Monday, June 27, 2011

हरि कथाई कथा

विनय बिहारी सिंह




योगदा मठ के सिद्ध सन्यासी स्वामी शुद्धानंद जी ने एक बहुत ही प्रेरक घटना सुनाई। एक व्यक्ति के आग्रह पर स्वामी जी उन्हें लेकर मां आनंदमयी के आश्रम गए। वहां एक अत्यंत वृद्ध व्यक्ति बिस्तर पर पड़े रहते हैं। उनके शरीर में कई प्रकार के कष्ट हैं। लेकिन चेहरा बच्चों की तरह प्रसन्नता से ओतप्रोत। चमकता हुआ। वे मां आनंदमयी से उनके जीवन काल में अनेक बार मिल चुके हैं। स्वामी जी ने उनसे कुछ बोलने का आग्रह किया। उन्होंने बांग्ला भाषा में कहा- हरि कथाई कथा। अन्य सब व्यथा कथा।।
यानी भगवान की बातें करना, उनके बारे चिंतन और उन्हीं के लिए जीना ही असली कर्म है। बाकी सब व्यथा यानी कष्टदायी कर्म हैं। स्वामी जी ने रविवार के सत्संग में यह बात सुनाई। उन्होंने कहा- वे वृद्ध व्यक्ति बहुत कष्ट में हैं। लेकिन वे स्वयं को शरीर नहीं मानते, मन नहीं मानते। वे स्वयं को सिर्फ परमानंद मानते हैं। ईश्वर का अंश (ईश्वर अंश जीव अविनाशी)। इसीलिए उनके चेहरे पर हमेशा प्रसन्नता झलकती है। तुरंत मैंने मां आनंदमयी आश्रम का पता लिया। अब इच्छा है कि किसी दिन जाऊं और इस वृद्ध साधु पुरुष से मिलूं। जिस दिन उनसे मुलाकात होगी, मैं आप सबको बताऊंगा कि क्या बातचीत हुई। बस, मां आनंदमयी आश्रम में जाने भर की देर है। कितनी गहरी बात है- हरि कथाई कथा, अन्य सब व्यथा कथा।।