विनय बिहारी सिंह
परमहंस योगानंद जी ने कहा है- डर को डरा दीजिए। भय को भयभीत कर दीजिए। जो व्यक्ति रोज- रोज डरता रहता है, वह निश्चित रूप से भगवान से दूर है। क्योंकि कोई व्यक्ति एक समय में डर के साथ हो सकता है या फिर डर के साथ। भय और भगवान एक दूसरे के विपरीत हैं। अगर आपने भगवान के चरण पकड़ रखे हैं तो भय वहां हो ही नहीं सकता। भय वहीं होता है जहां भगवान का अहसास नहीं होता। इसीलिए भक्त हमेशा भगवान के साथ रहते हैं। उन्हें कोई डर नहीं होता। मेरे एक परिचित ने कहा- मैं चिंतित हूं कि रिटायर होने के बाद क्या होगा? पेंशन का तो कोई प्रावधान है नहीं। जीवन किस तरह चलेगा। रिटायरमेंट के समय जो राशि मिलेगी, वह भी पर्याप्त नहीं होगी। मैंने कहा- आप रिटायरमेंट के बाद आमदनी का कोई अन्य उपाय कीजिए या कहीं अन्यत्र नौकरी कर लीजिए। लेकिन चिंतित होने या डरने से तो कोई लाभ नहीं। उल्टे हानि होगी। आप अपने प्रयास करते रहिए और भगवान से भी प्रार्थना करते रहिए। उनकी शऱण में रहने से आप चिंतामुक्त हो जाएंगे। भगवान का दूसरा नाम है- चिंतामणि। यानी जो चिंता का हरण कर लेते हैं। जो भय का हऱण कर लेते हैं। उनकी प्रार्थना में कहा जाता है- भव भय हरणम।। इसलिए आपने जब संपूर्ण हृदय से संपूर्ण शक्ति से भगवान के चरणों में समर्पण किया है और अपने प्रयास जारी रखे हैं तो आपका कल्याण होना निश्चित है। भगवान अंतर्यामी हैं। वे आपका मन देखते हैं। आपका भाव देखते हैं। वे अकारण करुण हैं। उनका काम ही है कृपा बरसाना। फिर चिंता किस बात की?
1 comment:
जिस दिन इंसान को इतना विश्वास आ जाता है फिर उसे कोई चिन्ता नही रहती उसकी सब चिन्ताये भगवान की हो जाती हैं।
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