विनय बिहारी सिंह
ऋषियों ने कहा है- मनुष्य को ईश्वरीय चेतना में रहना चाहिए। यह समझना चाहिए कि हम इस संसार में अपनी कामनाओं के कारण आए हैं। यह संसार द्वंद्वों से भरा हुआ है। इसलिए यहां दुख ही दुख है। जिन सांसारिक कामों को हम सुख समझते हैं, वे अपने भीतर दुख, तनाव और कष्ट छुपाए रहते हैं। हमारे संसार में सबको अपनी पड़ी रहती है। कुछ ही ऐसे लोग हैं जो अपनी छोड़ दूसरों के बारे में सोचते हैं। भगवत गीता को बार- बार पढ़ने पर भी मन नहीं भरता। आप उसे रोज पढ़ें तो भी लगता है, कुछ बाकी रह गया। कहते हैं गीता को व्यास जी ने ईश्वर से संवाद करके लिखा था। व्यास जी को इसीलिए कुछ विद्वान ईश्वर का अवतार कहते हैं। दो पंक्तियों के श्लोकों में ग्यान का सागर भरा हुआ है (माफ कीजिए तकनीकी कारणों से मैं ग्य ऐसे ही लिख रहा हूं।) ।
ऋषियों ने विस्तार से कहा है- यह संसार भ्रम है। यह माया से ओतप्रोत है। स्वप्न की तरह है। यहां, मनुष्य अपने कर्मों को भोगने आता है, अपनी कामनाओं को भोगने आता है और अनेक दुख भोग कर भी उसका मोह इस संसार से नहीं छूटता। जैसे कुत्ता कहीं पड़ी हुई सूखी हड्डी चबाता है तो उसके ही दांतों से खून निकलता है। लेकिन वह समझता है कि यह खून उस हड्डी से निकल रहा है जिसे वह चबा रहा है। इसलिए वह अपना ही खून बड़े चाव से पीता है। इस संसार के सुखों को हम समझते हैं कि अमुक कारण से यह सुख मिला। जबकि सुख का असली स्रोत तो भगवान हैं। वे सुख के केंद्र हैं। सुख के अनंत सागर हैं। उनके पास हर चीज अनंत मात्रा में है। इसीलिए उन्हें अनंत भगवान कहते हैं।
2 comments:
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बिल्कुल सही आकलन किया है।
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