Thursday, August 4, 2011

ऊपर बैठा पक्षी सब देखता है

विनय बिहारी सिंह



यह कथा आप सभी जानते हैं। लेकिन इसे दुबारा पढ़ना- सुनना भी सुखद है। ऋषियों ने कहा है- एक पेड़ पर दो पक्षी बैठे हैं। एक ऊपर की डाल पर और एक नीचे वाली डाल पर। नीचे की डाल पर बैठा पक्षी सब कुछ खाता है। मीठे, खट्टे या कड़वे फल। ऊपर का पक्षी सिर्फ देखता है। मौन, शांत और स्थिर हो कर। वह आनंद में है। लेकिन नीचे बैठा पक्षी तरह- तरह के स्वाद लेकर भी दुखी है। उसे सुख नहीं मिल रहा। वह न जाने कितने तरह से कोशिश करता है कि आनंद मिले। देश- विदेश के उपवनों में घूमा। दुर्लभ फल भी खाए। तरह- तरह के पक्षियों से दोस्ती की। लेकिन फिर भी लगता है कि आनंद नहीं है। कुछ कमी है। लेकिन ऊपर बैठा पक्षी सदा आनंद में रहता है। ऊपर का पक्षी साक्षी है। इस कथा का क्या मतलब है? ऊपर का पक्षी आत्मा है। वह किसी चीज में लिप्त नहीं होता। सदा पवित्र रहता है। नीचे का पक्षी हमारा मन है। न जाने कहां- कहां भागता रहता है। बंदर की तरह कूदता रहता है- इस डाल से उस डाल पर। अनावश्यक। लेकिन आनंद कहीं नहीं मिलता। मिलेगा कैसे? हम लोग भगवान को छोड़ कर भले ही सारे संसार की श्रेष्ठतम जगहों पर चले जाएं, क्षणिक आनंद ही मिलेगा। असली आनंद, दिव्य आनंद, अनंत आनंद तो तभी मिलेगा जब हम अपने स्रोत से मिलेंगे। अपनी उत्पत्ति के स्रोत यानी जगन्माता से मिलेंगे। परमपिता से मिलेंगे। वही है हमारा असली धाम। असली घर। वहां इस शरीर में रहते हुए भी जाया जा सकता है।

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