एक रोचक घटना
विनय बिहारी सिंह
कल शाम को अपने दफ्तर से घर जाने के लिए ज्योंही निकला, पांच मिनट बाद खूब जोर की हवा चली और घनघोर बारिश हुई। मुझे एक फुटपाथ की दुकान के पास रुकना पड़ा जिसकी छत पालीथीन से बनी थी। पालीथीन की छत पुरानी थी, इसलिए मैं बीच बीच में थोड़ा भींग भी जाता था। मेरे साथ एक और आदमी खड़ा था। वह थोड़ी देर तक तक मेरे साथ खड़ा रहा, लेकिन जब बारिश और हवा ज्यादा तेज हो गई तो उसने मुझसे पूछा- यहां तो कई पेड़ हैं। कहीं कोई डाल टूट कर गिरेगी तो नहीं? मैंने हंसते हुए कहा- क्या पता, इस तूफानी बारिश में कुछ भी कहना मुश्किल है। वह भाग कर सड़क पार स्थित बहुमंजिली इमारत के छज्जे के नीचे छुप गया। एक बार मेरी भी इच्छा हुई कि वहीं चला जाऊं। थोड़ा सा ही तो भींगना पड़ेगा। लेकिन फिर मन ने कहा- यहीं ठीक है। मैं खड़ा रहा। दुकानदार ने देखा कि मेरे पैंट का निचला हिस्सा भींग रहा है तो उसने मुझे दीवार से लगे ऊंचे स्थान पर खड़ा रहने का सुझाव दिया। यह स्थान उसकी दुकान से सटा हुआ था, इसलिए मैं वहां नहीं खड़ा हो रहा था। लेकिन जब उसने खुद कहा तो मैं वहां खड़ा हो गया। वहां की पालीथीन वाली छत ठीक थी। मैं अब आराम से खड़ा हो गया। तभी दुकानदार ने कहा- आग लगी है, वह देखिए। मैंने देखा मेरे साथ खड़ा आदमी जहां खड़ा था, वहां से दो कदम पर ऊपर लगे बोर्ड में भयानक आग लगी है। मैंने कहा- इतनी तेज बारिश में आग कैसे लगी? उसने कहा- शार्ट सर्किट है। यह आग बारिश से नहीं बुझेगी। वहां खड़े सारे लोग जहां- तहां भागे। मैं जहां सुरक्षित खड़ा था, खड़ा रहा। मन में सोचा- अभी मेरे मन में आया था कि मैं भी आग लगने वाली जगह ही क्यों न छुप जाऊं। लेकिन मेरे भीतर से ही कहीं से आवाज आई- वहां मत जाओ, यहीं ठीक है। आग से कोई हताहत नहीं हुआ। जब फायर ब्रिगेड की गाड़ी आई, आग बुझ चुकी थी। यह अद्भुत घटना थी मेरे लिए। मैंने ईश्वर को धन्यवाद दिया। वे तो मेरे भीतर थे और बाहर भी। मेरे चारो ओर भी। सर्वं खल्विदं ब्रह्म।
4 comments:
honi to hokar rahe anhoni na hoye jako rakhe saaiyan maar sake na koy..........uski leela aprampaar hai.
जब जब जो जो होना है, तब तब वो वो होता है. ईश्वरीय कृपा ही है जो अगली सांस आ जाती है लौट कर.
जो जितना जला है, वो उतना भला है।
iswar mahan hai, uski aghya ke bina kuch bhi nahi ho sakta. hum jitni sawas likhake layain hain wahi lengain.
kanchan grover
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