Monday, September 28, 2009

भगवान को जानना है तो शरणागति जरूरी

विनय बिहारी सिंह

मेरे एक परिचित ने अपने मन की बात बताई। उन्होंने कहा-
हर चीज भगवान पर कैसे छोड़ सकते हैं। आखिर मनुष्य को अपना कर्तव्य तो करना ही पड़ेगा। । कभी- कभी शक होता है कि पता नहीं भगवान काम पूरा करेंगे कि नहीं। इसलिए भगवान को भी याद करते हैं और कर्तव्य में भी लगे रहते हैं।
उनकी शंका को समझा जा सकता है। जब आप भगवान को आधे- अधूरे ढंग से मानेंगे तो यह शक होगा ही। गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है- संशयात्मा विनश्यति। यानी संशय से कोई काम नहीं करना चाहिए। जिन लोगों को यह विश्वास नहीं है कि भगवान हैं या नहीं, उन्हें भगवान को याद कर कोई काम नहीं करना चाहिए। यह बात तो सिद्ध है कि जन्म से पहले हम कहीं थे और मृत्यु के बाद भी कहीं रहेंगे। गीता में कहा गया है कि जन्म और मृत्यु के बीच में हमारा जीवन है। लेकिन ईश्वर हमारे साथ हमेशा रहते हैं। अब यह प्रश्न तो उचित नहीं है कि जब ईश्वर है तो दिखाई क्यों नहीं देता। अरे भाई उसने यह पूरी सृष्टि बना दी है। इससे क्या आप अंदाजा नहीं लगा सकते कि इसका बनाने वाली कोई असीमित ताकत है? हां, अगर उस ताकत को देखना चाहते हैं तो उसके नियम हैं। हर चीज का नियम है। आप चावल भी पकाते हैं तो उसका एक नियम है। रोटी भी पकाते हैं तो उसकी एक पद्धति है। ठीक इसी तरह अगर आपको भगवान को देखना है तो आपको किसी ईश्वरप्राप्त व्यक्ति से साधना सीखनी पड़ेगी, आपको उसका अभ्यास करना पड़ेगा। जब आप इस अभ्यास या साधना में सिद्ध हो जाएंगे तो भगवान आपको दर्शन देंगे। लेकिन अगर आप चाहेंगे कि आपकी मर्जी से भगवान आपको दर्शन दें तो यह कैसे संभव है? भगवान अपनी मर्जी से दर्शन देंगे। अब आप कहें कि यह सब फालतू बातें हैं। ऐसे व्यक्ति को हम कहां ढूढें जो ईश्वरप्राप्त है, और साधना का समय नहीं है। तो फिर आपको वह बात मान लेनी चाहिए जिसे महान संतों, ऋषि- मुनियों या सन्यासियों ने कही है। उन्होंने कहा है कि आप पूर्ण विश्वास के साथ ईश्वर को याद कीजिए। उनका नाम- जप कीजिए। पूर्ण शरणागति चाहिए। तब भगवान खुद ही दर्शन देंगे। कब दर्शन देंगे, यह वे ही जानते हैं। लेकिन दर्शन देंगे जरूर। आप पूर्ण शरणागति की स्थिति में तो जाइए। तर्क से तो कुछ नहीं होता। तर्क करने से चावल नहीं पक सकता। वह तो तभी पकेगा जब आप चावल पकाने की विधि अपनाएंगे। आप चाहे लाख इंटेलेक्चुअल बातें कीजिए, चावल नहीं पक सकता। आप चाहे अनपढ़ हों या महान पंडित, चावल पकाने के लिए एक खास पद्धति अपनानी पड़ेगी। ठीक उसी तरह इंटेलेक्चुअल बातें करते रहने से भगवान के बारे में हम नहीं जान सकते। उसके लिए शरणागति ही एक मात्र उपाय है। (आज के बाद दिन बाद भेंट होगी- विनय बिहारी सिंह )

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