मन को भगवान में स्थिर कैसे करें
विनय बिहारी सिंह
यह प्रश्न जितनी बार मेरे पास आता है, उतनी बार ऋषियों की बातें याद आती हैं। ऋषि पातंजलि ने कहा है- योगश्चित्तवृत्ति निरोधः। चित्त की वृत्तियों को रोकने का नाम ही योग है। चित्त की वृत्तियां क्या हैं? जैसे आप शांत तालाब में कोई पत्थऱ का टुकड़ा फेंक दें। पानी अस्थिर हो जाएगा और जहां पत्थर फेंका गया है, वहां गोल- गोल वृत्ताकार तरंगें बनने लगेंगी। हमारा दिमाग भी वैसे ही है। हमारा मन भी वैसा ही है। कुछ न कुछ वह सोचता रहता है। कल्पनाएं करता रहता है। यानी वृत्तियां चलती रहती हैं। तरंगें उठती रहती हैं। उन्हें कैसे रोकें? भगवान कृष्ण ने कहा है- अभ्यास औऱ वैराग्य से। इस दुनिया से आप चले जाएंगे तो भले ही आपके स्वजन रोएंगे, दुख मनाएंगे, लेकिन कुछ दिनों बाद फिर वे अपनी दुनिया में रम जाएंगे। आप अतीत बन जाएंगे। आप भुला दिए जाएंगे। उसके बाद एक पीढ़ी ऐसी आएगी कि जो आपसे कोई मतलब ही नहीं रखेगी। यही सच्चाई है। किसी कवि ने कहा है- पानी केरा बुदबुदा अस मानुष की जात।। यानी पानी के बुलबुले जैसा है मनुष्य का जीवन। परमहंस योगानंद जी ने कहा है- अगर हम देहात्मिका बुद्धि से चलेंगे तो इस दुनिया में वैसे ही रहेंगे जैसे परदेस में कोई अजनबी। हम देह नहीं हैं। हम आत्मा हैं। मरने के बाद यह देह यहीं रह जाती है और हमारी आत्मा अनंत में चली जाती है। लोग कहते हैं- अमुक इस दुनिया से चले गए। मृत देह यहीं पड़ी रहती है औऱ कहा जाता है कि अमुक इस दुनिया से चले गए। तो यही है जीवन। तो क्यों न इन बातो को याद कर भगवान में मन को स्थिर रखें। जब यह बात याद रहेगी कि हमारा जीवन पानी का बुलबुला है तो भगवान में अपने आप मन चला जाएगा। बल्कि मन भगवान में ही रमा रहेगा। क्योंकि और कहीं तो सुख है नहीं। सूरदास ने कहा है- मेरो मन अनत कहां सुख पावै। यानी मेरे मन अन्यत्र कहीं सुख नहीं पाता। सुख तो सिर्फ ईश्वर में ही है।
3 comments:
it is a Bouncer to me
मन की वृत्तियों को एक बार शांत जो कर ले वही योगी है उसने ही गीता का रहस्य जाना है…………इंसान इतना ही समझ ले तो उसके जीवन की सब व्यथायें दूर हो जायें और वो आत्मानद को प्राप्त हो जाये।
बहुत ही शांति और सुकूनदायक लेख है। हम देह नहीं हैं, आत्मा हैं। आत्मा निकल जाती है केवल शरीर रह जाता है। उसके बाद सब कुछ वही का वही।
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