Tuesday, July 19, 2011

दो काम एक साथ नहीं हो सकते

विनय बिहारी सिंह



तुलसीदास ने रामचरित मानस में कहा है कि दो काम एक साथ नहीं हो सकते- ठहाका लगा कर हंसना और गाल फुलाना (हंसबि ठठाइ, फुलाइब गालू)। ऋषि पातंजलि ने कहा है- संसार में आसक्ति और ईश्वर में आसक्ति, एक साथ संभव नहीं है। तो क्या संसार छोड़ दें? नहीं, बिल्कुल नहीं। परमहंस योगानंद जी ने कहा है- संसार में रहिए, लेकिन संसार का होकर मत रहिए। यानी- संसार में आसक्ति से बचिए। ऐसे अनेक लोग हैं जो सुबह से लेकर शाम तक अनावश्यक रूप से दूसरे व्यक्तियों के बारे में सोचते रहते हैं और उन्हीं के बारे में बातें करते रहते हैं। परनिंदा रस यानी दूसरों की निंदा का रस लेते रहते हैं। हालांकि यह कोई रस या आनंद नहीं है। लेकिन उनके लिए यही रस है। सुबह नींद से जगने से लेकर रात सोने तक यही काम। उनके लिए ईश्वर का स्मरण व्यर्थ काम है। वे मानते हैं कि ईश्वर पता नहीं हैं भी कि नहीं। पहले परनिंदा रस ले लें। तो उनके जीवन का लक्ष्य है- खाओ, पीयो और जो जी में आए करो। बूढ़े हो जाओ और मर जाओ। तो जीवन का उद्देश्य क्या है? मनुष्य जीवन तो इसलिए मिला है कि हम अपने असली घर के बारे में जानें। हमारा असली घर कहां है? परमहंस योगानंद जी ने कहा है- हमारा असली घर ईश्वर के पास है। हम जितना ईश्वर से प्यार करेंगे, वे हमसे उतनी ही बातचीत ज्यादा करेंगे। उतनी देर हम संसार से कटे रहते हैं। यह जरूरी भी है। जब हम ईश्वर का ध्यान करें तो ईश्वर में डूबे रहें। जब हम संसार का काम करें तो ईश्वर का काम कर रहे हैं, यह अनुभूति हो। तब जाकर २४ घंटे हम ईश्वर में रह पाएंगे।

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