Tuesday, June 28, 2011

विश्वास

विनय बिहारी सिंह


भगवत गीता में भगवान ने कहा है- श्रद्धावान लभते ग्यानम। परमहंस योगानंद जी ने कहा है कि ईश्वर में विश्वास को गहरा करने के लिए ध्यान जरूरी है। ध्यान कैसे गहरा होगा? श्रद्धा से। श्रद्धा कैसे आएगी? विश्वास से। विश्वास ही आध्यात्मिक जीवन का आधार है। जिसमें ईश्वर के प्रति विश्वास नहीं है उसमें श्रद्धा आ ही नहीं सकती। यह गहन विश्वास होना चाहिए- मैं ईश्वर से प्रार्थना कर रहा हूं, वे अच्छी तरह सुन रहे हैं। वे अवश्य कृपा करेंगे। लेकिन अगर मन में तनिक भी शंका आई- पता नहीं भगवान सुन भी रहे हैं कि नहीं, बस गड़बड़ हो गया। गीता में ही कहा है- संशयात्मा विनश्यति।। ईश्वर के प्रति संशय वाला मनुष्य नष्ट होता रहता है। गहरा विश्वास ही वह उपाय है जिसकी मनुष्य को जरूरत है। यदि कोई बहुत चालाक बन रहा है और समझता है कि दूसरों को धोखा देकर पैसा कमाना ही असली मंत्र है तो वह एक न एक दिन खाई में अवश्य गिरेगा। यह ईश्वरीय नियम है। सारे नियमों में चूक हो सकती है। लेकिन ईश्वरीय नियम में चूक नहीं है। एक्शन ऐंड एफेक्ट का नियम भगवान ने इस तरह बनाया है कि उसका परिणाम मिलना ही है। लेकिन जो व्यक्ति ईश्वर में गहरी आस्था के साथ संसार में अपने कर्तव्यों को पूरा कर रहा है। उसके लिए आनंद के क्षण वही हैं जितनी देर वह ईश्वर के संपर्क में रहता है। उसी से वह जीवन की ऊर्जा पाता है और सुखी रहता है। वरना संसार में आसक्ति, दुखों में आसक्ति का पर्यायवाची बन जाता है।

1 comment:

vandana gupta said...

लेकिन जो व्यक्ति ईश्वर में गहरी आस्था के साथ संसार में अपने कर्तव्यों को पूरा कर रहा है। उसके लिए आनंद के क्षण वही हैं जितनी देर वह ईश्वर के संपर्क में रहता है। उसी से वह जीवन की ऊर्जा पाता है और सुखी रहता है। वरना संसार में आसक्ति, दुखों में आसक्ति का पर्यायवाची बन जाता है।

सारा सार यही तो है।