Thursday, June 3, 2010

एक रोचक कथा

विनय बिहारी सिंह

एक हंस और कौए में जान- पहचान हुई। कौए ने हंस से कहा- चलिए, मैं आपको अपने घर ले चलता हूं। हंस निर्मल मन से कौए के घर चला गया। कौआ एक बबूल के पेड़ पर रहता था। वहां चारो तरफ गंदगी थी। जूठन वगैरह गिरा हुआ था जो कौआ खा कर छोड़ जाता था। हंस ने कहा- भाई, इतनी गंदगी में तो मैं रह नहीं सकता। चलो कहीं और चलते हैं। कौआ उसे एक राजा के बगीचे में सुंदर से वृक्ष पर ले गया। शीतल, मंद और सुगंधित हवा चल रही थी। इन दोनों पक्षियों ने देखा कि उसी पेड़ के नीचे राजा बैठा है। राजा के सिर पर थोड़ी सी धूप आ रही थी। हंस ने राजा के सिर पर अपने पंख फैला दिए। तभी कौए को शरारत सूझी। उसने राजा के सिर पर शौच कर दिया। राजा के सुरक्षा गार्डों ने तुरंत तीर छोड़ा जो हंस को लगा और वह जमीन पर गिर पड़ा। कौआ भाग निकला। मरते हुए हंस ने राजा से कहा- महाराज, आपके ऊपर कौए ने शौच किया। मैंने तो आपको धूप से बचाने के लिए अपना पंख फैला रखा था। लेकिन मैं मारा इसलिए गया क्योंकि एक दुष्ट की बातों में आपके बगीचे में आ गया और उसी पेड़ पर बैठा जिसके नीचे आप बैठे थे। बहरहाल, मैं आपको और कौए को भी क्षमा करता हूं।
  • संतों की शिक्षा- दुष्ट प्रकृति के लोगों की बातों में नहीं आना चाहिए। भले ही वे कितने ही मधुर और विनम्र भाव से कुछ कहें, बात की तह में जा कर सच्चाई परख लेनी चाहिए। वैसे भी दुष्टों का संग नाश करने वाला ही होता है। हमेशा ईश्वर को अपना मित्र, हितैषी और प्रेमी समझें। वही हमारा सहारा है। वही हमसे सच्चा प्रेम करता है। उसी के लिए जीना है। हमेशा सत्संग करें। इस दुनिया में साधु पुरुष भी हैं। भले ही संख्या में कम हों।