Friday, August 26, 2011

अतीत तो अतीत ही है

विनय बिहारी सिंह



अठारह साल पहले तक मेरे एक परिचित के सिर पर बहुत सुंदर बाल थे। घुंघराले, चमकीले और खूब आकर्षक। आज उनके बाल झड़ कर बहुत कम रह गए हैं। उनमें भी आधे पक कर सफेद हो गए हैं। मैंने उनसे कहा- आपके खूबसूरत बाल मुझे अब भी याद हैं। वे हंस पड़े। बोले- यह तो बीती हुई बात है। अतीत है। अब वैसे बाल फिर नहीं होंगे। जो बीत गई सो बात गई। उनकी आवाज में वैराग्य की ध्वनि थी। मैंने कहा- जिन बालों और कपड़ों से हम इतना मोह करते हैं, वे नश्वर हैं। जबकि ईश्वर शास्वत और सत्य हैं। लेकिन मनुष्य की विडंबना तो देखिए कि वह बालों, कपड़ों और पकवानों के प्रति तो मोहित रहता है लेकिन ईश्वर के प्रति बहुत कम लोगों की ललक होती है। उन्होंने कहा- आप बिल्कुल ठीक कहते हैं। सामान्य मनुष्य की पीठ ईश्वर की ओर रहती है। उसे संसार की चीजें मोहक लगती हैं। जबकि वास्तव में मोहक भगवान ही हैं- सबकुछ वही हैं। मैंने कहा- आपके बालों से शुरू हो कर बात कहां तक पहुंच गई। वे बोले- बाल ही क्यों, सबकुछ तो ईश्वर ही हैं। आज मेरे बाल ही बहाना हो गए। इस बात की मुझे खुशी है।
निश्चय ही आपने कभी न कभी यह जरूर सोचा होगा- हमारा शरीर निरंतर बदल रहा है। हमारी उम्र लगातार बढ़ रही है। जिस रफ्तार से हमारी उम्र बढ़ रही है, क्या उसी रफ्तार से हम ईश्वर की तरफ बढ़ रहे हैं? सब कुछ बदल रहा है। सिर्फ ईश्वर को छोड़ कर। क्योंकि वे अनंत हैं। शांति, प्रेम और आनंद के पर्याय हैं। वे ही पूर्ण हैं। आनंदमय हैं। अनंत हैं। इसीलिए उनकी शरण में रहने में सदा आनंद है।

1 comment:

vandana gupta said...

बस हम इसी शाश्वत सत्य से विमुख रहते हैं।