विनय बिहारी सिंह
आप सभी जानते हैं कि साइंस ने हमें दो ताकतो के बारे में बताया है-१. सेंट्रीपीटल और २.सेंट्रीफ्यूगल फोर्स। सेंट्रीपीटल फोर्स यानी किसी वृत्त में केंद्र की तरफ खिंचाव या आकर्षण (ईश्वर की ओर आकर्षण) औऱ सेंट्रीफ्यूगल फोर्स यानी केंद्र से बाहर की ओर खिंचाव (ईश्वर से दूर भागना, संसार में बुरी तरह लिप्त रहना)। योगदा सत्संग के ब्रह्मचारी निगमानंद जी कहते हैं कि जब भक्त ईश्वर की ओर आकर्षित होता है तो माया की विपरीत शक्ति उसे ईश्वर से दूर करने लगती है। कहती है कि इस संसार में इतना सब आकर्षण है। इतने आनंद हैं, कहां भगवान की ओर जा रहे हो। आओ, संसार में आनंद है। भगवान में नहीं। लेकिन दृढ़ इच्छा शक्ति वाला भक्त जानता है- माया महाठगिनि हम जानी। भक्त कहता है- मैं तो सिर्फ भगवान को जानता हूं। उन्हीं को लेकर रहूंगा। संसार के कर्तव्य करने के बाद भगवान की भक्ति में ही मस्त रहूंगा। लेकिन तब भी माया उस पर लगातार हमले करती रहती है। कभी किसी बात का प्रलोभन तो कभी किसी बात का। यही भक्त की परीक्षा है। अगर उसमें धैर्य है, शक्ति है तो वह इस परीक्षा में सर्वोच्च अंक पाता है। धैर्य और शक्ति कहां से आती है? एक ही उत्तर है- भगवान के यहां से। गीता में भगवान ने कहा ही है- अर्जुन, मेरी माया बड़ी दुस्तर है (भ्रमजाल वाली है)। लेकिन मेरे अनन्य भक्त इससे बच जाता है। भगवान ही हमारे केंद्र हैं। उनकी भक्ति ही सेंट्रीपीटल फोर्स है।
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