हम तो हैं समुद्र की एक बूंद
विनय बिहारी सिंह
एक भक्त हैं जो- श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे, हे नाथ नारायण वासुदेव, गाते हुए रोने लगते हैं। आंसू लगातार गिर रहे हैं और वे गाए जा रहे हैं। एक दिन मैंने उनसे कहा- आप अगर नहीं रोते तो आपका भजन और सुंदर होता। रोते वक्त आपका गला भर जाता है, लय में बाधा पड़ती है। वे बोले- जब मैं यह गीत गाता हूं तो मेरी आंखों से अपने आप आंसू गिरने लगते हैं। इसमें मेरा कोई वश नहीं है। मैं क्या करूं? मैंने कहा- कोई दूसरा भजन गाया कीजिए। आपका स्वर मधुर है। आपके भजन सुनना सबको अच्छा लगता है। कोई दूसरा भजन क्यों नहीं गाते? वे बोले- आप खुद गाकर देखिए- श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे..... आप ईश्वर रस में डूब जाएंगे। इसे छोड़ कर कोई औऱ भजन गाने की इच्छा ही नहीं होती। इस भजन के एक एक शब्द में ईश्वर का वास है। लगता है जैसे भगवान सामने खड़े हों और हम उन्हें पुकार रहे हों। रो रहे हों और कह रहे हों- अब कब तक इंतजार कराओगे प्रभु..... तुम्ही तो मेरे प्राण हो। यह कहते हुए उनका गला भर आया और वे फिर रोने लगे। मैं हालांकि पहले से जानता था कि वे भगवान कृष्ण के अनन्य भक्त हैं और उनकी एक एक सांस भगवान के प्रति समर्पित है। लेकिन उन्हीं के मुंह से सुनने के लिए कोई अन्य भजन गाने का प्रस्ताव रखा। आखिर में उन्होंने कहा- भगवान दिन रात हमारे साथ रहते हैं लेकिन हम उनके होने का अनुभव न करें तो इसमें भगवान का क्या दोष? दोष तो हमारा है। वही हमारे रक्षक हैं, पोषक हैं और हमारे उद्धारक हैं। उनके सिवा और कौन हमारा है। फिर भी लीला देखिए कि अपना कोई क्रेडिट नहीं लेते हैं भगवान। चुपचाप अदृश्य रह कर पूरे ब्रह्मांड को चलाते हैं। जो लोग उनको भला- बुरा कहते हैं, उस पर भी ध्यान नहीं देते। एक हम हैं कि छोटा मोटा काम करके भी अपना क्रेडिट लेना चाहते हैं। कोई हमारी प्रशंसा करे, कोई हमारा क्रेडिट स्वीकार करे.... यही तो चाहते हैं हम। हम अपनी तारीफ, अपना गुणगान सुनना चाहते हैं। जबकि करने वाला भगवान है। हम तो समुद्र की एक बूंद भर हैं।
1 comment:
वाह्…………………बहुत सुन्दर भाव हैं।
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