देहात्मिका बुद्धि ठीक नहीं
विनय बिहारी सिंह
रविवार को योगदा सत्संग सोसाइटी आफ इंडिया के संन्यासी स्वामी शुद्धानंद जी ने सत्संग के दौरान कहा कि जो मनुष्य देहात्मिका बुद्धि वाला है, उसे शंका होती है कि ईश्वर है या नहीं। देहात्मिका बुद्धि यानी मैं शरीर हूं। बस वह अपने शरीर और इंद्रियों में ही रमा रहता है। अच्छा भोजन, अच्छा वस्त्र यानी इंद्रियों की मांग पूरी करता रहता है और इसी में परेशान रहता है। उसे लगता है यह देह या यह शरीर ही सब कुछ है। ऐसा व्यक्ति सूक्ष्म स्तर पर कुछ भी महसूस नहीं कर सकता। वह हर सूक्ष्म और सर्वव्यापी वस्तु को नकार देगा। शंका की दृष्टि से देखेगा। लेकिन जो समझता है कि हम शरीर नहीं हैं, मन नहीं हैं, बुद्धि नहीं है। हम हैं- सिर्फ शुद्ध आत्मा। यह जीव ईश्वर का अंश है। (तुलसीदास ने भी लिखा है- ईश्वर अंश जीव अविनासी) आत्मा देह तक ही सीमित नहीं है। जब जीव इंद्रियों से शरीर से ऊपर उठ कर देखता है तो पाता है कि यह देह तो तुच्छ है। इसके लिए क्या परेशान होना है। हमें तो अपनी आध्यात्मिक खुराक चाहिए। वही हमें सुख देगा। वही हमारे साथ शास्वत रूप से रहेगा, स्थायी रूप से रहेगा। परमहंस योगानंद जी ने कहा है- आप ईश्वर के साथ एकाउंट (खाता) खोल लीजिए, सुखी रहेंगे। जो व्यक्ति सूक्ष्म स्तर पर महसूस करेगा, वह समझेगा ही नहीं, महसूस भी करेगा कि ईश्वर है। इस सृष्टि के कण- कण में ईश्वर है। ईश्वर सर्वव्यापी हैं। उन्हें हर क्षण हम महसूस कर सकते हैं। लेकिन वे तभी महसूस होंगे जब हमारा दिमाग शांत होगा। वे शांति में निवास करते हैं। कैसी शांति? सकारात्मक शांति। शुद्ध शांति। एक शांति नकारात्मक भी होती है। कोई शांत है और दिमाग में तमाम नकारात्मक सोच चल रहे हैं। वह शांति व्यर्थ है। ईश्वर तो ऐसी शांति में निवास करते हैं जहां श्रद्धा हो, भक्ति हो और जीव उनके लिए तड़प रहा हो। बस ऐसी शांति में ईश्वर आपके साथ आनंद मनाएंगे। आप स्वयं आनंद बन जाएंगे।
1 comment:
आभार सदविचारों का.
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