहना नहीं चाहते। संभवतः इसीलिए उनके लिए बहता पानी की उपमा दी गई है। लेकिन सच्चाई यह है कि वे भगवान में गहराई से स्थित रहते हैं। भगवान ही उनके जीवन का केंद्र होते हैं। वे संसार में भगवान के लिए ही रहते हैं। वे मानते हैं कि यह संसार उनके लिए सबक है। यहां वे सबक सीखने आए हैं। यह देखने आए हैं कि यह संसार किसी को निस्वार्थ प्रेम नहीं करता। प्रेम के साथ एक गुप्त शर्त जुड़ी होती है। यह संसार द्वंद्वों (डुअलिटीज) से भरा हुआ है। यहां पूर्ण सुख तब तक नहीं मिल सकता जब तक व्यक्ति भगवान से न जुड़े। प्रश्न करने वाले व्यक्ति ने कहा- हो सकता है, जिसने यह कहावत बनाई हो, वह सांसारिक आदमी रहा हो। क्योंकि योगी संसार में रहते हुए भी संसार से नहीं जुड़ता। वह संसार में रहता है लेकिन संसार में उसकी आसक्ति नहीं होती। वह ईश्वर में आसक्त रहता है। उसकी देह, मन, बुद्धि और आत्मा ईश्वर से ओत- प्रोत रहती है। उसके जीवन का मुख्य ध्येय होता है- केवल और केवल ईश्वर से प्रेम। जित देखूं तित लाल। यानी जहां भी योगी देखता है- ईश्वर ही ईश्वर दिखते हैं। घट- घट व्यापत राम।
1 comment:
ये कहावत शायद इसलिये कही गयी है कि योगी तो रम गया है और जो रम गया उसे क्या फ़र्क पडेग़ा चाहिये जैसे पानी बहता ही अच्छा है यदि रुकेगा तो सड जायेगा शायद इसिलिये कहा गया हो …………कि जब आत्मा मे रमण करने लगे तो उसे कोई फ़र्क नही पडता उसके लिये सब एक समान होता है क्योंकि कार्य और कारण दोनो का वो दृष्टा बन जाता है।
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