विनय बिहारी सिंह
हाल ही में एक अध्ययन से पता चला है कि हमारे दिमाग की क्षमता ज्यादा से ज्यादा १५० मित्रों तक ही संवाद करने की है। अब आप कहेंगे कि ऋषियों ने तो कहा है कि हमारे दिमाग की क्षमता अनंत है। यह अध्ययन तो हमारे दिमाग की क्षमता को कम बता रहा है। तो इसके बारे में विशेषग्यों का कहना है कि दिमाग की क्षमता को जिन लोगों ने बढाया है, उनकी बात अलग है। यह क्षमता ध्यान, दिमागी कसरत (पहेलियां सुलझाना, गणित के प्रश्नों का हल आदि) से बढ़ती है। लेकिन सामान्य आदमी का दिमाग कम इस्तेमाल के कारण सीमित ही रह जाता है। वह सिर्फ १५० मित्रों को ही याद रख पाता है। कोई आदमी फेस बुक पर १५० से ज्यादा मित्रों के साथ संवाद नहीं कर सकता।
इस अध्ययन के बाद एक बात और समझ में आती है। हमारा दिमाग कई बार भ्रम में आ जाता है। जैसे सिनेमा हाल में एक फिल्म की रील प्रोजेक्टर पर तेजी से चलती है तो पर्दे पर कलाकार नाचते- कूदते और तरह- तरह के भाव प्रदर्शित करते नजर आते हैं। दरअसल सिनेमा की रील इतनी तेजी से चलती है कि इसके बीच का गैप हमारा दिमाग पकड़ नहीं पाता। नतीजा यह है कि परदे पर चलने वाले सिनेमा से हम पूरी तरह जुड़ जाते हैं। (हालांकि मुझे सिनेमा देखे कई वर्ष बीत गए हैं।) इस तरह सिनेमा प्रकाश और सिनेमा के रील का खेल है। एक कलाकार फिल्म के जितने शो होते हैं, उतनी बार मरता या प्रकट होता है।
ऋषियों ने कहा है- जब दिमाग ईश्वर से जुड़ता है तो अनंत हो जाता है। ध्यान ही एकमात्र साधन है जिसके जरिए, मनुष्य ईश्वर से जुड़ सकता है। ध्यान, प्रार्थना या ईश्वर में गहरी आसक्ति।
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विचारणीय आलेख्।
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