Tuesday, August 30, 2011

ब्रह्मांड की चेतना

विनय बिहारी सिंह



एक अंतरिक्ष यात्री एडगर मिचेल का लेख पढ़ रहा था। उसमें एडगर ने लिखा है कि जब वे चंद्रमा की यात्रा से लौट रहे थे तो उन्हें पृथ्वी, तारे और चंद्रमा आदि अपनी अंतरात्मा के हिस्से लगे। लगा कि उनका अपोलो- १४ अंतरिक्ष यान, स्वयं वे और उनके साथी उन्हीं तत्वों से बने हैं जिनसे ये चांद- तारे बने हैं। उन्हें उस शोध की याद आई जिसमें कहा गया है कि मनुष्य का निर्माण अंतरिक्ष के तत्वों से हुआ है। और सिर्फ मनुष्य का ही क्यों, संपूर्ण ब्रह्माड, सभी जीव उन्हीं तत्वों से बने हैं। हमारे कणादि ऋषि ने तो कह ही दिया है कि सूक्ष्मतम अणु से ही यह सृष्टि बनी। उस अणु को भगवान ने बनाया। लेकिन खुद भगवान छुपे रहते हैं और जीवों की गतिविधियां देखते रहते हैं। भगवान तो सर्वत्र हैं। वे हर क्षण, हर जीव के मन की बात जानते हैं।
एडगर का लेख पढ़ते हुए अच्छा लगा। उन्होंने लिखा है कि तारों का प्रकाश उन्हें अपना प्रकाश लगा। लगा कि तारों का प्रकाश उनके भीतर भी है। तारे और एडगर एक हैं। यह अनुभव उन्हें तीन दिन तक हुआ। वहां से आने के बाद उन्होंने कहा कि विग्यान पर तो अध्ययन होना ही चाहिए लेकिन मनुष्य की चेतना पर भी अध्ययन जारी रहना चाहिए।
हमारे ऋषियों ने तो प्राचीन काल में ही कह दिया कि यह पूरा जगत ही ब्रह्म से पैदा हुआ है और अंत में ब्रह्म में ही लीन होता है। प्रत्येक जीव ईश्वर से ही आया है और उसी में लीन होगा।

1 comment:

Udan Tashtari said...

हमारे ऋषि मुनि बहुत पहले यह सब कह गये हैं...उत्तम आलेख.