विनय बिहारी सिंह
कबीरदास ने लिखा है-
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिल्या कोय। जो मन खोजा आपना, तो मुझसे बुरा न कोय।।
यह है महान व्यक्ति का आत्मविश्लेषण। कई लोग अपनी बुराइयों की तरफ ध्यान न देकर दूसरों की निंदा में खूब रस लेते हैं। यह उनका स्वभाव बन जाता है। जब तक किसी की बुराई न कर लें, निंदा न कर लें, हंसी न उड़ा लें, उनको शांति नहीं मिलती। कबीरदास ने अपने बहाने ऐसे लोगों को सुझाया है कि पहले खुद को सुधारो। खुद की हजार- हजार कमियां हैं। उन्हें ढूंढ़ निकालो। भगवत गीता में भगवान ने कहा है- मनुष्य खुद का ही शत्रु है और खुद का ही मित्र। यदि वह ईश्वरीय नियमों के खिलाफ जाता है। दिन रात संसारी प्रपंच में लिपटा रहता है और उसी में रस लेता है तो वह अपना शत्रु है। यदि वह संसार में रह कर अपनी ड्यूटी को भगवान की ड्यूटी समझता है और मन को संसार के बदले भगवान में केंद्रित करता है तो वह अपना मित्र है। भगवान कृष्ण ने कहा है- अर्जुन, तुम अपना मित्र बनो। अपने अंधकार पक्ष को खत्म करो। कैसे? भगवान का स्मरण कर। गीता में भगवान ने कहा है- यग्यों में जप यग्य मैं हूं। जप। हमेशा- भगवान के नाम का जप करना। चाहे- हरे राम, हरे राम, राम राम हरे हरे। हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण, कृष्ण हरे, हरे हो या ओम शिव, ओम शिव हो या ओम नमः शिवाय हो। बस जप मन ही मन जप चलता रहे और बाहर की ड्यूटी होती रहे। यही है अपना मित्र होना।
1 comment:
बहुत बहुत शुक्रिया! आपने कितनी मेहनत करके ज्ञानवर्धक सामग्री प्रस्तुत की! धन्यवाद्
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