Tuesday, June 22, 2010

हमारे भीतर की ताकत

विनय बिहारी सिंह


एक रोचक कथा है। एक आदमी घर पहुंचने की जल्दी में शार्ट कट रास्ते से चला। इस शार्ट कट में एक कब्रगाह पड़ती थी। अंधेरा हो चुका था। सामने एक कब्र खोद कर छोड़ दी गई थी। जल्दी- जल्दी चल रहे व्यक्ति को गड्ढा दिखाई नहीं पड़ा और वह उसी में गिर पड़ा। गड्ढा गहरा था। उसने बहुत कोशिश की लेकिन वह बाहर नहीं निकल पाया। उसने सोचा- ठीक ही कहा जाता है कि जल्दी का काम शैतान का। अगर मैंने जल्दी नहीं की होती तो देर से ही सही अभी घर में बैठा गर्मागर्म चाय पी रहा होता। अब तो रात भर इस गड्ढे में बिताना ही पड़ेगा। तभी उसी तरह का एक और आदमी शार्ट कट के चक्कर में कब्रगाह से हो कर गुजरा और उसी गड्ढे में गिर पड़ा। उसने बहुत कोशिश की। पहले से गिरा हुआ आदमी चुपचाप बैठा था। बाद में गिरने वाला आदमी समझ रहा था कि वह इस गड्ढे में अकेले है। तभी पहले वाले ने कहा- कोई फायदा नहीं है कोशिश का। तुम इस गड्ढे से नहीं निकल पाओगे।
तभी बाद में गिरने वाला आदमी घबराया और क्षण भर में छलांग लगा कर बाहर आ गया। उसे लगा कि इस कब्र में भूत है, वही बोल रहा है। डर ने उसके भीतर इतनी ताकत भर दी कि वह एक ही छलांग में बाहर आ गया।
ऋषियों ने कहा है कि हमारे भीतर अजस्र शक्ति है। जरूरत है उसे जगाने की। लेकिन हम लोग खुद को इतना कमजोर मान कर चलते हैं और इतना सीमित मान कर चलते हैं कि पीछे रह जाते हैं। हमारे भीतर ईश्वर से जुड़ने की क्षमता है। लेकिन हम सोचते हैं- हमारे भीतर कहां ताकत है? यह काम तो बड़े साधु कर सकते हैं। आप भी कोशिश करें तो ईश्वर आपके साथ बात कर सकते हैं। आपके दोस्त बन सकते हैं। ऋषियों ने कहा है- अपनी शक्ति पहचानिए। खुद को ईश्वर से जोड़िए।

1 comment:

vandana gupta said...

वाह क्या बात कही है……………।ईश्वर दूर कब है ये तो हमारी सोच ही है अगर कोशिश करें तो क्या नही हो सकता संत भी तो पहले हमारे जैसे ही थे मगर उन्होने कोशिश की और ईश्वर को पाया।