विनय बिहारी सिंह
आज घर से आफिस आते हुए आदि शंकराचार्य का भजन- भज गोविंदम, भज गोविंदम, भज गोविंदम मूढ़मते...... और महात्मा गांधी का भजन- रघुपति राघव राजाराम, पतित पावन सीताराम।। अचानक याद आने लगे। फिर इन भजनों के अर्थ पर गहराई से सोचने लगा। ये दोनों भजन एक साथ क्यों याद आए, भगवान जाने। लेकिन याद आना बहुत अच्छा लगा। भगवान को पतित पावन कहा गया है। जो पतितों का भी उद्धार कर देते हैं। बशर्ते पतित व्यक्ति शपथ ले ले कि वह फिर कोई अपराध नहीं करेगा। आदि शंकराचार्य ने कहा है- ईश्वर की शरण में जाने पर सारा अंधकार, सारा कष्ट, सारे तनाव दूर हो जाते हैं। ईश्वर दरअसल जीव की प्रतीक्षा करते रहते हैं। कोई भी जीव संपूर्ण नहीं है। उससे गलतियां हो जाती हैं। लेकिन अगर मनुष्य अपनी गलतियां सुधारता रहे और भगवान से प्रार्थना करता रहे तो वे उसका जीवन सुखमय बना देते हैं। बस अपना हृदय उनके चरणों में रख देना होता है। ईश्वर तो सब जानते हैं। लेकिन कष्ट भोगते हुए भी कई लोग ईश्वर की याद नहीं करते। कष्ट मनुष्य के कर्मों का ही फल है। कष्ट ईश्वर के स्मरण के लिए आता है। ईश्वर से क्षमा मांगने के लिए आता है। अगर कष्ट झेल रहा मनुष्य कहे- प्रभु, अब और गलती नहीं करूंगा। मुझे क्षमा कर दें। ईश्वर परम दयालु हैं। वे तुरंत क्षमा कर देते हैं। लेकिन हां, ईश्वर से कहना पड़ता है। मां भी अपने बेटे को तब तक दूध नहीं पिलाती, जब तक वह रोता नहीं है। रोने का अर्थ है बच्चे को भूख लगी है। हम भी भगवान से प्रार्थना करें- प्रभु जो कुछ गलती मुझसे हुई है, क्षमा करें। मुझे सद्विचार प्रदान करें और हमारी रक्षा करें।
(मित्रों मैं आवश्यक काम से उत्तर प्रदेश जा रहा हूं। इसलिए आप सबसे मुलाकात एक हफ्ते बाद होगी)। तब तक कृपया उन पुराने लेखों को पढ़ें जो अत्यंत रोचक हैं)।
1 comment:
बढ़िया ... यात्रा सफल हो ....
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