Monday, August 1, 2011

भगवान से प्रेम कैसे करें?

विनय बिहारी सिंह


रामकृष्ण परमहंस ने कहा है- जैसे किसी मां का अपने बच्चे से प्रेम होता है, किसी प्रेमी या प्रेमिका को अपनी प्रेमिका या प्रेमी के प्रति आकर्षण होता है उसके सौ गुना यदि मनुष्य को भगवान से प्रेम हो जाए तो समझिए उसे भगवान मिल गए। कितनी सुंदर बात है यह। सचमुच भगवान से प्रेम आवश्यक तत्व है। कबीरदास ने कहा है- पोथी पढ़ि- पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।। सार यह कि भगवान से प्रेम अत्यंत आवश्यक है। कई लोग कहते हैं कि भगवान से प्रेम कैसे करें? उन्हें तो देखा नहीं है। प्रेम तो उससे होता है जिसे देखा हो, सुना हो, जिससे निकटता हो। भगवान तो अदृश्य हैं। उनके लिए ऋषियों ने कहा है- भगवान कण- कण में विराजमान हैं। आपका हृदय उन्हीं की ताकत से धड़कता है। आपकी धमनियों में खून उन्हीं की कृपा से बहता है। गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है- अर्जुन, मैं सबके हृदय में रहता हूं। प्राचीन संत कह गए हैं- ईश्वर का कोई रूप मन में रखिए। जैसे- राम या कृष्ण या भगवान शिव या दुर्गा या काली या हनुमान जी। बस उनसे प्रेम शुरू कर दीजिए। दिन रात उन्हें मन में पुकारते रहिए। उनसे बातें करते रहिए। धीरे- धीरे उनसे प्रेम गहरा होता जाएगा। भगवान उनके लिए दूर हैं जो उन्हें दूर समझते हैं। जो उन्हें अपने दिल में महसूस करते हैं, उनके लिए तो भगवान से करीब कोई नहीं है। संसार में हम जो प्रेम देखते हैं, उसका मूल स्रोत तो ईश्वर ही हैं। जो स्वयं प्रेम का अनंत भंडार है, उस भगवान से प्रेम करना कितना आनंददायक है, यह वही समझता है जो उनके प्रेम में मतवाला है। इसलिए ईश्वर से प्रेम ही वह कदम है जो हमें आनंद दिला सकता है।

1 comment:

vandana gupta said...

किसी को तभी चाहा जा सकता है जब खुदी को मिटा दिया जाये बस उसी का रूप बन जाओ…………और यही होती है प्रेम की पराकाष्ठा…………प्रेम करने के लिये सोचना नही पडता बस हो जाता है और प्रभु से प्रेम भी तभी होता है जब उनकी कथाओ को दिन रात सुनो और पढो और दिल मे सोते जागते उनका चिन्तन करोऔर उसे अपने जीवन मे उतारो फिर भगवान दूर कहाँ रह सकता है तुम्हारे अन्दर ही सब उसे भी देख सकते हैं वो अपने प्रेमी का ऐसा रूप बना देता है कि उसमे और प्रेमी मे दो का भाव रहता ही नही।