विनय बिहारी सिंह
यह ठीक वैसे ही है कि अगर कोई अवांछित व्यक्ति आपके घर में आना चाहे तो आप पूरी शक्ति के साथ उसे खारिज कर देंगे और ऐसे व्यक्ति से अनंत कोस दूर रहना चाहेंगे। आप अपने घर में कूड़ा और गंदगी भी बर्दाश्त नहीं करेंगे। आप चाहेंगे कि आपका घर साफ- सुथरा, व्यवस्थित और आकर्षक हो। एक सन्यासी ने पूछा- ठीक यही बात क्या आपके अपने दिमाग के साथ लागू होती है? कई लोगों ने माना कि नहीं। हम बार बार चाहते हैं कि हमारा दिमाग अनावश्यक रूप से न भटके। आवारा न बने। हमेशा सकारात्मक बातों पर ही जाए। लेकिन होता नहीं है। जैसे हम घर को व्यवस्थित रखना चाहते हैं, हमारा दिमाग व्यवस्थित नहीं रह पाता। और भोजन के मामले में भी हम बहुत नियंत्रण से नहीं रहते। सामने कुछ स्वादिष्ट चीज आई, बस खा लिया। इस खाद्य पदार्थ से हमें कितनी पौष्टिकता मिलेगी, कितनी कैलोरी मिलेगी, इसका हम ख्याल ही नहीं करते। मानो हमारा पेट कुछ भी बर्दाश्त कर लेगा। खाते जाओ, पेट खराब होगा तो देखा जाएगा। इतनी निश्चिंतता क्या हमारे लिए ठीक है? यानी सन्यासी ने दो बातें कहीं- एक तो यह कि मन में वही विचार रखें जो सकारात्मक हों। नकारात्मक न हों। अगर फालतू बातें दिमाग में घुसने लगें तो उन्हें रोक कर बाहर फेंक दें। धीरे- धीरे जब आदत पुष्ट हो जाएगी तो फिर अपने आप मन स्वस्थ विचारों को ग्रहण करने वाला हो जाएगा। संतों ने कहा है कि आपके मन में जितने अच्छे विचार आएंगे, आपका जीवन उतना ही सुखी रहेगा। अगर आपके मन में किसी के प्रति क्रोध लगातार बना हुआ है तो आप अपना ही नुकसान कर रहे हैं। जिस पर क्रोध आ रहा है उस पर तो कोई असर ही नहीं पड़ेगा। यानी आप अपने क्रोध से खुद को ही नष्ट कर रहे हैं। संतों ने एक और बात कही है- क्षमा। कुछ बातों को क्षमा कर देनी चाहिए। इससे आपका दिमाग फिर उधर नहीं जाएगा। मन जितना निर्मल रहेगा, भगवान आपसे उतना ही ज्यादा प्यार करेंगे। दूसरी बात है भोजन को लेकर। कई लोग पेट भर खाते हैं। संतों ने कहा है कि थोड़ी भूख बनी रहे तभी खाना खत्म कर देना चाहिए। हल्का खाना हो तो क्या कहने। हल्का यानी तली- भुनी चीजें न हों। कम तेल या घी में बनी चीजें हों। अगर आपको उबला या कम तेल घी की चीजें खाते- खाते उबन हो गई हो तो इसका भी उपाय है। स्वादिष्ट और पौष्टिक भोजन बनाना कठिन नहीं है। कल मैंने घर पर बिना घी का पराठा खाया। कैसे? पराठा की परतों के बीच में नाम मात्र का पिघला घी या मक्खन डाल कर ऊपर से सूखा पराठा बना लीजिए। यह आराम से फूल जाता है और आसानी से पचता भी है। लेकिन यह भी कभी कभी ही खाया जा सकता है। बहुत हुआ तो हफ्ते में एक दिन। सबसे अच्छी है रोटी। जौ, गेहूं और मक्के के आटे एक साथ मिला कर भी बीच- बीच में मिक्स आटे की रोटी खाई जा सकती है। अगर इन झमेलों से बचना चाहते हैं तो सिर्फ गेहूं की रोटी खा कर आनंद से रह सकते हैं।
2 comments:
लेकिन, ये कर पाना ही तो सबसे मुश्किल काम है।
प्रयास किया जा सकता है इस दिशा में.
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