Saturday, September 12, 2009

मन को रोकना कठिन तो है लेकिन असंभव नहीं

विनय बिहारी सिंह

सभी ऋषियों और भगवान कृष्ण ने कहा है कि मन चंचल और मथने वाला जरूर है लेकिन इसे रोकना असंभव नहीं है। जन्म जन्मांतर से तो मन को हमने भटकने के लिए छोड़ दिया था। अब जब हम उसे कंट्रोल करेंगे तो वह विद्रोह तो करेगा ही। कई बार तो लगता है कि मन रोकना असंभव है लेकिन अगर आप भी जिद पर अड़ जाएं और उसकी गतिविधि पर नजर रखें तो वह काबू में आ ही जाता है। संतों ने कहा है कि साक्षी भाव होना चाहिए। आप मन पर नजर रखिए कि वह कहां जा रहा है। अगर वह ईश्वर के अलावा कहीं और जाता है तो उसे वापस ईश्वर में लगा देना है। ऐसा करते करते एक दिन वह आपके वश में आ जाएगा। लेकिन हां, आसानी से नहीं, इस पर योजनाबद्ध ढंग से काम करते रहना पड़ेगा। हमेशा मन की चौकीदारी करनी पड़ेगी। गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि मनुष्य खुद ही अपना मित्र है औऱ खुद ही अपना शत्रु। अगर मन हमारे नियंत्रण में है तो वह हमारा मित्र यानी हम अपने मित्र हैं। लेकिन अगर वह हमारा कहना नहीं मानता यानी हमने मन को नियंत्रण में नहीं रखा तो हम खुद अपने शत्रु हैं। मन को नियंत्रण में ही लाने के लिए कई लोग जप करते हैं। जप में पूरा ध्यान नाम जप पर लगा रहता है और मन जिसका जप करते हैं, उसके ध्यान में। इसी तरह भजन और कीर्तन में भी मन को लगा देने से वह वहां आनंद लेने लगता है। मन को आनंद चाहिए। अगर वह एक बार ईश्वरीय आनंद का सुख पा लेगा तो फिर लौट कर कहीं और नहीं जाएगा। बस यह विश्वास चाहिए कि मेरे सबसे हितैषी भगवान ही हैं। उन्होंने मुझे पैदा किया है। मैं अपने प्रयास से पैदा नहीं हुआ। ईश्वर ने हमें इस पृथ्वी पर भेजा। अब वही हमारा मालिक है। संपूर्ण शरणागति चाहिए। हर काम में भगवान को साथ ले लेने से यह काम आसान हो जाएगा। धीरे धीरे मन हमारे काबू में आएगा। जल्दी से नहीं।

1 comment:

संजय तिवारी said...

आपकी लेखनी को मेरा नमन स्वीकार करें.