छोटे बच्चे सी व्याकुलता और प्रेम
विनय बिहारी सिंह
स्वामी वल्लभाचार्य कहते थे कि भक्त को छोटे बच्चे से सीख लेनी चाहिए। जैसे छोटा बच्चा क्षण भर के लिए भी मां को नहीं छोड़ता, ठीक उसी तरह भक्त को भगवान से एक क्षण भी अलग नहीं रहना चाहिए। मां कहीं चली जाती है तो वह जोर- जोर से रोने लगता है और तब तक चुप नहीं होता, जब तक उसकी मां उसे गोद में नहीं ले लेती। मां की गोद में जाते ही बच्चे को मानो स्वर्ग मिल जाता है। ठीक उसी तरह भक्त को भगवान में इतना सुख मिलता है कि स्वर्ग भी तुच्छ लगता है। रमण महर्षि ने कहा कहा है कि सच्चे भक्त का दिमाग फोटो खींचने वाली फिल्म की तरह होता है। जैसे फिल्म एक बार प्रकाश में एक्सपोज होती है तो उससे फोटो खींचना असंभव हो जाता है, ठीक उसी तरह एक बार भक्त का दिमाग भगवान में एक्सपोज हो जाता है तो उस पर कोई दूसरी छवि उभर ही नहीं पाती। सांसारिक प्रपंच उसके मन में नहीं आता। बस सिर्फ भगवान और भगवान। सोते- जागते, उठते- बैठते, खाते- पीते, घूमते- फिरते और सोचते या काम करते हुए मन ही मन दुहराते रहना चाहिए- हे भगवान, आप ही मेरे सहारा हैं। मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलिए। मुझे अग्यान से ग्यान की ओर ले चलिए, मुझे चंचलता से स्थिरता की ओर ले चलिए। मुझ पर कृपा कीजिए।
1 comment:
जी हाँ हर समय ऐसी ही प्रार्थना करनी चाहिये।
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