Friday, September 18, 2009

महालया की विशिष्टता

विनय बिहारी सिंह

पश्चिम बंगाल में महालया को यानी आज भोर में शक्ति की अराधना की जाती है। या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः।। का ऊर्जा जागरण मंत्र दिल के भीतर किस तरह उतरता जाता है, यह श्रद्धा से सुनने वाला ही समझ सकता है। बंगाल के बाहर रहने वाले लोग शायद यह न समझ पाएं कि महालया किस दिन पड़ता है। आश्विन महीने में कृष्णपक्ष के आखिरी दिन पड़ता है यह पर्व। कल से शुक्ल पक्ष आरंभ होगा। पंचांग में इसे आश्चिन बदी १५ संवत २०६६ लिखा गया है। (आज के दिन दिवंगत पितरो के लिए तर्पण करते है)। बंगाल में आज से ही देवी पक्ष शुरू हो गया। कल नवरात्र का पहला दिन है। कई लोग तो लगातार नौ दिन व्रत और पूजा के लिए दफ्तरों से छुट्टी ले लेते हैं। लेकिन कई लोग सिर्फ नवरात्र के पहले और आखिरी दिन ही व्रत रखते हैं और देर रात तक मां दुर्गा का जाप या ध्यान करते हैं। अनेक लोगों का कहना है कि नवरात्र में मां दुर्गा का ध्यान या जप करने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। लेकिन मेरा मानना है कि मन में कोई भी कामना न रख कर मां दुर्गा का पूजन या जप या ध्यान किया जाए तो उसका आनंद ही अलग है। बस यही प्रार्थना करनी चाहिए कि मां मुझे अपने प्रति गहरी भक्ति दो, प्रेम दो और मेरे हृदय, बुद्धि और आत्मा में स्थाई घर बना लो। मुझे और कुछ नहीं चाहिए। ऐसी प्रार्थना से माता खुश होती हैं। कामना लेकर पूजा करने का कोई अर्थ नहीं है। हालांकि कामना करना कोई अपराध नहीं है। संसार है तो कामना का रहना स्वाभाविक ही है। लेकिन सर्वाधिक आनंद तब आता है जब बिना किसी कामना के माता से प्रेम किया जाए। तुम मां हो, इसलिए मैं तुमसे प्रेम करता हूं। क्या यह कहते हुए सरेंडर करना सुखद नहीं है? ऐसे अनेक भक्तों को मैंने देखा है कि मां, मां, मां कहते हुए मां दुर्गा के पैरों पर लोट- पोट हो जाते हैं और बहुत देर तक उन्हें होश ही नहीं रहता कि वे हैं कहां। बस आनंद के सागर में वे गोते लगाते रहते हैं। एक बच्चा मां की गोद में नहीं रहेगा तो कहां रहेगा? अगर आपने मां दुर्गा को मां माना है तो आप और कहां जाएंगे? और मांगना क्या है? कुछ नहीं। मां से उनका प्यार भी नहीं मांगना है। सिर्फ प्यार देना है। मां, मैं तुम्हें प्यार करता हूं। मां, मां, मां। अब मां जाने कि मेरा क्या होगा। यह उनकी मर्जी। एक भक्त को पिछले हफ्ते पिघला देने वाला अत्यंत मधुर गीत गाते हुए सुना। वे बांग्ला भाषा में गा रहे थे- मां हैं, मैं हूं, और है कौन मेरा। मां का दिया खाता, पहनता हूं, मां ने लिया है भार मेरा।। (बांग्ला- मां आच्छे, आमी आछी आर के आमार। मांएर देया खाई, पोड़ी, मां निएछे भार आमार।।) अचानक देखा कि उनकी आँखों से आंसुओं की धारा बह रही है। उनकी आंखे बंद हैं। सब लोग आ जा रहे हैं। वे मंदिर के बाहर बने मंडप के एक कोने में बैठे हैं। एक धोती पहनी है और उसी को ओढ़ लिया है। उन्हें कुछ होश नहीं है। लगभग घंटा भर बैठ कर उन्हें रोते हुए देखा। समझ गया वे मां काली के उपासक हैं। इस समय वे समाधि जैसी स्थिति में हैं। भाग्यशाली हैं। अन्यथा इतनी भक्ति उन्हें मिलती कैसे?

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