Thursday, September 24, 2009

मन की सफाई- भाग २

विनय बिहारी सिंह

मन की सफाई के बारे में रामकृष्ण परमहंस ने कहा है- जैसे लोटा रोज मांजना पड़ता है, उसी तरह अपना अंतःकरण भी रोज मांज लेना चाहिए। यानी आत्मविश्लेषण के बाद हर रात आप यह दृढ़ निश्चय कर सकते हैं- जो हुआ सो हुआ, अब कल से बेहतर शुरूआत करेंगे। और अगले ही दिन से आप पिछले दिन की तुलना में प्रसन्न मन से काम में जुट जाते हैं। अब तक आप जान चुके होते हैं कि क्रोध या घृणा का कोई फायदा नहीं है। नुकसान ही नुकसान है। क्रोध से हमारे शरीर में हानिकारक हारमोन पैदा होते हैं और तंत्रिका तंत्र पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ता है। अगर आपने क्रोध में किसी को कुछ बोल दिया तो बाद में आप पाएंगे कि आपके भीतर अफसोस जैसी बात भी आ जाती है। आपका मन कहेगा- बेकार ही गुस्से में आ गया। पूरा दिन खराब हो गया। अब यह अफसोस भी आपके शरीर पर बुरा ही प्रभाव डालता है। इसलिए क्रोध, घृणा या तनाव को झटक कर आप शांत भाव से दिन के शुरू में ही भगवान से प्रार्थना कीजिए- हे भगवान, आज का दिन खूब शांति औऱ आनंद के साथ बीते। फिर रात को सोते समय भगवान से प्रार्थना कीजिए- हे भगवान, आपने मुझे यह दिन शांति से बिताने में मदद की इसके लिए मैं आपका आभारी हूं। इस तरह लगभग दिनचर्या बना कर आप शांतिमय जीवन गुजार सकते हैं। क्योंकि जितना ज्यादा कचरा हमारे भीतर रहता है, हम उतने ही तनाव में रहते हैं। एक बार सारा कचरा साफ हो जाए, बस आनंद ही आनंद है। जैसे हम लोग शरीर में इकट्ठे कचरे को साफ करने के लिए उपवास करते हैं, उसी तरह मन को साफ करने के लिए भी यह तय करना पड़ेगा कि आज हम मन पर कोई तनाव नहीं पड़ने देंगे और मन में बुरे या निगेटिव विचार नहीं आने देंगे। ऐसा कोई एक दिन तय कर लिया जाए। एक दिन उपवास का और एक दिन मन की सफाई का। फिर देखिए क्या ही आनंद है आपके जीवन में। लेकिन इसका परिणाम तुरंत नहीं मिलेगा, महीने या डेढ़ महीने बाद मिलना शुरू होगा। बीच बीच में आप अपने को चेक करते रहिए- क्या मुझे पहले से कम क्रोध आ रहा है? क्या मैं पहले की तुलना में खाने की चीजों पर कम टूट पड़ता हूं। क्या दिन भर मैं सकारात्मक विचार के साथ रहा या खराब विचार भी मेरे मन में आए? ऐसा करते करते आप पाएंगे कि आपमें गजब का सुधार हो रहा है। यही तो हम सभी चाहते हैं कि मन शांत हो, आनंदमय हो और वह ईश्वर में लगा रहे। मन जितना शांत होगा, उतना ही ईश्वर की तरफ आकर्षित होगा। ईश्वर यानी हम सबका परमप्रिय और सर्व शक्तिमान, सर्वव्यापी, सर्वग्य।

(मित्रों मैं २७ सितंबर से ९ दिनों के लिए शिमला जा रहा हूं। इस बीच इस ब्लाग पर कुछ लिख नहीं पाऊंगा।)

No comments: