विनय बिहारी सिंह
आदि शंकराचार्य ने कहा है कि सबसे बड़ा आशीर्वाद है- मनुष्य के रूप में जन्म लेना। उससे भी बड़ा आशीर्वाद ईश्वर को प्राप्त करने की इच्छा है। उससे भी बड़ा आशीर्वाद है सद् गुरु का मिलना। अगर मनुष्य में ईश्वर को प्राप्त कर लेने की कभी न खत्म होने वाली लगन है, गहरी भक्ति है, ईश्वर से अनन्य प्रेम है तो उसका जीवन धन्य है। क्योंकि मनुष्य का जन्म ही इसलिए हुआ है कि वह ईश्वर से मिले। लेकिन यदि वह अपना समय व्यर्थ में गंवाता है और ईश्वर को दूर की चीज मानता है, तो वह इस दुर्लभ जन्म का मोल नहीं समझता। उसे बार- बार जन्म लेना पड़ेगा और तमाम तरह के रोग- शोक का सामना करना पड़ेगा। माया जाल को शैतान भी कहते हैं। एक साधु से उसके नए- नए शिष्य ने कहा- मैं गंगा नहाने जा रहा हूं। साधु ने कहा- यह तो अच्छी बात है। लेकिन देखना जब तक गंगा नहाओगे, तुम्हारी कामनाएं किसी पेड़ पर बैठ कर तुम्हारे बाहर निकलने का इंतजार करेंगी। ज्योंही तुम बाहर निकलोगे, वे तुम्हारे भीतर घुस जाएंगी। कहने का अर्थ है- हम अपनी हजार- हजार कामनाओं के बदले चुनी हुई कामनाएं लेकर चलें और उन्हें पूरा करने के लिए मेहनत करने के साथ- साथ ईश्वर से प्रार्थना भी करें कि हे प्रभु, मेरे ऊपर कृपा कीजिए और आशीर्वाद दीजिए कि मैं आपको कभी न भूलूं। ये कामनाएं चाहे पूरी हों या नहीं, लेकिन आपको पाने की कामना जरूर पूरी है। मैं इस पृथ्वी पर सिर्फ आपको पाने के लिए आया हूं। इस नजरिए से हमारा जीवन पूरी तरह सकारात्मक हो जाएगा। हम चाहे महल में रहें, आलीशान कार में घूमें, हमारे पास अनंत अरब रुपए हों तो भी एक दिन सब कुछ छोड़- छाड़ कर मरना ही है। अगर हम धन और भोग विलास में ही मस्त रहे और भगवान को भूल गए तो देह छोड़ने के बाद हमारी क्या गति होगी? कौन सहारा देगा। निश्चय ही भगवान सहारा देंगे लेकिन वे फिर वापस पृथ्वी पर भेज देंगे। फिर वही प्रपंच, वही झमेले। तो क्यों न अभी से ईश्वर की शरण में रहें और उन्हीं की भक्ति में रहते हुए प्राण जाएं। फिर तो वे वापस पृथ्वी पर नहीं भेजेंगे। अपने पास ही रख लेंगे। अच्छी आत्माओं को वे अपने पास ही रखना चाहते हैं। पृथ्वी पर तो उन्हीं को भेजते हैं जो इंद्रिय सुख के लिए छटपटाते रहते हैं।
1 comment:
बहुत अच्छा लिखा है।
Post a Comment