Wednesday, August 10, 2011

नासा अब गुरु की ओर

Courtesy- BBC Hindi

गुरु ग्रह

मंगल ग्रह के बाद नासा ने अपनी निगाहें सौरमंडल के सबसे बड़े ग्रह गुरु या जुपिटर पर टिका दी हैं और उसने एक मानवरहित अभियान शुरू किया है.

जूनो नाम के यह अभियान 2016 में जा कर गुरु की कक्षा में स्थापित हो जाएगा. शुक्रवार को अमरीका के केप कानावेराल से अंतरिक्ष में छोड़ा गया यह अभियान पूरी तरह से सौर ऊर्जा से चलेगा. यह अपनी क़िस्म का पहला यान होगा जो सूरज से इतनी दूर सौर ऊर्जा पर चलेगा.

नासा के प्रशासक चार्ल्स बोल्डन ने इस मौके पर कहा "जूनो को अंतरिक्ष में छोड़ने के साथ नासा ने एक नए क्षितिज की तरफ यात्रा शुरू कर दी है. इस अत्याधुनिक अभूतपूर्व तकनीक से लैस अभियान से हमें अपने सौर मंडल को समझने में और अधिक मदद मिलेगी."

अभूतपूर्व तकनीक

गुरु ग्रह पर रोशनी, पृथ्वी पर पहुँचने वाली सूरज की रौशनी का 1 /25 वां हिस्सा होती है. जूनो एक तीन पंखों वाला यान है जिसके पंखों पर 18000 सोलर सेल लगे हैं.

इस अभियान के प्रमुख स्कॉट बोल्टन ने बीबीसी को बताया," चूंकि ये सौर ऊर्जा से चलने वाला यान है इसलिए इसके पंख हमेशा सूरज की तरफ ही देखते रहेगें और यह यान कभी भी गुरु ग्रह की छाया में नहीं जाएगा."

जूनो अपने अभियान के दौरान सौरमंडल के सबसे बड़े ग्रह के चारों तरफ़ मौजूद गैसों की परतों में झाँक कर इस ग्रह के वायुमंडल में क्या हाल है.

अनसुलझी गुत्थियां

वैज्ञानिक यह उम्मीद लगाए बैठे हैं कि इस अभियान से गुरु के चारों तरफ़ मौजूद रंगीन पट्टियों के बारे में और अधिक जानकारी जुटाने में मदद मिलेगी. वैज्ञानिक यह भी जानना चाहते हैं कि इस ग्रह पर पानी कैसी और कितनी मात्रा में मौजूद है.

इस अभियान से एक पुराने विवाद भी सुलझ सकता है कि इस ग्रह पर पर एक पथरीली सतह है या फिर इसमें मौजूद गैसें बहुत संघनित हो कर इसके केंद्र की ओर ठोस आकार में मौजूद हैं.

यह अभियान यह भी पता लगाने की कोशिश करेगा कि क्या वाकई गुरु की सतह पर तरल हाइड्रोज़न के समुद्र हिलोरें मार रहे हैं. कई लोग मानते हैं कि तरल हाइड्रोजन का यह समुद्र ही गुरु को उसका शक्तिशाली चुम्बकीय आवरण देता है.

जूनो नासा का दूसरा न्यू फ्रंटियर क्लास अभियान है. इसी तरह का पहला अभियान " नए क्षितिज" साल 2006 में प्लूटो के लिए छोड़ा गया था. इस यान के वर्ष 2015 तक अपने निशाने पर पहुँच जाने की उम्मीद है.

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