Friday, August 5, 2011

जाके प्रिय न राम वैदेही

विनय बिहारी सिंह



रामचरितमानस में कहा है- जाके प्रिय न राम वैदेही। तजिए ताहि कोटि बैरी सम, यद्यपि परम सनेही।। तुलसीदास सिद्ध संत थे। उनका रोम- रोम भगवान राम की स्तुति करता रहता था। कहते हैं कि भगवान स्वयं उनकी कुटिया पर पहरा देते रहते थे। हालांकि यह प्रतीक रूप में कहा गया है। उनका लिखा रामचरितमानस जितनी बार पढ़ेंगे, उतनी बार नए अर्थ खुलते जाते हैं। ऊपर लिखे दोहे में तुलसीदास ने स्पष्ट कहा है- जिसे राम प्रिय नहीं हैं। यानी जो भगवान का भक्त नहीं, उससे दूर ही रहना चाहिए, भले ही वह आपको अत्यंत स्नेह करता हो। क्योंकि वह भगवान के अलावा बाकी सब बातें प्रपंच हैं। व्यर्थ हैं। तो बकवास सुनने से क्या फायदा। इसलिए तुलसीदास ने कहा है- तजिए ताहि कोटि बैरी सम, यद्यपि परम सनेही।। उस व्यक्ति को वैरी मानिए। वह घोर सांसारिक बातें करेगा, जिसमें कामना, वासना और अनंत इच्छाएं होंगी। इच्छाएं न पूरी होने का दुख होगा। जबकि भगवान की याद में सदा आनंद है। सारे दुखों का अंत है। एक संत ने तो यहां तक कहा है- एक बार गहरी भावना से भगवान का नाम लेने से मनुष्य पर अपार कृपा होती है। परम पूज्य परमहंस योगानंद जी ने कहा है- संसार में रहो, लेकिन संसार को होकर मत रहो। इस तरह रहने से आनंद ही आनंद है। दिल से प्रार्थना करिए- प्रभु, मैं आपके बिना अब रह नहीं सकता। आइए। मुझसे बातें कीजिए। मेरा स्पर्श कीजिए। परमहंस योगानंद जी ने कहा है- प्रभु, यह हवा जो मेरे शरीर का स्पर्श कर रही है, वह आप ही हैं। फूलों की सुगंध के पीछे आप ही छुपे हैं। हर तरफ सिर्फ आप और आप ही हैं प्रभु।।

1 comment:

vandana gupta said...

यही शाश्वत सत्य है कि कण कण मे वो ही व्याप्त है बस उसे देखने के लिये वो दृष्टि चाहिये…………जिस दिन हम सबमे भगवान को देखने लगेंगे तभी से जीवन मे आनन्द का सागर बहने लगेगा।

मैने अपने ब्लोग एक प्रयास पर एक श्रंखला शुरु की है कृष्ण लीला …………कभी वक्त मिले तो उस पर भी अपने विचार व्यक्त करियेगा।
http://ekprayas-vandana.blogspot.com