Tuesday, August 9, 2011

जहां-जहां शक्ति, वहां- वहां भगवान

विनय बिहारी सिंह



भगवत गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है- हे अर्जुन, अग्नि में तेज मैं हूं, सूर्य और चंद्रमा का प्रकाश मैं हूं, पृथ्वी का गंध मैं हूं। रस मैं हूं। यानी जहां- जहां शक्ति है, वहां- वहां भगवान हैं। इसीलिए ऋषियों ने कहा है- भगवान की शक्तियां सर्वत्र प्रकट हो रही हैं। लेकिन तब भी अनेक व्यक्ति कहते हैं कि भगवान कहां हैं? भगवान की शक्तियां तो प्रकट होती हैं लेकिन स्वयं भगवान इन शक्तियों के पीछे छुपे रहते हैं। इसीलिए दिखाई नहीं देते। इसका अर्थ यह है कि भगवान सबसे पहले अपनी शक्तियों के माध्यम से प्रकट होते हैं। लेकिन वे साक्षात भी प्रकट होते हैं। किसके सामने? जो उनके अनन्य भक्त हैं। गहरे भक्त हैं। बाकी लोगों को सिर्फ भगवान की शक्तियां दिखाई देती हैं। लेकिन जो सिर्फ सांसारिक प्रपंचों में व्यस्त हैं, उन्हें भगवान की शक्तियां भी दिखाई नहीं देतीं। फूल खिलता है। रात के बाद दिन और दिन के बाद रात का होना उन्हें साधारण घटना लगती है। फूलों का खिलना, हवा की शीतलता या लू जैसी गर्माहट आदि किसके कारण है? सिर्फ और सिर्फ भगवान के कारण। हमारा हृदय कैसे धड़कता है? हमारे शरीर में रक्त का संचार कैसे होता है? सबसे बड़ी बात कि हमारे शरीर में प्राण कैसे है? सिर्फ और सिर्फ भगवान के कारण। सारी शक्तियों का केंद्र भगवान ही हैं। इस संसार में जहां- जहां भी शक्ति के अंश हैं, सब भगवान के पास से आते हैं। इसीलिए भगवान को सर्वशक्तिमान कहा जाता है। परमहंस योगानंद जी ने कहा है- हमारे सदचिंतन, हमारी अच्छी सोच के पीछे भगवान हैं। सचमुच भगवान के चिंतन में कितना सुख है। आप सारी चीजों से ऊब सकते हैं, थक सकते हैं, लेकिन भगवान का चिंतन जितना करेंगे, उतना ही आनंद आएगा।

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