विनय बिहारी सिंह
बहुमुखी प्रतिभा के धनी रहीम का पूरा नाम अब्दुल रहीम खान खाना था। उनका जन्म सन १५५३ में लाहौर में हुआ था। तब लाहौर भारत का ही अंग था। उस समय हुमायूं का शासन था। रहीम के पिता का नाम था- बैरम खां। वे हुमायूं के दरबार के प्रमुख लोगों में से एक थे। बैरम खां के घर, बच्चे के जन्म की बात सुन कर बादशाह हुमायूं खुद उनके घर गए और नवजात शिशु का नाम रहीम रखा। रहीम बाद में अकबर और उनके पुत्र सलीम के शिक्षक भी बने। लेकिन स्वभाव से वे आध्यात्मिक थे। यह उनके दोहों को पढ़ कर भी देखा जा सकता है। कई दोहों में उन्होंने भगवान कृष्ण को श्रद्धा से याद किया है। पहला ही दोहा पढ़ें तो स्पष्ट हो जाएगा।
आइए इन दोहों का रस पान करें-
जे गरीब सो हित करै, धनि रहीम वे लोग ।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताइ जोग ।।
एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अगाय॥
देनहार कोउ और है, भेजत सो दिन रैन।
लोग भरम हम पै धरैं, याते नीचे नैन॥
तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग॥
खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान॥
चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह॥
रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि॥
रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥
रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर॥
मन मोती अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय।
फट जाये तो ना मिले, कोटिन करो उपाय॥
रहिमन ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत।
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत॥
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