Tuesday, June 21, 2011

मन को कैसे समझाएं?


विनय बिहारी सिंह




हमारे कई अदृश्य शत्रु हैं। बैक्टीरिया, वाइरस, अत्यधिक कार्बन डाई आक्साइड, अत्यधिक आइरन और अन्य धातुएं, आंतरिक दुख, क्रोध, पश्चाताप, ईर्ष्या, अत्यधिक लोभ, अत्यधिक मोह और अत्यधिक कामनाएं। इनमें बैक्टीरिया और वाइरस, कार्बन डाई आक्साइड और शरीर के भीतर की अन्य धातुएं और रसायन तो अपने आधिक्य या अपनी कमी के कारण शारीरिक यातनाएं देते हैं। लेकिन दुख, क्रोध और अन्य भावनाएं हमें मानसिक यातनाएं देती हैं। बार- बार। आप चाहे इससे सजग हों या नहीं। तो क्या इनसे छुटकारे का कोई उपाय नहीं है? अवश्य है। हमें फिर ऋषियों की कही बातों को याद करना होगा और दवाएं खानी होंगी। यानी शारीरिक बीमारी का दवा से और मानसिक बीमारी का मजबूत मन से। आप कहेंगे यह क्या बात हुई? जब मन बीमार है तो मजबूत मन कहां से आ गया? मन तो एक ही है। चाहे वह मजबूत होता है या बीमार। और आप कह रहे हैं कि मजबूत मन से बीमार मन का इलाज करना चाहिए। आप पूछ सकते हैं कि यह विरोधाभास क्यों? तो इसका उत्तर है- हां, यह संभव है। मान लीजिए कि आपका मन बीमार है। उदाहरण के लिए आप किसी चीज से लगातार दुखी हैं और वह दुख आपके ऊपर इतना हावी है कि आपका जीवन दुखमय लगता है। तब आप क्या करेंगे? ऋषियों ने कहा है- आप एकाग्र हो कर ईश्वर से प्रार्थना कीजिए। आखिर भगवान के सामने आंसू बहाने में क्या संकोच? वे हमारे परम पिता हैं, माता हैं। लेकिन क्षण भर के लिए नहीं। लंबे समय तक। फिर वे आपका मन धीरे- धीरे मजबूत कर देंगे और उसी मन से आप समस्या का शांतिपूर्ण हल खोज निकालेंगे। परमहंस योगानंद जी ने कहा है- गहरे हृदय से भगवान से की गई प्रार्थना का उत्तर अवश्य मिलता है। हर उपाय के लिए भगवान के पास जाना चाहिए। तब क्या सिर्फ प्रार्थना से ही काम हो जाएगा? कामधाम छोड़ दें? इसका उत्तर है- आप प्रार्थना भी करते रहिए और अपनी कोशिशें भी जारी रखिए। प्रार्थना आपके लिए मजबूत नींव का काम करेगी।

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