Saturday, September 5, 2009

शांत और स्थिर मन

विनय बिहारी सिंह

कोई भी काम हड़बड़ी या बेचैनी में नहीं किया जा सकता। लेकिन हैरानी है कि कई लोग ऐसा करते हैं। उदाहरण के लिए दोपहर को जब वे खाना खाने बैठते हैं तो भी उनका दिमाग भारी तनाव लिए रहता है और इस तरह वे भोजन के संपूर्ण रस तत्व का आनंद नहीं ले पाते। यानी खाना वे नहीं, उनका तनाव खाता है। इसी तरह जीवन के हर काम में चंचल दिमाग हस्तक्षेप करता रहता है। परमहंस योगानंद ने कहा है- अगर जल हिल रहा है तो उसमें सूरज और चांद की तस्वीर भी हिलेगी। वह भी ऐसा जल जो गंदा है। जब तक उसकी मैल नीचे नहीं बैठ जाती, कोई भी प्रतिबिंब गंदा और हिलता हुआ दिखेगा। तो प्रश्न है कि क्यों कोई इतनी बेचैनी में या एबसेंट माइंडेड होकर खाना खाता है? इसके जिम्मेदार हम खुद हैं। हमने खुद को तनाव में रखने या खाना खाते समय दिमाग को जहां तहां दौड़ाने का आदी बना रखा है। जाने अनजाने। तो इसके लिए क्या करें? संतों ने कहा है कि हमेशा ईश्वर को साक्षी मान कर भोजन कीजिए। मान कर चलिए कि आपके साथ ईश्वर भी भोजन कर रहे हैं। फिर देखिए भोजन का आनंद दोगुना हो जाएगा। यह भी मान कर चलिए कि आपके जीवन का तनाव धीरे-धीरे घट रहा है और आधे घंटे के अंदर जल कर राख हो गया। यह कल्पना करते ही आप पाएंगे कि दिमाग राहत महसूस कर रहा है। यह प्रयोग आप करके देखिए। आपका दिमाग शांत हो जाएगा। यानी जल की हलचल बंद हो जाएगी। जल शांत और स्थिर हो जाएगा और सूर्य या चंद्रमा का बिंब उसमें साफ नजर आएगा। ईश्वर के संपर्क का यही चमत्कार है। लेकिन अगर मन में जरा भी शंका रही कि पता नहीं ईश्वर हैं या नहीं, बस आप जहां के तहां ही रहेंगे। वही तनाव, वही परेशानियां। ईश्वर नहीं हैं तो यह सारी सृष्टि चल कैसे रही है? आदि शंकाराचार्य ने कहा है- जन्म से पहले हम कहां थे? इस संसार में क्यों आए? मृत्यु के बाद कहां जाएंगे? यह सोच कर अंत में आप पाएंगे कि ईश्वर ही सब कुछ हैं। भगवान हमेशा आपके साथ हैं और रहेंगे। आप ही ईश्वर से दूर थे। हमारे सबसे प्रिय ईश्वर हैं। दुख में, सुख में हर क्षण, यहां तक कि नींद में भी हमारी सुधि वही तो लेते है। इसलिए सर्वाधिक प्रिय वही है।

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