Monday, June 20, 2011

मां काली का रंग

विनय बिहारी सिंह


रामकृष्ण परमहंस ने कहा है- श्यामा (मां काली) का रंग दूर से काला दिखता है। लेकिन नजदीक से (यानी भक्ति से ओतप्रोत होकर) देखने से पता चलता है कि उनका कोई रग नहीं है। जैसे समुद्र का रंग दूर से या फोटो में नीला दिखता है लेकिन नजदीक जा कर देखने पर पता चलता है कि समुद्र के पानी का कोई रंग नहीं है। कहीं- कहीं हल्का सा मटमैला है लेकिन दूर से वह भी नीला दिखाई देता है। वे कहते थे- भुक्खड़ों को विश्वास नहीं होता कि ईश्वर हैं क्योंकि संशय और संदेह में उनका सारा जीवन कटता है। वे यह नहीं सोचते कि ऋषि मुनियों ने दुर्लभ धार्मिक ग्रंथों में जो कुछ लिखा है वह उनका अनुभव सिद्ध लेखन है। एक बार ईश्वर पर पूर्ण विश्वास, निष्ठा और गहनतम प्रेम हो जाए तो ईश्वर अपने होने की बात पुष्ट कर देते हैं। अपना अनुभव करा देते हैं। लेकिन जो ऊपर ऊपर ही कहीं कुछ पढ़ लिया, कहीं कुछ सुन लिया और गहराई में नहीं गए, वे हर बात में तर्क और शंका करते हैं। उनका सारा जीवन इसी में बीत जाता है और शरीर छूट जाता है। उनकी मृत्यु हो जाती है। लेकिन उनकी शंका नहीं जाती। ऋषियों ने कहा है कि शंका और संशय छोड़ो। भगवत गीता में भगवान ने कहा है- संश्यात्मा विनश्यति। संशय करने वाला नष्ट हो जाता है और श्रद्धावान लभते ग्यानम। श्रद्धावान ही ग्यान प्राप्त करता है। गहरी अनुभूति के लिए गहरे ध्यान में उतरना होता है। तर्क से तो कुछ होगा नहीं। पानी अर्थात हाईड्रोजन के दो और आक्सीजन का एक मालीक्यूल। बस हो गया पानी। अब इसमें तर्क का तो कहीं स्थान है नहीं। पानी का केमिकल फार्मूला ही है एचटूओ। आप इस पर तर्क क्या करेंगे? जो सच है वह सच है। इसी तरह ईश्वर पर क्या तर्क करना। वे हैं और उन्हीं का यह संसार है। हमारा शरीर तो मरता है और जन्मता है। ईश्वर तो शाश्वत हैं। ऋषियों ने कह ही दिया है- सर्वं खल्विदं ब्रह्म। इस सृष्टि के कण- कण में भगवान हैं। लेकिन संशयवादी मान ही नहीं सकते। वे हर बात में लेकिन जरूर लगा देते हैं। लेकिन का तो कोई अंत नहीं। लेकिन शब्द भगवान के पास नहीं ले जाता। भक्ति और साधना भगवान के पास ले जाती है।

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