Wednesday, June 16, 2010

जो राम हैं, वही कृष्ण और वही शिव

विनय बिहारी सिंह


कल शिव पुराण पढ़ रहा था। उसमें भगवान शिव ने कहा है - जो व्यक्ति मेरी पूजा करता है और विष्णु से वैर करता है, वह मेरा भक्त नहीं है। मुझे तत्काल रामचरित मानस में भगवान राम का कथन याद आया। रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापित करने के बाद उन्होंने कहा-

शिव द्रोही मम दास कहावा।
सोई नर सपनेहुं मोंहि न पावा।।

यानी शिव जी से घृणा और मुझसे (भगवान राम से) प्रेम करने वाला व्यक्ति मुझे सपने में भी नहीं पा सकता। इसका अर्थ यह है कि जो राम हैं, वही कृष्ण हैं और वही भगवान शिव। शिव पुराण में शिव जी भगवान विष्णु से प्रेम करने को कहते हैं। सभी जानते हैं कि भगवान राम और कृष्ण भगवान विष्णु के ही अवतार हैं। इस तरह स्वयं शिव जी और राम जी कहते हैं कि दोनों एक ही हैं। एक दिन एक शिव भक्त ने मां आनंदमयी से पूछा- मैं शिव भक्त हूं। आज कृष्ण जन्माष्टमी है। मैं कैसे कृष्ण की पूजा करूं। मेरे मन में तो शिव जी बैठे हुए हैं। मां आनंदमयी हंसीं। बोलीं- तुम किसी के पुत्र हो, किसी के पिता तो किसी के पति। अलग- अलग परिचय होने पर भी तुम एक हो। उसी तरह राम, कृष्ण और शिव, दुर्गा या काली सब एक ही हैं। तुम्हें जो नाम पसंद आए वही ले लो। उसी में डूब जाओ, भगवान ही मिलेंगे। एको ब्रह्म, द्वितीयो नास्ति। भगवान तो एक ही हैं। हां, उनके रूप अलग- अलग हैं। क्यों रूप अलग- अलग हैं? रामचरित मानस में तुलसीदास ने लिखा है- जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।।
इसलिए कि किसी चरम भक्त ने भगवान को मां के रूप में देखा। किसी ने मनोहारी कृष्ण के रूप में देखा तो किसी ने मां काली के रूप में देखा जो कुप्रवृत्तियों का संहार करती हैं और सदगुणों की रक्षा करती हैं। किसी को भगवान में वात्सल्य रस चाहिए। वह बाल गोपाल को पुत्र के रूप में देखता और उसी रूप को प्यार करता है। यशोदा भाव है यह। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। आपको तो चुनने की आजादी है। बस मन में अनन्य प्रेम चाहिए। गहरा प्रेम।

3 comments:

शोभना चौरे said...

bilkul sahi hai.iishvar ak nam anek .

Vinashaay sharma said...

सहमत हूँ,शोभना चौरे जी से ।

Anshuman said...

अकबर ने बीरबल से कहा- तुम हिंदू लोग कितने देवताओं की उपासना करते हो। ये उचित है क्या। तब बीरबल ने एक पहरेदार को बुलाया औऱ उसकी पगड़ी की ओर इशारा करके अकबर से पूछा ये क्या है। उन्होने कहा- पगड़ी। इसके बाद बीरबल ने उसकी पगड़ी उताकर कमर में बांध दिया औऱ अकबर से पूछा- अब क्या है। अकबर ने कहा कमरबंद। इसके बाद बीरबल ने कमर से उतारकर उसे कंधे पर रख लिया औऱ पूछा अब ये क्या है। अकबर ने कहा अंगोछा। इसके बाद बीरबल ने उसे हाथ पर फैला लिया औऱ पूछा अब क्या है। तो अकबर ने झुझलाकर कहा कि अरे ये मात्र एक कपड़ा है।
तब अकबर ने कहा कि ऐसे ही हम हिंदू ईश्वर को अलग अलग रुपों में पूजते हैं। ये जानते हुए कि हर रुप में वो ही एक निरंजन है। जो सर्वव्यापी है।