दुख को लेकर परेशान न हों
विनय बिहारी सिंह
हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि सर्वे भवंतु सुखिनः, सर्वे संतु निरामया।। यानी सभी सुखी हों, सबको शांति मिले। ऋषियों ने यह नहीं कहा है कि मुझे सुख मिले, मुझे शांति मिले। उन्होंने सबके लिए यह कामना की है। लेकिन अनेक लोग संकुचित हृदय वाले भी होते हैं। उनकी इच्छा रहती है कि मैं सुखी रहूं, बाकी दुनिया चाहे जैसे रहे। यह हमारे चिंतन को सीमित कर देता है। इस दुनिया में आज भी ऐसे लोग हैं जो चुपचाप दूसरों के लिए कुछ न कुछ कर रहे हैं। परोपकार कर रहे हैं। उन्हें कोई नहीं जानता। वे बस गुमनाम रह कर ही समाज सेवा का आनंद ले रहे हैं। अगर आप उनका नाम छापना चाहें तो वे मना कर देते हैं। वे कहते हैं- नाम छपवाने के लिए तो हमने सेवा कार्य किया नहीं। नाम छप जाने से हमारा सेवा का आनंद खत्म हो जाएगा। लेकिन हममें से कई लोग तो सिर्फ और सिर्फ अपने बारे में ही सोचते और परेशान रहते हैं। उन्हें अपना ही दुख, अपनी ही तकलीफ सबसे बड़ी नजर आती है। ऐसा इसलिए कि वे अपने अलावा किसी की तरफ देखते ही नहीं। अगर देखें तो पता चले कि उनसे भी ज्यादा दुखी लोग इस संसार में हैं। यह ग्यान न होने के कारण ही अपना दुख बहुत बड़ा दिखता है। एक बार अगर दृष्टि व्यापक हो तो अपना दुख छोटा हो जाएगा। फिर आप कहेंगे कि हम अपने सुख की बात न सोचें तो किसकी बात सोचें? सारी दुनिया तो अपने बारे में, अपने परिवार के बारे में ही सोचती है। ऋषियों के कहने का अर्थ यह नहीं है कि आप धन उपार्जित करना छोड़ दें या अपनी समृद्धि के बारे में प्रयास करना छोड़ दें। नहीं। आप अपना व्यवसाय या नौकरी खूब जम कर कीजिए। खूब पैसा कमाइए। लेकिन आपके मन में दया, करुणा और प्रेम भी रहे। किसी की मदद कर सकते हों तो कर दीजिए। चाहे पांच रुपए से ही सही। बस। आजकल के लिए यही है- सर्वे भवंतु सुखिनः। हमारे एक परिचित हैं। वे हर दिसंबर की कड़कड़ाती ठंड में एक नया कंबल लेकर निकलते हैं और अपनी कार से तमाम फुटपाथों का चक्कर लगाते रहते हैं। जो गरीब जाड़े से ठिठुरता कांपता दिखता है, बस उसे चुपचाप ओढ़ा देते हैं और बिना एक मिनट रुके वे गाड़ी में बैठते हैं और घर चल पड़ते हैं। वे कहते हैं- मुझे इसमें बड़ा आनंद मिलता है। उनके लिए यह सबसे बड़ा सुख है । इससे भी मनुष्य का दुख कम होता है। आप दूसरे के दुख को कम कीजिए, भगवान आपके दुख को कम करते हैं। ।
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