Thursday, June 17, 2010

क्षेत्र और क्षेत्रग्य

विनय बिहारी सिंह

गीता के १३वें अध्याय में अर्जुन ने भगवान कृष्ण से प्रश्न किया है कि क्षेत्र कौन है? औऱ क्षेत्रग्य कौन है? भगवान ने उत्तर दिया है- यह शरीर और मन, बुद्धि आदि क्षेत्र हैं। इंद्रिय, मन और बुद्धि से मनुष्य जो कुछ करता है, वह संचित होता जाता है औऱ उसका फल आने वाले समय में मिलता है। भगवान कृष्ण यह संकेत देते हैं कि जैसा करोगे, वैसा भरोगे। इसलिए हमेशा अच्छा सोचना और करना चाहिए औऱ फल की चिंता छोड़ देनी चाहिए। ईश्वर सब देख रहे हैं। तुलसीदास ने भगवान के बारे में कहा है-


पग बिनु चलै, सुनै बिनु काना।
कर बिनु करै कर्म बिधि नाना।।


ईश्वर के पैर नहीं हैं लेकिन वे चलते हैं। कान नहीं हैं लेकिन सुनते हैं। आपके मन में क्या चल रहा है, यह और कोई भले न जाने ईश्वर को मालूम है। भगवान कहते हैं- जो मेरे ऊपर पूर्ण निर्भर हो गया है, उसे मैं नहीं तो कौन देखेगा। यह भगवान का वचन है। संकट में आपको सारे लोग छोड़ देंगे, लेकिन ईश्वर आपका हाथ पकड़े रहेंगे। एक वही हैं जो अपने हैं। लेकिन क्षेत्र में यानी खेत में अगर आप बबूल बोते हैं तो फिर मधुर फल कहां से पाएंगे। किसी कवि ने कहा है-
बोया पेड़ बबूल का, आम कहां से खाय।।


इसीलिए संतों ने कहा है- कुछ भी करने और बोलने से पहले सोचिए। सावधानी से बोलने और व्यवहार करने से हम सुखी रहेंगे।