Wednesday, June 1, 2011

अच्छा कोलेस्टेरॉल बढ़ाने वाली दवा फिसड्डी


विनय बिहारी सिंह



नेशनल इंस्टीट्यूट्स आफ हेल्थ (एनआईएच) ने घोषणा की है कि अच्छा कोलेस्टेराल बढ़ाने की दवा नियास्पैन हृदय रोग को रोकने में कारगर नहीं है। अच्छा कोलेस्टेराल यानी एचडीएल। आप जानते ही हैं कि हमारे शरीर में दो तरह के कोलेस्टेराल होते हैं। अच्छे वाले कोलेस्टेराल को एचडीएल और बुरे वाले कोलेस्टेराल को एलडीएल कहते हैं। एलडीएल यानी बुरा कोलेस्टेराल अगर ज्यादा हो जाता है तो हमारी रक्त धमनियों में कचरे की परतें जम जाती हैं और हमारे हृदय पर भारी दबाव पड़ने लगता है। नतीजा यह होता है कि हमारा हृदय बीमार हो जाता है। या हर्ट अटैक होता है। दिमाग की नसों में यही कोलेस्टेराल हो जाने पर ब्रेन हेमरेज आदि होता है। लेकिन यह सब तब होता है जब बुरे कोलेस्टेराल की मात्रा हद से ज्यादा होती है। दवा नियासिन कई नाम है। इसके अन्य नाम हैं- निकोटिनिक एसिड, विटामिन बी-३ और निकोटिनामाइड। ये बाजार में नियालिप, निसिनाल और नियासिन नाम से बिकती है। हालांकि नियास्पैन मुश्किल से ५ से १० प्रतिशत मरीजों को ही दिया जाता है। लेकिन अब यह सिद्ध हो गया है कि हृदय रोग को रोकने में यह दवा नाकाम है। माना जाता है कि शरीर में अच्छा कोलेस्टेराल या एचडीएल पर्याप्त मात्रा में रहने पर आयु अपेक्षाकृत लंबी होती है। इस दवा के साइड एफेक्ट्स के बारे में रिपोर्ट आई है कि इसके लगातार सेवन से सिरदर्द हो सकता है या दृष्टि में धुंधलापन हो सकता है। हम भारतीय लोगों में गुड कोलेस्टेराल की मात्रा औसतन कम पाई जाती है। खासतौर से महिलाओं में।
कार्बन डाई आक्साइड का उत्सर्जन बढ़ाः फ्रांस के वैग्यानिकों ने शोध कर पता लगाया है कि पूरी दुनिया में कार्बन डाई आक्साइड या सीओ२ का उत्सर्जन दो प्रतिशत बढ़ गया है। यह खतरे की घंटी है। इससे तापमान दो डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है। वैग्यानिकों ने कहा है कि विश्व की आर्थिक मंदी २०१० में खत्म हो गई। लेकिन कार्बन उत्सर्जन की मात्रा १.६ जिगा टन बढ़ गई है। यह इसलिए भी खतरनाक है कि इससे पर्यावरण में परिवर्तन होगा। अनेक जंतु लुप्त होने लगेंगे। अनेक वनस्पतियां लुप्त होने लगेंगी। इसका नुकसान मनुष्य को ही उठाना पड़ेगा। पिछले साल कार्बन उत्सर्जन की मात्रा ३०.६ जिगा टन थी। इस साल यह उत्सर्जन १.६ जिगा टन और ज्यादा बढ़ गया है। वैग्यानिकों ने कहा है कि नाइटिंगल या बुलबुल नाम की पक्षी लुप्त होने के कगार पर है। अगले ३० सालों में इसका नामों निशान मिट जाएगा। क्योंकि एक भी बुलबुल जीवित नहीं रहेगा। आने वाली पीढ़ी को अगर बताया जाएगा कि बुलबुल नाम की एक पक्षी था और अगर उसका फोटो दिखाया जाएगा तो वह अचरज में पड़ जाएगी। क्या ऐसा भी पक्षी था? उसके मुंह से निकलेगा।