विनय बिहारी सिंह
टेरेसा न्यूमन जर्मनी की विख्यात संत थीं। उनका जिक्र परमहंस योगानंद जी की पुस्तक- आटोबायोग्राफी आफ अ योगी में है। कल उनका चित्र एक भक्त के यहां देखा। यह चित्र इतना प्रभावकारी था कि इस जीवन में भूल पाना असंभव है। टेरेसा, जीसस क्राइस्ट की अनन्य भक्त थीं। उन्हें अक्सर जीसस दर्शन देते थे। सप्ताह में एक दिन उनके शरीर के उन उन जगहों से खून गिरने लगता था जहां-जहां सूली पर जीसस को कील ठोक कर लटकाया गया था। दोनों हाथों में, दोनों आंखों के छोर से छाती के बीचो बीच से। धाराधार खून। यही वह चित्र था जो मैंने देखा। मैंने खुद को भाग्यशाली महसूस किया। लेकिन भीतर तक हिल गया। यह फोटो इतना जीवंत था कि मैं टेरेसा न्यूमन के चेहरे पर देर तक देखता रहा। इस फोटो के नीचे लिखा था- टेरेसा न्यूमन इन हर एक्सटेसी। अगले दिन यह घाव अपने आप ठीक हो जाता था। कोई दर्द नहीं, कोई घाव का चिन्ह नहीं। टेरेसा कुछ खाती- पीती नहीं थीं।फिर भी उन्हें कुछ फर्क नहीं पड़ता था। वे आनंद में रहती थीं। बल्कि कहें बहुत खुश और ऊर्जा से भरी रहती थीं। उनके जीवन काल में ही उन्हें संत घोषित कर दिया गया था। मैं देर तक सोचता रहा- क्या टेरेसा को दर्द का बिल्कुल अहसास नहीं होता होगा? चेहरे को देख कर तो नहीं लग रहा है। वे तो अत्यंत आनंद से विभोर लग रही हैं। घावों से खून गिर रहा है और वे आनंद में हैं। जीसस के साथ हैं। कई बार लगा कि वे जीसस और वे एक ही हैं। भक्त और भगवान एक हैं। इसके पहले मैंने असीसी (इटली) के संत फ्रांसिस के बारे में ही जानता था। अचानक मेरी मित्र और बहन इंग्रिड हेंजलर से मुलाकात हो गई। वे इटली के असीसी में ही रहती हैं और संत फ्रांसिस जिन जिन जगहों पर साधना किया करते थे, वहां-वहां वे भी जाती हैं। ध्यान मग्न होती हैं। वे भाग्यशाली हैं। उनसे संत फ्रांसिस के बारे में और ज्यादा जानकारी मिली। संत फ्रांसिस को भी जीसस अक्सर दर्शन देते थे। मैंने टेरेसा न्यूमन का चित्र यहां देना चाहता था। लेकिन कुछ अपरिहार्य कारणों से नहीं दे पा रहा हूं।
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